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अजमेरः Anjuman Committee on Waqf Act: राजस्थान के अजमेर शरीफ दरगाह अंतर्गत अंजुमन सैय्यद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने बुधवार को एक प्रेस वार्ता कर वक्फ (संशोधन) अधिनियम-2025 पर अपनी बात रखी। उन्होंने इस कानून को गलत ठहराते हुए मुसलमानों के खिलाफ साजिश बताया। चिश्ती ने कहा कि कुछ लोग इस कानून के पक्ष में चाटुकारिता कर रहे हैं, जो समाज के लिए घातक है। उन्होंने साफ किया कि अंजुमन इस कानून का विरोध करता है और इसे तुरंत रद्द करने की मांग करता है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस कानून को खारिज करने की अपील करते हुए कहा कि आवश्यकता पड़ी तो अंजुमन आंदोलन भी करेगा।
Anjuman Committee on Waqf Act: चिश्ती ने कहा कि अगर वक्फ से लाभ लेने के लिए धार्मिक रूप से पालन करने वाला मुसलमान होना जरूरी है, तो क्या उनके धार्मिक आचरण पर निगरानी रखने के लिए चेंबर में कैमरे लगाए जाएंगे? उन्होंने कहा कि “वक्फ बाय यूजर” को खत्म कर दिया गया है और सीमितता अधिनियम लागू किया जा रहा है, जिससे किराएदार ही मालिक बन सकता है, जो पूरी तरह अनुचित है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार गैर-मुसलमानों को वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ बोर्ड में शामिल करना चाहती है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (धार्मिक आधार पर भेदभाव का निषेध), अनुच्छेद 26 (धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन) और अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यकों की सांस्कृतिक स्वतंत्रता) का सीधा उल्लंघन है।उन्होंने सवाल उठाया कि जब हिंदुओं के लिए एंडोमेंट बोर्ड, सिखों के लिए प्रबंधन कमेटी और जैन समाज के लिए उनके स्वयं के बोर्ड हैं, तो वक्फ बोर्ड में भी केवल मुस्लिम समुदाय के लोग ही होने चाहिए। सैयद सरवर चिश्ती ने कानून बीजेपी के सांप्रदायिक एजेंडे का हिस्सा बताते हुए कहा कि जब संसद में यह अधिनियम पारित हुआ, तो ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए गए, जिससे स्पष्ट होता है कि यह कानून बीजेपी के सांप्रदायिक एजेंडे का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि आप हमारे हितैषी कब से हो गए? पिछले 11 वर्षों में तीन तलाक, लव जिहाद, सीएए, यूसीसी, वक्फ एक्ट, मॉब लिंचिंग, यूएपीए, मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों और दरगाहों को निशाना बनाया जा रहा है। कोई यह न समझे कि मुसलमान इससे अछूते रहेंगे। हमें अपनी नस्लों को इसका जवाब देना होगा।
उन्होंने कहा कि उन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भी देखा है, जिसने तीन तलाक और बाबरी मस्जिद जैसे मामलों में ठोस नेतृत्व नहीं दिया। अब जरूरत है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का रवैया आक्रामक हो, जिसका मतलब हिंसा कतई नहीं बल्कि वह सभी मुस्लिम समुदायों के प्रभावशाली और सक्रिय लोगों को शामिल कर एकमत से निर्णय ले। उन्होंने कहा कि केवल मंच की सजावट के लिए बैठे लोगों से कोई लाभ नहीं होगा, बिना बलिदान दिए और बिना सड़कों पर उतरे बात नहीं बनेगी।