चेन्नई, नौ जनवरी (भाषा) तमिलनाडु विधानसभा ने बृहस्पतिवार को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नए विनियम 2025 को तुरंत वापस लेने का आग्रह किया। विधानसभा ने यूजीसी विनियम 2025 को संविधान और संघवाद के मूल सिद्धांत के खिलाफ बताया।
भाजपा की सहयोगी पीएमके समेत सभी राजनीतिक दलों के समर्थन से पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि इससे तमिलनाडु की उच्च शिक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंच सकता है।
विपक्षी एआईएडीएमके ने भी प्रस्ताव पर द्रमुक और उसके सहयोगियों का समर्थन किया।
हालांकि, भाजपा नेता नैनार नागेंद्रन ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि केवल मसौदा प्रस्ताव ही जारी किया गया है।
नागेंद्रन ने कहा, ‘सुझाव और सिफारिशें देने के लिए पांच फरवरी तक का समय है।’
उन्होंने प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करने की बात कहते हुए अपनी पार्टी के विधायकों के साथ सदन से बहिर्गमन किया।
प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा कि यूजीसी विनियम 2025 का नया मसौदा (जिसे केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने छह जनवरी को नयी दिल्ली में जारी किया) कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यपालों को सशक्त बनाता है, जिससे विश्वविद्यालय ‘बर्बाद’ हो जाएंगे।
मसौदा दिशानिर्देश राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के आधार पर तैयार किए गए हैं।
प्रस्ताव पर बोलते हुए स्टालिन ने कहा, ‘हमें यह मजूर नहीं। राज्यपालों को मनमाने ढंग से कुलपतियों की नियुक्ति करने के लिए अधिक अधिकार देना सही नहीं है… …इसे उन राज्यों के अधिकारों को हड़पने का प्रयास माना जाना चाहिए जिन्होंने अपने संसाधनों से विश्वविद्यालयों को बनाया है।’
उन्होंने दावा किया कि यह कदम संविधान और संघवाद के मूल सिद्धांत के खिलाफ है।
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर देश में सबसे अधिक शैक्षणिक संस्थानों वाले तमिलनाडु की स्वायत्तता छीनी जाएगी तो वह शांत नहीं बैठेगा।
उन्होंने आगे कहा कि अगर केंद्र सरकार इस प्रस्ताव के बाद भी अपना विचार नहीं बदलती है तो सरकार अदालत का दरवाजा खटखटाएगी।
भाषा
शुभम पवनेश
पवनेश
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