रायपुर। शिव आराधना का सबसे पावन महीना सावन आज से शुरू हो गया है। मंदिरों, शिवालयों में बम भोल की गूंज सूनाई देने लगी है। शिवालयों में भक्त सुबह से ही जल से शिव का भिषेक कर रहे हैं। इस साल सावन पूरे तीस दिनों का होगा। 15 अगस्त को सावन का आखिरी दिन होगा।
हिंदू पंचांग के अनुसार ये साल का पांचवां महीना है ये महीना भगवान शिव को सबसे ज्यादा पसंद है। इसलिए इस माह शिव की आराधना से विशेष फल प्राप्त होता है। सावन के महीने में ही सबसे ज्यादा बारिश होती है लिहाज़ा इस पूरे महीने जल की प्रधानता बनी रहती है। सावन में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने का उत्तम फल मिलता है। माना जाता है कि अब अगले चार महीने तक सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव शंकर ही संभालेंगे।
सावन के महीने में सोमवार सबसे खास दिन होता है। श्रावण मास में सोमवार के व्रत का विधान है। अगर कुंवारी कन्याएं सोमवार का व्रत करती हैं तो उन्हे एक श्रेष्ठ जीवनसाथी मिलता है तो साथ ही अन्य लोगों को भी इस व्रत के विशेष फल प्राप्त होते हैं सावन महीने के सोमवार के व्रत करने से सभी शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्ट दूर हो जाते हैं।
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शिव जी को बैरागी कहा गया है इस लिए उन्हें आम ज़िन्दगी में इस्तेमाल होने वाली चीज़ें नहीं चढ़ाई जाती हैं। भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए आप उन्हें भांग-धतूरा, दूध, चंदन, और भस्म चढ़ाते हैं। कहा जाता है कि भोलेनाथ की पूजा करने से वही नहीं बल्कि सारे भगवान ख़ुश हो जाते हैं। शिव पुराण के अनुसार शिव जी के भक्तों को शिवलिंग पर कभी भी ये वस्तुएं नहीं चढ़ानी चाहिए।
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शिवलिंग पर हल्दी कभी नहीं चढ़ाई जाती है क्योंकि यह महिलाओं की सुंदरता को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होती है। और भगवान शिव तो वैसे ही सुंदर है। जिसके कारण भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग पर हल्दी नही चढाई जाती है। कुमकुम सौभाग्य का प्रतीक है जबकि भगवान शिव वैरागी हैं इसलिए शिव जी को कुमकुम नहीं चढ़ता।
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भगवान शिव को अक्षत यानी साबूत चावल अर्पित किए जाने के बारे में शास्त्रों में लिखा है। टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है इसलिए यह शिव जी को नहीं चढ़ता।
शिव पुराण के अनुसार जालंधर नाम का असुर भगवान शिव के हाथों मारा गया था। जालंधर को एक वरदान मिला हुआ था कि वह अपनी पत्नी की पवित्रता की वजह से उसे कोई भी अपराजित नहीं कर सकता है। लेकिन जालंधर को मारने के लिए भगवान विष्णु को जालंधर की पत्नी तुलसी की पवित्रता भंग करना पड़ा। अपने पति की मौत से नाराज़ तुलसी ने भगवान शिव का बहिष्कार कर दिया था। तिल भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ मान जाता है इसलिए इसे भगवान शिव को नहीं अर्पित किया जाना चाहिए।
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केतकी के फूल पर एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले।
छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुंच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहां प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की एक सिर काट दिया और केतकी के फूल को श्राप दिया कि शिव जी की पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होगा।
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भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध किया था। शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है जो भगवान विष्णु का भक्त था। इसलिए विष्णु भगवान की पूजा शंख से होती है शिव की नहीं। नारियल देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है जिनका संबंध भगवान विष्णु से है इसलिए शिव जी को नहीं चढ़ता।
आज से सावन की शुरूआत