Three New Criminal Law Impose in Country From 1 July, Know Details

नाबालिग से रेप पर अब उम्रकैद, इन अपराधों पर नहीं होगी थाने से जमानत, एक जुलाई से देश मे लागू होंगे ये कड़े कानून

नाबालिग से रेप पर अब उम्रकैद, इन अपराधों पर नहीं होगी थाने से जमानत, Three New Criminal Law Impose in Country From 1 July, Know Details

Edited By :   Modified Date:  June 27, 2024 / 06:44 PM IST, Published Date : June 27, 2024/6:44 pm IST

नई दिल्लीः Three New Criminal Law Details देश की कानून व्यवस्था में एक बार फिर बड़ा बदलाव होने जा रहा है। ब्रिटिश काल से देश में लागू तीन आपराधिक कानून 30 जून की आधी रात से इतिहास बन जाएंगे। एक जुलाई से देश में नए मुकदमे और प्रक्रिया भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) लागू होंगे। तीनों कानूनों को पिछले साल 21 दिसंबर को संसद की मंजूरी मिल गई और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 दिसंबर को अपनी सहमति दे दी थीं। इन तीनों कानूनों को लेकर लागू करने के लिए अब देश भर में तैयारियां अंतिम चरण पर है।

क्यों लागू किया जा रहा है ये कानून

इन तीनों नए कानूनों को लाने का मकसद अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे आउटडेटेड नियम-कायदों को हटाना और उनकी जगह आज की जरूरत के हिसाब से कानून लागू करना है। इन तीन नए कानूनों के लागू होने के बाद क्रिमिनल लॉ सिस्टम में काफी कुछ बदल जाएगा। मसलन, अब देशभर में कहीं भी जीरो एफआईआर दर्ज करवा सकेंगे। इसमें धाराएं भी जुड़ेंगी। अब तक जीरो एफआईआर में धाराएं नहीं जुड़ती थीं। 15 दिन के भीतर जीरो एफआईआर संबंधित थाने को भेजनी होगी। DSP रैंक के अफसर को मामले की जांच करनी होगी। कुछ मामलों में आरोपी की गिरफ्तारी के लिए सीनियर से मंजूरी लेनी होगी। अब पुलिस कुछ मामलों में आरोपी को हथकड़ी लगाकर गिरफ्तार कर सकती है।

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पुलिस की जवाबदेही बढ़ी

Three New Criminal Law Details नए कानून में पुलिस की जवाबदेही भी बढ़ा दी गई है। हर राज्य सरकार को अब हर जिले के हर पुलिस थाने में एक ऐसे पुलिस अफसर की नियुक्ति करनी होगी, जिसके ऊपर किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी से जुड़ी हर जानकारी रखने की जिम्मेदारी होगी। पुलिस को अब पीड़ित को 90 दिन के भीतर उसके मामले से जुड़ी जांच की प्रोग्रेस रिपोर्ट भी देनी होगी। पुलिस को 90 दिन में चार्जशीट दाखिल करनी होगी। परिस्थिति के आधार पर अदालत 90 दिन का समय और दे सकती है। 180 दिन यानी छह महीने में जांच पूरी कर ट्रायल शुरू करना होगा। अदालत को 60 दिन के भीतर आरोप तय करने होंगे। सुनवाई पूरी होने के बाद 30 दिन के अंदर फैसला सुनाना होगा। फैसला सुनाने और सजा का ऐलान करने में 7 दिन का ही समय मिलेगा।

UAPA लगेगा या धारा 113, स्टेट पुलिस को जांच

आतंकी एक्टिविटी जैसे देश की अखंडता एकता के खिलाफ काम करने वालों के खिलाफ मामलों के लिए धारा 113 का प्रावधान किया गया है। इस तरह के मामलों में UAPA भी दर्ज होता है, लेकिन UAPA दर्ज होने पर 99% मामलों में सेंट्रल एजेंसी जांच करती है। अब धारा 113 दर्ज होने पर स्टेट पुलिस जांच कर सकेगी। लेकिन किस केस में UAPA दर्ज करना है और किस केस में धारा 113 के ​तहत अपराध दर्ज करना है, ये एसपी या उससे बड़ी रैंक के अधिकारी तय करेंगे।

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महिलाओं के लिए क्या कुछ बदल जाएगा?

