नयी दिल्ली, 24 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के लिए आंतरिक शिकायत समितियों (आईसीसी) के सदस्यों की नौकरी की सुरक्षा के लिए याचिका से जुड़ा मामला ‘‘महत्वपूर्ण’’ है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने के बावजूद न तो कोई पेश हुआ और न ही कोई जवाब दाखिल किया गया।
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, ‘‘यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे इस मामले में उठाया गया है। हम इसपर गौर करेंगे। आप सॉलिसिटर जनरल को इसकी प्रति दें। अगर अगली तारीख पर कोई भी पेश नहीं होता है, तो हम एक न्याय मित्र (एमिकस क्यूरी) नियुक्त करेंगे।’’
याचिकाकर्ता आईसीसी समिति की पूर्व सदस्य जानकी चौधरी और पूर्व पत्रकार ओल्गा टेलिस हैं। पीठ ने अगले सप्ताह सुनवाई निर्धारित की है।
शीर्ष अदालत ने छह दिसंबर को याचिका पर विचार करने के लिए सहमति जताते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को नोटिस जारी किया।
जनहित याचिका में निजी कार्यस्थलों पर कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (पीओएसएच अधिनियम) के तहत गठित आंतरिक शिकायत समितियों के सदस्यों के लिए कार्यकाल की सुरक्षा और बदले की कार्रवाई से संरक्षण की मांग की गई थी।
अधिवक्ता मुनव्वर नसीम के माध्यम से दायर याचिका में दावा किया गया है कि निजी क्षेत्र में कार्यरत महिला आईसीसी सदस्यों को उसी स्तर का कार्यकाल का संरक्षण प्राप्त नहीं है, जो सार्वजनिक क्षेत्र की आईसीसी सदस्यों को प्राप्त है।
याचिका में कहा गया है कि आईसीसी सदस्यों को किसी कंपनी में यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर निर्णय लेने का दायित्व सौंपा जाता है, लेकिन यदि निर्णय निजी कार्यस्थल के वरिष्ठ प्रबंधन के विरुद्ध जाता है तो उन्हें बिना कोई कारण बताए तीन महीने के वेतन दिए जाने के साथ सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है।
इसमें कहा गया, ‘‘इससे हितों का गंभीर टकराव पैदा होता है और आईसीसी सदस्यों के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और पक्षपात रहित निर्णय लेने में बाधाएं पैदा होती हैं… यदि वे ऐसा निर्णय लेती हैं जो वरिष्ठ प्रबंधन की इच्छा के विरुद्ध जाता है, तो उन्हें उत्पीड़न और प्रतिशोध में अनुचित बर्खास्तगी और पदावनत करने जैसी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।’’
याचिका में कहा गया कि निजी क्षेत्र के आईसीसी सदस्यों के पास प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का कोई सहारा नहीं है, न ही वे अपनी बर्खास्तगी (उनके द्वारा लिए गए निर्णयों के आधार पर) को उचित मंच पर चुनौती दे सकते हैं।
भाषा आशीष माधव
माधव
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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)