एमयूडीए मामले की जड़ें तीन दशक से अधिक पुरानी |

एमयूडीए मामले की जड़ें तीन दशक से अधिक पुरानी

एमयूडीए मामले की जड़ें तीन दशक से अधिक पुरानी

:   Modified Date:  September 24, 2024 / 07:44 PM IST, Published Date : September 24, 2024/7:44 pm IST

बेंगलुरु, 24 सितंबर (भाषा) मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) मामले की जड़ें तीन दशक से भी अधिक पुरानी हैं, जिसमें कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ जांच की मंजूरी दी है।

यह मामला सिद्धरमैया की पत्नी बी एम पार्वती को कथित तौर पर मुआवजे के तौर पर मैसूरु के एक पॉश इलाके में जमीन आवंटित किए जाने से जुड़ा है, जिसका संपत्ति मूल्य उनकी उस जमीन की तुलना में अधिक था जिसे एमयूडीए ने ‘‘अधिग्रहित’’ किया था।

एमयूडीए ने पार्वती को उनकी 3.16 एकड़ भूमि के बदले 50:50 अनुपात योजना के तहत भूखंड आवंटित किए थे।

इस विवादित योजना के तहत एमयूडीए ने आवासीय ‘लेआउट’ बनाने के लिए भूमि खोने वालों को उनसे अधिग्रहित गैरविकसित भूमि के बदले में 50 प्रतिशत विकसित भूमि आवंटित की।

ऐसा आरोप है कि मैसूरु तालुक के कसाबा होबली में कसारे गांव के सर्वे नंबर 464 में स्थित 3.16 एकड़ जमीन पर पार्वती का कोई कानूनी अधिकार नहीं था।

मामला सितंबर 1992 में प्रारंभ हुआ जब ‘देवनूर लेआउट’ के तीसरे चरण के निर्माण के लिए निंगा बिन जावारा नामक व्यक्ति की 3.16 एकड़ भूमि के अधिग्रहण के लिए प्रारंभिक अधिसूचना जारी की गई। इसके बाद फरवरी 1998 में अंतिम अधिसूचना जारी की गई।

हालांकि इस भूमि को बाद में मई 1998 में विमुक्त कर दिया गया लेकिन फिर भी इसका उपयोग ‘देवनूर लेआउट’ बनाने के लिए किया गया तथा 2001 में स्थल आवंटित किए गए।

सिद्धरमैया के साले मल्लिकार्जुनस्वामी ने अगस्त 2004 में मूल धारक के एक बेटे से 3.16 एकड़ ‘‘कृषि’’ भूमि खरीदी और जुलाई 2005 में इसे गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए परिवर्तित करा लिया।

अक्टूबर 2010 में मल्लिकार्जुनस्वामी ने अपनी बहन एवं सिद्धरमैया की पत्नी पार्वती को भूमि का उपहार विलेख (गिफ्ट डीड) सौंप दिया।

प्रश्न ये उठ रहे हैं कि सिद्धरमैया के साले ने 2004 में जमीन कैसे खरीदी और पार्वती को कैसे उपहार में दे दी, जबकि 2001 में ही ‘लेआउट’ बन गया था और कई लोगों को जगह आवंटित कर दी गई थी। साथ ही यह सवाल भी उठ रहा है कि जिस भूमि को गैर-अधिसूचित किया गया था वह 2005 में गैर-कृषि भूमि में कैसे बदल दी गई।

दावा किया जाता है कि जून 2014 में पार्वती को एहसास हुआ कि एमयूडीए ने ‘देवनूर लेआउट’ विकसित करने के लिए उनकी 3.16 एकड़ जमीन बिना सहमति के अवैध रूप से अधिग्रहित कर ली है। उन्होंने अपनी जमीन के बदले में मुआवजा मांगा था। इसके बाद दिसंबर 2017 में एमयूडीए ने गलती स्वीकार करते हुए पार्वती को वैकल्पिक जमीन देने का फैसला किया था।

नवंबर 2020 में एमयूडीए ने पार्वती सहित उन सभी लोगों को 50:50 के आधार पर वैकल्पिक जमीन देने का फैसला किया जिनकी जमीन का अधिग्रहण किया गया था। जनवरी 2022 में उन्हें विजयनगर तीसरे चरण में 14 भूखंड आवंटित किए गए।

भाषा

शोभना वैभव

वैभव

 

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