आईपीसी में धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है, जबकि 376 में इसके लिए सजा का प्रावधान है। जबकि, भारतीय न्याय संहिता में धारा 63 में रेप की परिभाषा दी गई है और 64 से 70 में सजा का प्रावधान किया गया है। आईपीसी की धारा 376 के तहत रेप का दोषी पाए जाने पर 10 साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है। बीएनएस की धारा 64 में भी यही सजा रखी गई है।बीएनएस में नाबालिगों से दुष्कर्म में सख्त सजा कर दी गई है। 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ दुष्कर्म का दोषी पाए जाने पर कम से कम 20 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। इस सजा को आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। आजीवन कारावास की सजा होने पर दोषी की सारी जिंदगी जेल में ही गुजरेगी। बीएनएस की धारा 65 में ही प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ दुष्कर्म का दोषी पाया जाता है तो उसे 20 साल की जेल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। इसमें भी उम्रकैद की सजा तब तक रहेगी, जब तक दोषी जिंदा रहेगा। ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर मौत की सजा का प्रावधान भी है। इसके अलावा जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।

दया याचिका पर भी बदला नियम

मौत की सजा पाए दोषी को अपनी सजा कम करवाने या माफ करवाने का आखिरी रास्ता दया याचिका होती है। जब सारे कानूनी रास्ते खत्म हो जाते हैं तो दोषी के पास राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर करने का अधिकार होता है। अब तक सारे कानूनी रास्ते खत्म होने के बाद दया याचिका दायर करने की कोई समय सीमा नहीं थी। लेकिन अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 472 (1) के तहत, सारे कानूनी विकल्प खत्म होने के बाद दोषी को 30 दिन के भीतर राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर करनी होगी। राष्ट्रपति का दया याचिका पर जो भी फैसला होगा, उसकी जानकारी 48 घंटे के भीतर केंद्र सरकार को राज्य सरकार के गृह विभाग और जेल के सुपरिंटेंडेंट को देनी होगी।

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भारतीय न्याय संहिता में क्या बड़े बदलाव हुए

  • भारतीय न्याय संहिता (BNS) में 20 नए अपराध जोड़े गए हैं।
  • ऑर्गेनाइज्ड क्राइम, हिट एंड रन, मॉब लिंचिंग पर सजा का प्रावधान।
  • डॉक्यूमेंट में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड शामिल हैं।
  • IPC में मौजूद 19 प्रावधानों को हटा दिया गया है।
  • 33 अपराधों में कारावास की सजा बढ़ा दी गई है।
  • 83 अपराधों में जुर्माने की सजा बढ़ा दी गई है।
  • छह अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा का प्रावधान किया गया है।ो

नकल का मामला अब गैर जमानती

  • मारपीट या दूसरे केस में डॉक्टरों को फौरन देनी होगी रिपोर्ट।
  • गंभीर केस के आरोपियों को हथकड़ी लगाकर भी कोर्ट में पेश किया जा सकेगा।
  • शादी का प्रलोभन देकर दुष्कर्म के मामलों में धारा-69 के तहत केस दर्ज होंगे।
  • गंभीर संगठित अपराध धारा-111 के दायरे में आएंगे। अभी तक धारा-34 दर्ज होती थी।
  • छोटे संगठित अपराध जैसे जुआ खेलना, परीक्षा में नकल के लिए धारा 112 के तहत केस। ये गैरजमानती हैं। अब तक जुआ में 13 जुआ एक्ट में थाने से बेल मिलती थी।
  • छोटे बच्चों को अपराध के लिए प्रेरित करने वालों पर धारा-95 के तहत कार्रवाई होगी।
  • राजद्रोह समाप्त होगा, पर अब 152 के तहत केस दर्ज होगा। सजा न्यूनतम 3 से बढ़ाकर 7 साल।
  • आम आदमी किसी को अपराध करते पकड़ लेता है तो 6 घंटे में पुलिस को सौंपना होगा।

ये हैं तीन कानूनों के प्रमुख बिंदु

(1) ऑनलाइन घटनाओं की रिपोर्ट करना: अब कोई व्यक्ति संचार के इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से घटनाओं की रिपोर्ट कर सकता है, इसके लिए उसे पुलिस स्टेशन जाने की आवश्यकता नहीं है। इससे रिपोर्टिंग आसान और त्वरित होगी, जिससे पुलिस द्वारा त्वरित कार्रवाई सुगम होगी। (बीएनएस की धारा 173)

(2) किसी भी पुलिस स्टेशन पर एफआईआर दर्ज करना: जीरो एफआईआर शुरू होने से, कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस स्टेशन पर प्राथमिकी दर्ज करा सकता है, चाहे उसका क्षेत्राधिकार कुछ भी हो। इससे कानूनी कार्यवाहियां शुरू करने में होने वाली देरी खत्म होगी और अपराध की तुरंत रिपोर्ट करना सुनिश्चित होगा। (बीएनएस की धारा 173)

