नयी दिल्ली, 17 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में अवैध निर्माण पर अंकुश लगाने के लिए कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि केवल प्रशासनिक देरी, समय बीतने या मौद्रिक निवेश के आधार पर अनधिकृत निर्माण को वैध नहीं ठहराया जा सकता।
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि निर्माण के बाद भी उल्लंघन के मामले में त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए, जिसमें अवैध हिस्से को ध्वस्त करना और दोषी अधिकारियों पर जुर्माना लगाना शामिल है।
पीठ ने मेरठ में एक आवासीय भूखंड में अनधिकृत व्यावसायिक निर्माण को ध्वस्त करने के फैसले को भी बरकरार रखा और शहरी नियोजन कानूनों के सख्त अनुपालन और अधिकारियों की जवाबदेही की आवश्यकता पर बल दिया।
न्यायालय ने शहरी विकास और प्रवर्तन को सुव्यवस्थित करने के लिए व्यापक जनहित में कई व्यापक निर्देश जारी किए।
न्यायालय ने कहा, ‘‘हमारा विचार है कि स्थानीय प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत भवन योजना का उल्लंघन करके या उससे विचलन करके किए गए निर्माण और बिना किसी भवन योजना अनुमोदन के दुस्साहसिक तरीके से किए गए निर्माण को प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता। प्रत्येक निर्माण नियमों का कड़ाई से पालन करते हुए और उनका पालन करते हुए किया जाना चाहिए।’’
पीठ ने कहा कि यदि कोई उल्लंघन अदालतों के संज्ञान में लाया जाता है, तो उसे ‘कठोरता से रोका जाएगा’ क्योंकि किसी भी तरह की नरमी ‘गलत सहानुभूति’ दिखाने के समान होगी।
उसने कहा, ‘‘अवैधताओं को सुधारने के निर्देश देने में देरी, प्रशासनिक विफलता, विनियामक अक्षमता, निर्माण और निवेश की लागत, संबंधित प्राधिकारियों की ओर से अधिनियम के तहत अपने दायित्वों को निभाने में लापरवाही और ढिलाई, अवैध/अनधिकृत निर्माणों का बचाव करने के लिए ढाल के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।’’
पीठ ने कहा कि नियमितीकरण योजनाओं को केवल असाधारण परिस्थितियों में और विस्तृत सर्वेक्षण के बाद आवासीय घरों के लिए एक बार के उपाय के रूप में लाया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा, ‘‘अनधिकृत निर्माण, निवासियों और आसपास रहने वाले नागरिकों के जीवन के लिए खतरा पैदा करने के अलावा, बिजली, भूजल और सड़कों तक पहुंच जैसे संसाधनों पर भी प्रभाव डालते हैं, जिन्हें मुख्य रूप से व्यवस्थित विकास और अधिकृत गतिविधियों में उपलब्ध कराने के लिए डिज़ाइन किया गया है।’’
उच्चतम न्यायालय ने 36-पृष्ठ के अपने फैसले में कहा कि बिल्डरों को बिना पूर्णता/अधिभोग प्रमाण पत्र के इमारतों को न सौंपने का संकल्प लेना चाहिए और निर्माण के दौरान स्वीकृत भवन योजनाओं को प्रदर्शित किया जाना चाहिए, जिसमें समय-समय पर निरीक्षण दर्ज किए जाने चाहिए।
उसने कहा कि बिल्डर या डेवलपर या मालिक को निर्माण स्थल पर ‘निर्माण की पूरी अवधि के दौरान स्वीकृत योजना की एक प्रति’ प्रदर्शित करनी चाहिए और संबंधित अधिकारियों को समय-समय पर परिसर का निरीक्षण करना चाहिए तथा अपने आधिकारिक रिकॉर्ड में ऐसे निरीक्षण का रिकॉर्ड रखना चाहिए।
पीठ ने कहा कि निरीक्षण के पश्चात तथा यह संतुष्ट होने पर कि भवन बिना किसी विचलन के अनुमति के अनुसार निर्मित किया गया है, संबंधित प्राधिकरण द्वारा बिना किसी अनावश्यक विलम्ब के पूर्णता तथा अधिभोग प्रमाण-पत्र जारी किए जाएंगे।
उसने कहा, ‘‘यदि कोई विचलन पाया जाता है, तो अधिनियम के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए तथा पूर्णता/अधिभोग प्रमाण-पत्र जारी करने की प्रक्रिया को स्थगित कर दिया जाना चाहिए, जब तक कि इंगित विचलनों को पूरी तरह से ठीक नहीं कर लिया जाता है।’’
उसने कहा, ‘‘बिजली, जलापूर्ति तथा सीवेज जैसे सभी आवश्यक सेवा कनेक्शन सेवा प्रदाताओं द्वारा पूर्णता तथा अधिभोग प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने के पश्चात ही भवन दिए जाने चाहिए।’’
उसने कहा, ‘‘पूर्णता प्रमाण-पत्र जारी करने के पश्चात भी, यदि नियोजन अनुमति के विपरीत कोई विचलन/उल्लंघन प्राधिकरण के ध्यान में लाया जाता है, तो संबंधित प्राधिकरण द्वारा बिल्डर/स्वामी/अधिभोगी के विरुद्ध कानून के अनुसार तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए…।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘पूर्णता प्रमाण-पत्र जारी न किए जाने के विरुद्ध या अनधिकृत निर्माण को नियमित करने या विचलन में सुधार आदि के लिए यदि मालिक या बिल्डर द्वारा कोई आवेदन दायर किया जाता है, तो संबंधित प्राधिकरण द्वारा लंबित अपीलों/संशोधनों सहित उसका यथासंभव शीघ्रता से निपटारा किया जाएगा, किसी भी स्थिति में वैधानिक रूप से निर्धारित 90 दिनों से अधिक समय नहीं लगना चाहिए।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘किसी भी निर्देश का उल्लंघन करने पर अवमानना कार्यवाही शुरू की जाएगी…।’
उसने कहा कि बैंक और वित्तीय संस्थानों को किसी भी भवन के निर्माण के बाद उसके निर्माण पूरा होने के प्रमाण पत्र की पुष्टि करने के बाद ही उसके लिए ऋण देना चाहिए।
शीर्ष न्यायालय ने अपने रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि वे सभी उच्च न्यायालयों को निर्णय की एक प्रति प्रसारित करें, ताकि वे ऐसे विवादों पर विचार करते समय इसे संदर्भित कर सकें।
यह निर्णय कई अपीलों से संबंधित है, जिसमें एक अपील राजेंद्र कुमार बड़जात्या द्वारा दायर की गई थी। राजेंद्र कुमार बड़जात्या उक्त अपील इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2014 के एक निर्णय के विरुद्ध दायर की थी। अदालत ने मेरठ के शास्त्री नगर में एक भूखंड पर अवैध संरचनाओं को ध्वस्त करने का निर्देश दिया था।
उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा और देश में ऐसी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए कई निर्देश पारित किए।
भाषा अमित सुरेश
सुरेश
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
किसान 18 दिसंबर को न्यायालय की ओर से गठित समिति…
27 mins ago