'भड़काऊ' गीत मामला: न्यायालय ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ प्राथमिकी खारिज की |

‘भड़काऊ’ गीत मामला: न्यायालय ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ प्राथमिकी खारिज की

'भड़काऊ' गीत मामला: न्यायालय ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ प्राथमिकी खारिज की

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Modified Date: March 28, 2025 / 04:58 PM IST
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Published Date: March 28, 2025 4:58 pm IST

नयी दिल्ली, 28 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने भड़काऊ गीत वाला एक संपादित वीडियो साझा करने के आरोप में कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी को शुक्रवार को खारिज करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का अभिन्न अंग है।

विचारों की अभिव्यक्ति की वकालत करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि मौखिक या लिखित शब्दों के प्रभाव का आकलन उन लोगों के मानकों के आधार पर नहीं किया जा सकता, जिनमें हमेशा असुरक्षा की भावना रहती है या जो आलोचना को अपनी शक्ति या पद के लिए हमेशा खतरा मानते हैं।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना अदालत का कर्तव्य है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि मौखिक या लिखित शब्दों को लेकर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 196 के तहत अपराध के संबंध में फैसला किसी तर्कसंगत एवं मजबूत दिमाग वाले दृढ़ एवं साहसी व्यक्ति के मानकों के आधार पर करना होगा, न कि कमजोर एवं अस्थिर दिमाग वाले लोगों के मानकों के आधार पर।

उसने कहा, ‘‘व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूहों द्वारा विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति स्वस्थ और सभ्य समाज का अभिन्न अंग है। विचारों और दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना वह सम्मानजनक जीवन जीना असंभव है, जिसकी गारंटी संविधान के अनुच्छेद 21 में दी गई है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘किसी स्वस्थ लोकतंत्र में विचारों, सोच और मतों का विरोध किसी अन्य दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए। भले ही बड़ी संख्या में लोग किसी के व्यक्त विचारों को नापसंद करते हों, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए। कविता, नाटक, फिल्म, व्यंग्य और कला सहित साहित्य मानव जीवन को अधिक सार्थक बनाते हैं।’’

उसने कहा, ‘‘नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें बनाए रखना अदालतों का कर्तव्य है। कभी-कभी हम न्यायाधीशों को मौखिक या लिखित शब्द पसंद नहीं आते, लेकिन फिर भी अनुच्छेद 19(1) के तहत मौलिक अधिकारों को बनाए रखना हमारा कर्तव्य है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम न्यायाधीशों का संविधान और संबंधित आदर्शों को बनाए रखने का दायित्व है। मौलिक अधिकारों की रक्षा करना न्यायालय का कर्तव्य है।’’

न्यायालय ने कहा कि संवैधानिक अदालतों को नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने में सबसे आगे रहना चाहिए।

पीठ ने कहा, ‘‘यह सुनिश्चित करना न्यायालय का परम कर्तव्य है कि संविधान और उसके आदर्शों का उल्लंघन न हो।’’

कांग्रेस नेता ने गुजरात उच्च न्यायालय के 17 जनवरी के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की उनकी याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि जांच अभी प्रारंभिक चरण में है।

जामनगर शहर में आयोजित एक सामूहिक विवाह समारोह की पृष्ठभूमि में कथित रूप से भड़काऊ गीत सोशल मीडिया पर ‘पोस्ट’ करने के लिए प्रतापगढ़ी के खिलाफ तीन जनवरी को मामला दर्ज किया गया था।

प्रतापगढ़ी पर धर्म, नस्ल आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने से संबंधित भारतीय न्याय संहिता की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।

इस 46 सेकंड की वीडियो क्लिप में दिखाया गया है कि जब प्रतापगढ़ी अपने हाथ लहराते हुए चल रहे हैं तो उन पर फूल बरसाए जा रहे हैं और पृष्ठभूमि में एक गाना सुनाई दे रहा है। इस गाने के बारे में प्राथमिकी में कहा गया है कि इसमें ऐसे बोल का इस्तेमाल किया गया जो भड़काऊ, राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले हैं।

भाषा सिम्मी सुरेश

सुरेश

 

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