(3) एफआईआर की निःशुल्क प्रति पीड़ितों को एफआईआर की निःशुल्क प्रति प्राप्त होगी, जिससे कानूनी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित होगी। (बीएनएस की धारा 173)

(4) गिरफ़्तारी होने पर सूचना देने का अधिकार: गिरफ़्तारी की स्थिति में, व्यक्ति को उनकी इच्छा के व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार है। इससे गिरफ़्तार व्यक्ति को तत्काल सहायता और सहयोग सुनिश्चित होगा। (बीएनएस की धारा 36)

(5) गिरफ्तारी की जानकारी प्रदर्शित करना: गिरफ्तारी का विवरण अब पुलिस थानों और जिला मुख्यालयों में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा, जिससे गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार और मित्रों को महत्वपूर्ण जानकारी आसानी से मिल सकेगी। (बीएनएस की धारा 37)

(6) फॉरेंसिक साक्ष्य संग्रह और वीडियोग्राफी: मामले और जांच को मजबूत करने के लिए, फॉरेंसिक विशेषज्ञों का गंभीर अपराधों के लिए अपराध स्थलों का दौरा करना और साक्ष्य एकत्र करना अनिवार्य हो गया है। इसके अतिरिक्त, साक्ष्यों से छेड़छाड़ को रोकने के लिए अपराध स्थल पर साक्ष्य संग्रह की प्रक्रिया की अनिवार्य रूप से वीडियोग्राफी की जाएगी। इस द्विआयामी नीति से जांच की गुणवत्ता और विश्वसनीयता काफी बढ़ जाएगी और निष्पक्ष रूप से न्याय दिलाने में योगदान मिलेगा। (बीएनएस की धारा 176)

(7) त्वरित जांच: नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराधों की जांच को प्राथमिकता दी गई है, ताकि सूचना दर्ज होने के दो महीने के भीतर जांच पूरी हो सके।(बीएनएस की धारा 193)

(8) पीड़ितों को मामले की प्रगति का अपडेट देना: पीड़ितों को 90 दिनों के भीतर अपने मामले की प्रगति के बारे में नियमित अपडेट प्राप्त करने का अधिकार है। इस प्रावधान से पीड़ितों को सूचित रखा जा सकेगा और वे कानूनी प्रक्रिया में शामिल रहेंगे, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी और विश्वास बढ़ेगा। (बीएनएस की धारा 193)

(9) पीड़ितों के लिए निःशुल्क चिकित्सा उपचार: नए कानून महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध के पीड़ितों को सभी अस्पतालों में निःशुल्क प्राथमिक उपचार या चिकित्सा उपचार की गारंटी देते हैं। यह प्रावधान चुनौतीपूर्ण समय में पीड़ितों की कुशलता और स्वास्थ्य लाभ को प्राथमिकता देते हुए आवश्यक चिकित्सा देखभाल तक तत्काल पहुंच सुनिश्चित करता है। (बीएनएस की धारा 397)

(10) इलेक्ट्रॉनिक समन: अब इलेक्ट्रॉनिक रूप से समन की तामील की जा सकती है, जिससे कानूनी प्रक्रियाओं में तेजी आएगी, कागजी कार्रवाई कम होगी और सभी संबंधित पक्षों के बीच समुचित संवाद सुनिश्चित होगा। (बीएनएस की धारा 64, 70, 71)

(11) महिला मजिस्ट्रेट द्वारा बयान: महिलाओं के विरुद्ध कुछ अपराधों में पीड़िता के बयान, जहां तक संभव हो, महिला मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए जाने चाहिए और अगर महिला मजिस्ट्रेट अनुपस्थित हों, तो महिला की उपस्थिति में पुरुष मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए जाने चाहिए, ताकि संवेदनशीलता और निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके तथा पीड़ितों के लिए अनुकूल वातावरण बनाया जा सके। (बीएनएस की धारा 183)

(12) पुलिस रिपोर्ट और अन्य दस्तावेज उपलब्ध कराना: आरोपी और पीड़ित दोनों को 14 दिनों के भीतर एफआईआर, पुलिस रिपोर्ट/चार्जशीट, बयान, स्वीकारोक्ति और अन्य दस्तावेजों की प्रतियां प्राप्त करने का अधिकार है। (बीएनएस की धारा 230)

