नयी दिल्ली: Supreme Court reprimanded Maharashtra govt उच्चतम न्यायालय ने वन भूमि पर इमारतों के निर्माण और प्रभावित निजी पक्ष को मुआवजा देने के मामले में जवाब दाखिल नहीं करने को लेकर बुधवार को महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र सरकार के पास ‘लाडली बहना’ और ‘लड़का भाऊ’ जैसी योजनाओं के तहत मुफ्त चीजें बांटने के लिए धनराशि है, लेकिन जमीन के नुकसान की भरपाई के लिए धन नहीं है।
Supreme Court reprimanded Maharashtra govt न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 13 अगस्त तक का समय देते हुए कहा कि यदि आदेश का पालन नहीं किया गया तो मुख्य सचिव को न्यायालय में पेश होना होगा। उच्चतम न्यायालय महाराष्ट्र में वन भूमि पर इमारतों के निर्माण से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रहा था, जहां एक निजी पक्ष ने शीर्ष अदालत से उस भूमि पर कब्जा पाने में सफलता प्राप्त कर ली है, जिस पर राज्य सरकार ने ‘अवैध रूप से कब्जा’ किया था।
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महाराष्ट्र सरकार ने दावा किया है कि उक्त भूमि पर आयुध अनुसंधान विकास प्रतिष्ठान संस्थान (एआरडीईआई) का कब्जा था, जो केंद्र के रक्षा विभाग की एक इकाई थी। सरकार ने कहा कि बाद में एआरडीईआई के कब्जे वाली जमीन के बदले निजी पक्ष को दूसरी जमीन आवंटित कर दी गई। हालांकि, बाद में पता चला कि निजी पक्ष को आवंटित जमीन को वन भूमि के रूप में अधिसूचित किया गया था।
उच्चतम न्यायालय की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा, ‘‘तेइस जुलाई के हमारे आदेश के अनुसार, हमने आपको (राज्य सरकार को) हलफनामे पर भूमि के स्वामित्व पर अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। अगर आप अपना जवाब दाखिल नहीं करेंगे तो हम आपके मुख्य सचिव को अगली बार यहां उपस्थित रहने को कहेंगे… आपके पास ‘लाडली बहना’ और ‘लड़का भाऊ’ के तहत मुफ्त सामान बांटने के लिए पैसे हैं, लेकिन जमीन के नुकसान की भरपाई के लिए पैसे नहीं हैं।’’
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