नयी दिल्ली, 17 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जारी हाल के उन निर्देशों पर रोक लगा दी है, जिसमें पुलिस को निर्देश दिया गया था कि वह उन मामलों में धोखाधड़ी, जालसाजी या आपराधिक विश्वासघात के लिए प्राथमिकी दर्ज करने से पहले सरकार की कानूनी राय ले, जहां ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक दीवानी विवाद है।
न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया और उच्च न्यायालय के फैसले के कुछ पैराग्राफ पर रोक लगा दी, जिनमें प्राधिकारों को कई निर्देश जारी किए गए थे।
पीठ ने 14 अगस्त के अपने निर्देश में कहा, ‘‘नोटिस जारी किया जाता है। इस पर चार सप्ताह में जवाब दिया जाए। आपराधिक याचिका पर पारित 18 अप्रैल, 2024 के आदेश के पैराग्राफ 15 से 17 का संचालन और कार्यान्वयन अगली सुनवाई तक स्थगित रहेगा।’’
उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है, क्योंकि आदेश का पालन न करने पर अवमानना कार्रवाई की चेतावनी दी गई थी।
उच्च न्यायालय ने भूमि के मालिकाना हक से संबंधित एक दीवानी विवाद की सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया जिसमें मजिस्ट्रेट ने पुलिस को धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक विश्वासघात के लिए प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया।
उच्च न्यायालय ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि दीवानी विवादों को तेजी से आपराधिक मामलों का रंग दिया जा रहा है तथा उसने प्राधिकारों और पुलिस को कई निर्देश जारी किए।
शीर्ष अदालत ने पैराग्राफ 15 पर रोक लगा दी।
उच्च न्यायालय ने पुलिस महानिदेशक को राज्य के सभी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को आवश्यक निर्देश जारी करने का निर्देश दिया था, जो अपने-अपने थानों के सभी प्रभारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देंगे कि जहां कोई दीवानी/वाणिज्यिक विवाद स्पष्ट हो, वहां प्राथमिकी दर्ज करने से पहले संज्ञान-पूर्व चरण में जिला/उप सरकारी वकील की राय ली जानी चाहिए।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि उत्तर प्रदेश के अभियोजन निदेशक यह भी सुनिश्चित करेंगे कि सभी सरकारी वकीलों को आवश्यक निर्देश जारी किये जाएं।
भाषा आशीष सुरेश
सुरेश
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)