(13) सीमित स्थगन: मामले की सुनवाई में अनावश्यक देरी से बचने के लिए न्यायालय अधिकतम दो स्थगन प्रदान कर सकते हैं, जिससे समय पर न्याय सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। (बीएनएस की धारा 346)

(14) गवाह सुरक्षा योजना: नए कानूनों में सभी राज्य सरकारों के लिए गवाहों की सुरक्षा और सहयोग सुनिश्चित करने, कानूनी कार्यवाही की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए गवाह सुरक्षा योजना को अनिवार्य किया गया है। (बीएनएस की धारा 398)

(15) जेंडर समावेश: “जेंडर” की परिभाषा में अब ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी शामिल हैं, जो समावेश और समानता को बढ़ावा देगा। (बीएनएस की धारा 2(10))

(16) सभी कार्यवाहियां इलेक्ट्रॉनिक मोड में होना: नए कानूनों में सभी कानूनी कार्यवाहियां इलेक्ट्रॉनिक रूप से संचालित करके, पीड़ितों, गवाहों और अभियुक्तों को सुविधा प्रदान की गई है, जिससे पूरी कानूनी प्रक्रिया सुव्यवस्थित और त्वरित होगी। (बीएनएस की धारा 530)

(17) बयानों की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग: पीड़िता को अधिक सुरक्षा प्रदान करने तथा बलात्कार के अपराध से संबंधित जांच में पारदर्शिता लाने के लिए पुलिस पीड़िता का बयान ऑडियो-वीडियो माध्यम से रिकॉर्ड करेगी। (बीएनएस की धारा 176)

(18) पुलिस स्टेशन जाने से छूट: महिलाओं, 15 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों, 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों तथा विकलांग या गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को पुलिस स्टेशन जाने से छूट दी गई है तथा वे अपने निवास स्थान पर पुलिस सहायता प्राप्त कर सकते हैं। (बीएनएस की धारा 179)

(19) महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध: महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों पर कार्रवाई करने तथा उनकी सुरक्षा और उनके लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए बीएनएस में एक नया अध्याय जोड़ा गया है। (बीएनएसका अध्याय V)

(20) जेंडर-न्यूट्रल अपराध: महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध विभिन्न अपराधों को बीएनएस में जेंडर-न्यूट्रल बना दिया गया है, जिसमें जेंडर का ध्यान रखे बिना सभी पीड़ितों और अपराधियों को शामिल किया गया है।

(21) सामुदायिक सेवा: नए कानून में छोटे-मोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा की शुरुआत की गई है, जिससे व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास और सामाजिक जिम्मेदारी को बढ़ावा मिलता है। सामुदायिक सेवा के तहत, अपराधियों को समाज में सकारात्मक योगदान देने, अपनी गलतियों से सीखने और मजबूत सामुदायिक बंधन बनाने का मौका मिलता है। (बीएनएस की धारा 4, 202, 209, 226, 303, 355, 356)

(22) अपराधों के लिए जुर्माना अपराध की गंभीरता के अनुरूप: नए कानूनों के तहत कुछ अपराधों के लिए लगाए गए जुर्माने को अपराध की गंभीरता के अनुरूप बनाया गया है, ताकि निष्पक्ष और आनुपातिक दंड सुनिश्चित हो सके, भविष्य में अपराध करने से रोका जा सके तथा कानूनी प्रणाली में जनता का विश्वास बना रहे।

(23) सरलीकृत कानूनी प्रक्रियाएं: कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है ताकि उन्हें समझना और उनका पालन करना आसान हो सके, निष्पक्ष और सुलभ न्याय सुनिश्चित हो सके।

(24) तीव्र एवं निष्पक्ष समाधान: नए कानूनों में मामलों के निश्चित रूप से तीव्र एवं निष्पक्ष समाधान की व्यवस्था है, जिससे कानूनी प्रणाली में जनता का विश्वास बढ़ेगा।

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में ऐसी है नए कानून को लेकर तैयारी

नए कानून को लेकर देश भर में तैयारियों का दौर चल रहा है। पुलिस अधिकारियों को ट्रेनिंग दी जा रही है। कुछ इसी की तैयारियां मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चल रही है। मध्यप्रदेश में तीनों कानून को लेकर सभी विवेचना अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया गया। DGP सुधीर सक्सेना ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए MP पुलिस की तैयारियों की समीक्षा भी की। इधर छत्तीसगढ़ में भी नए कानून को लेकर सेमीनार आयोजित कर अधिकारियों और पुलिस कर्मियों को ट्रेनिंग दी जा रही है।