नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगों पर कथित रूप से आधारित एक फिल्म के निर्माताओं ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि वे केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) की मंजूरी मिलने के बाद ही इसे सिनेमाघरों में प्रदर्शित करेंगे।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने इस मामले में याचिकाकर्ताओं के वकील, केंद्र, सीबीएफसी, फिल्म के निर्माता और निर्देशक तथा निर्वाचन आयोग का पक्ष सुना और कहा कि वह याचिका पर विचार करेंगे तथा उपयुक्त निर्णय देंगे।
निर्माताओं की यह प्रतिक्रिया तीन याचिकाओं पर आई, जिसमें छात्र कार्यकर्ता शरजील इमाम द्वारा दायर याचिका भी शामिल है। उक्त याचिका में विभिन्न आधार पर फिल्म का प्रदर्शन रोकने की मांग की गई है।
अदालत ने उन याचिकाकर्ताओं के अंतरिम अनुरोध पर कोई आदेश पारित नहीं किया, जिसमें याचिकाओं के लंबित रहने के दौरान फिल्म की रिलीज को रोकने की मांग की गई थी।
न्यायाधीश ने अपने कक्ष में फिल्म का ट्रेलर देखा।
सुनवाई के दौरान निर्माताओं के वकील ने कहा कि उन्होंने फिल्म प्रमाणन के लिए सीबीएफसी के पास आवेदन किया है और फिल्म को आम लोगों के लिए प्रदर्शित नहीं किया जाएगा, जब तक कि प्रमाणपत्र नहीं मिल जाता।
इस फिल्म को दिल्ली विधानसभा चुनाव से तीन दिन पहले दो फरवरी को रिलीज किए जाने का कार्यक्रम है।
फरवरी 2020 के दंगों के एक मामले में मुकदमे का सामना कर रहे इमाम ने दावा किया कि पोस्टर और प्रचार वीडियो, जिनमें फिल्म का टीजर और ट्रेलर शामिल हैं, का उद्देश्य उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों और संबद्ध घटनाओं के पीछे एक बड़ी साजिश की झूठी कहानी बयां करना है।
इमाम के अलावा, पांच अन्य लोगों ने एक अलग याचिका दायर की है, जिसमें उनमें से कुछ से जुड़े आपराधिक मामलों का निस्तारण होने तक फिल्म पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ रहे उमंग नाम के व्यक्ति ने भी चुनाव खत्म होने तक फिल्म पर रोक लगाने के लिए याचिका दायर की है।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 24 फरवरी 2020 को भड़की सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम 53 लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हुए थे।
अधिवक्ता महमूद प्राचा और जतिन भट्ट द्वारा प्रतिनिधित्व किये जा रहे पांच याचिकाकर्ताओं ने कहा कि फिल्म ‘‘2020 दिल्ली’’ के ट्रेलर का उद्देश्य दंगों से जुड़ी घटनाओं का विकृत, गलत और झूठा वर्णन प्रस्तुत करना है।
प्राचा ने कहा कि ट्रेलर में दावा किया गया है कि फिल्म 2020 के दंगों की सच्ची घटनाओं से प्रेरित है और यहां तक कि ट्रेलर को सीबीएफसी द्वारा प्रमाणन की आवश्यकता है क्योंकि यह फिल्म का एक हिस्सा था।
इमाम के वकील ने कहा कि फिल्म के ट्रेलर में उनके मुवक्किल का संदर्भ दिया गया है, जो उनके लिए पूर्वाग्रहपूर्ण है और उनके लंबित मामले को जोखिम में डालता है।
अधिवक्ता ने कहा कि ट्रेलर की शुरुआत एक व्यक्ति के भाषण से होती है, जिसे इमाम के रूप में चित्रित किया गया है, और जो शब्द कहे गए हैं, वे वही हैं जो इमाम ने दंगों के मामले में निचली अदालत में लंबित आरोपपत्र में कहे हैं।
उन्होंने दलील दी, ‘‘उन्होंने मेरी पहचान छिपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं की। ये टिप्पणियां आरोपपत्र में लिखी बातों से मिलती-जुलती हैं और यहां तक कि जिस तरह के उन्होंने कपड़े पहने हैं, वे भी उसी तरह के हैं।’’
उन्होंने कहा कि बड़े षड्यंत्र के मामले में आरोप अभी तय होने बाकी हैं। यह दिल्ली की एक अदालत के समक्ष लंबित आरोपों पर बहस के महत्वपूर्ण चरण में है।
इमाम की जमानत याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है।
फिल्म निर्देशक देवेंद्र मालवीय और निर्माता नंदकिशोर मालवीय, आशु मालवीय और अमित मालवीय के वकील ने कहा कि ट्रेलर में यह ‘डिस्क्लेमर’ है कि यह सच्ची घटनाओं से प्रेरित एक काल्पनिक कथा है।
‘डिस्क्लेमर’ में कहा गया है कि फिल्म निर्माताओं ने फिल्म में नाटकीयता के लिए सिनेमाई स्वतंत्रता ली है और घटनाओं की सटीकता का या तथ्यात्मकता का दावा नहीं किया गया है।
हालांकि, अदालत के सुझाव पर, निर्माता इसे और संशोधित करने के लिए सहमत हुए।
भाषा सुभाष रंजन
रंजन
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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)