नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2010 में बड़ा संशोधन करते हुए शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। संशोधनों के तहत कक्षा 5 और कक्षा 8 के छात्रों के लिए नियमित योग्यता आधारित परीक्षाओं का प्रावधान किया गया है। (The rule of general promotion for board classes is over) यदि छात्र इन परीक्षाओं में फेल होते हैं, तो उन्हें विशेष परिस्थितियों में उसी कक्षा में रोक दिया जाएगा। पहले, छात्रों को जनरल प्रमोशन के तहत अगले कक्षा में भेजा जाता था, लेकिन अब यह प्रक्रिया समाप्त कर दी गई है।
संशोधित नियमों के तहत, राज्य सरकारों के पास यह निर्णय लेने का अधिकार था कि वे नो-डिटेंशन पॉलिसी (बिना रोक-टोक प्रमोशन) को जारी रखें या इसे खत्म करें। अब तक, 18 राज्यों ने इस नीति से बाहर निकलने का निर्णय लिया है, जबकि समान संख्या में राज्यों ने इसे बनाए रखने का विकल्प चुना है। 16 दिसंबर 2024 से प्रभावी नए नियमों के अनुसार, कक्षा 5 और 8 के छात्रों के लिए हर शैक्षणिक वर्ष के अंत में योग्यता आधारित परीक्षाएं अनिवार्य होंगी।
जो छात्र इन परीक्षाओं में फेल हो जाते हैं, उन्हें अतिरिक्त निर्देश दिए जाएंगे और दो महीने के भीतर पुनः परीक्षा में बैठने का अवसर मिलेगा। हालांकि, यदि छात्र पुनः परीक्षा में भी सफल नहीं होते हैं, तो उन्हें उसी कक्षा में रोक दिया जाएगा। (The rule of general promotion for board classes is over) इसके बावजूद, कक्षा 8 तक किसी भी छात्र को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।
स्कूल शिक्षा सचिव संजय कुमार ने बताया कि यह कदम छात्रों के सीखने के परिणामों को बेहतर बनाने की दिशा में उठाया गया है। उन्होंने कहा, “हमारा उद्देश्य छात्रों की कमजोरियों को पहचानकर उन्हें अतिरिक्त समर्थन देना है। अगर सभी प्रयासों के बावजूद किसी छात्र को रोकना जरूरी हो, तो यह निर्णय लिया जाएगा।”
सचिव ने यह भी कहा कि परीक्षा प्रक्रिया रटने के बजाय समग्र विकास पर केंद्रित होगी। (The rule of general promotion for board classes is over) छात्रों को उनके सीखने के अंतराल को भरने के लिए विशेष इनपुट दिए जाएंगे। इससे न केवल शिक्षकों बल्कि छात्रों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
2009 में लागू शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत नो-डिटेंशन पॉलिसी लागू की गई थी, जिसमें कक्षा 8 तक छात्रों को बिना रोक-टोक प्रमोट किया जाता था। हालांकि, इसके खराब कार्यान्वयन के कारण 2017 में इसे समाप्त कर दिया गया। इसके बाद, 2019 में किए गए संशोधनों के तहत, राज्य सरकारों को छात्रों को रोकने की नीति पर निर्णय लेने का अधिकार दिया गया।
संशोधनों का उद्देश्य छात्रों की शिक्षा गुणवत्ता को बेहतर बनाना है। शिक्षकों को निर्देश दिया गया है कि वे छात्रों के प्रदर्शन का आकलन करते हुए उन्हें व्यक्तिगत समर्थन प्रदान करें। (The rule of general promotion for board classes is over) स्कूल प्रमुखों को उन छात्रों का रिकॉर्ड रखना होगा जिन्हें रोक दिया गया है और उनकी प्रगति की निगरानी करनी होगी। यह बदलाव शिक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण नीतिगत सुधार का प्रतीक है, जिसका उद्देश्य छात्रों को मजबूत शैक्षिक नींव प्रदान करना और उनके सीखने के परिणामों में सुधार करना है।
संशोधन के अनुसार, कक्षा 5 और 8 के छात्रों के लिए हर शैक्षणिक वर्ष के अंत में योग्यता आधारित परीक्षाएं अनिवार्य कर दी गई हैं। यदि छात्र इन परीक्षाओं में फेल होते हैं, तो उन्हें विशेष परिस्थितियों में उसी कक्षा में रोक दिया जाएगा।
फेल होने वाले छात्रों को अतिरिक्त निर्देश दिए जाएंगे और दो महीने के भीतर पुनः परीक्षा का अवसर मिलेगा। यदि वे पुनः परीक्षा में भी असफल होते हैं, तो उन्हें उसी कक्षा में रोक दिया जाएगा।
संशोधन के तहत, राज्यों को यह निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है कि वे नो-डिटेंशन पॉलिसी को बनाए रखें या इसे खत्म करें। अब तक, 18 राज्यों ने इसे समाप्त करने का निर्णय लिया है।
इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों के सीखने के परिणामों को बेहतर बनाना और शिक्षा प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाना है। यह कदम छात्रों की कमजोरियों को पहचानकर उन्हें व्यक्तिगत समर्थन प्रदान करने की दिशा में उठाया गया है।
हां, संशोधन के बावजूद, कक्षा 8 तक किसी भी छात्र को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।