उच्चतम न्यायालय ने आरोपी पत्रकार के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न करने का निर्देश दिया |

उच्चतम न्यायालय ने आरोपी पत्रकार के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न करने का निर्देश दिया

उच्चतम न्यायालय ने आरोपी पत्रकार के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न करने का निर्देश दिया

:   Modified Date:  October 24, 2024 / 05:40 PM IST, Published Date : October 24, 2024/5:40 pm IST

नयी दिल्ली, 24 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को उत्तर प्रदेश में एक महिला पत्रकार के खिलाफ दर्ज चार प्राथमिकियों के सिलसिले में उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति पी. के. मिश्रा और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने पत्रकार ममता त्रिपाठी की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिका में प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया गया है।

त्रिपाठी ने दावा किया कि ये प्राथमिकी राजनीति से प्रेरित है और प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने के प्रयास के तहत दर्ज की गई हैं।

उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘यह निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता (त्रिपाठी) के खिलाफ संबंधित लेख के संबंध में कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाये।’’

मामले की सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।

त्रिपाठी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि अभिषेक उपाध्याय नामक एक पत्रकार ने पहले उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और राज्य में ‘‘सामान्य प्रशासन में जाति विशेष की सक्रियता’’ संबंधी एक कथित रिपोर्ट के लिए उनके खिलाफ प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया था।

दवे ने उपाध्याय की याचिका पर उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि वह त्रिपाठी के खिलाफ दर्ज इन प्राथमिकियों में से एक में सह-आरोपी हैं और उनकी याचिका पर शीर्ष अदालत ने अक्टूबर की शुरुआत में उन्हें किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण प्रदान किया था।

उपाध्याय मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि पत्रकारों के खिलाफ केवल इसलिए आपराधिक मामला नहीं दर्ज किया जाना चाहिए क्योंकि उनके लेखन को सरकार की आलोचना के रूप में देखा जाता है।

दवे ने कहा कि यह सरासर उत्पीड़न है। उन्होंने कहा कि पत्रकारों के खिलाफ केवल ‘एक्स’ पर उनकी पोस्ट के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई है।

अधिवक्ता अमरजीत सिंह बेदी के जरिये दायर अपनी याचिका में त्रिपाठी ने कहा कि चार प्राथमिकी क्रमशः अयोध्या, अमेठी, बाराबंकी और लखनऊ में दर्ज की गई थीं।

याचिका में कहा गया है, ‘‘ये प्राथमिकी राजनीति से प्रेरित हैं और याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करके प्रेस की स्वतंत्रता को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है।’’

इसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता ने अपनी खबरों के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य में घटित तथ्यों और घटनाओं की जानकारी देने का प्रयास किया है।

याचिका में कहा गया है, ‘‘यह कहा गया है कि स्वतंत्र प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है और उसे तथ्य, राय और विश्लेषण प्रकाशित करने से नहीं रोका जा सकता, चाहे वह सत्ताधारी प्रतिष्ठान को कितना भी अप्रिय क्यों न लगे।’’

अनुच्छेद 19(1)(ए) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि पत्रकारों को यहां उपलब्ध संरक्षण इस बात की पुष्टि करता है कि सरकार की नीति की आलोचना प्राथमिकी का आधार नहीं बन सकती।

भाषा

देवेंद्र संतोष

संतोष

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)