तिरुवनंतपुरम, 23 मार्च (भाषा) केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने रविवार को इस बात पर जोर दिया कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों की प्रगति और उत्थान के लिए अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
यहां ‘दलित प्रोग्रेस कॉन्क्लेव’ में उद्घाटन भाषण देते हुए राज्यपाल ने कहा कि आजादी के दशकों के बाद भी हाशिए पर पड़े समुदायों के उत्थान के प्रयास काफी हद तक प्रतीकात्मक ही रहे हैं।
आर्लेकर ने लोगों को गांवों का दौरा करने और इन समुदायों की दुर्दशा को समझने के लिए प्रोत्साहित किया । उन्होंने परिवर्तन लाने के लिए समानुभूति की आवश्यकता पर बल दिया।
राज्यपाल ने भारतीय संविधान के निर्माता बी आर आंबेडकर को ‘विश्व रत्न’ बताते हुए कहा कि उनका जीवन, कार्य और संस्कृति ‘भारत रत्न’ के सम्मान से कहीं बढ़कर है।
उन्होंने सामाजिक परिवर्तन का आह्वान करते हुए कहा, ‘‘जब बी आर आंबेडकर पश्चिमी देशों से अध्ययन कर हमारे देश लौटे थे तब हमारे देश में ऐसा कोई नहीं था जिसके पास इतना ज्ञान और डिग्री थी… लेकिन फिर भी उन्हें कष्ट सहना पड़ा। यह हमारे समाज की सोच थी।’’
आर्लेकर ने यह भी कहा कि कई मामलों में यह सुझाव दिया गया कि धर्म बदलने से दुश्वारियां दूर हो सकती हैं लेकिन जो लोग धर्म परिवर्तन कर चुके हैं, वे अब भी दुरावस्था में हैं और वे विशेष दर्जे की मांग कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यह धर्म या आस्था नहीं, बल्कि समाज की सोच है जो मायने रखती है।’’
उन्होंने गैर-दलित समुदायों से अपनी मानसिकता बदलने की अपील करते हुए कहा कि ऐसा होने पर ही दलित वर्ग यह महसूस नहीं करेगा कि वह हाशिये पर है या सामाजिक मान्यता एवं सम्मान से वंचित है।
भाषा
शुभम राजकुमार
राजकुमार
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