उच्चतम न्यायालय ने 1995 के हिरासत में मौत मामले में खंडित फैसला सुनाया |

उच्चतम न्यायालय ने 1995 के हिरासत में मौत मामले में खंडित फैसला सुनाया

उच्चतम न्यायालय ने 1995 के हिरासत में मौत मामले में खंडित फैसला सुनाया

:   Modified Date:  September 25, 2024 / 10:28 PM IST, Published Date : September 25, 2024/10:28 pm IST

नयी दिल्ली, 25 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने 1995 में एक व्यक्ति की हिरासत में हुई मौत के मामले में बुधवार को खंडित फैसला सुनाया, जिसमें एक न्यायाधीश ने आरोपी पुलिसकर्मियों को गैर इरादतन हत्या के आरोप से बरी कर दिया, जबकि दूसरे न्यायाधीश ने तीखी टिप्पणियों के साथ उन्हें उसी अपराध के लिए दोषी ठहराया।

न्यायमूर्ति संजय कुमार ने न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार के उस विचार से असहमति जताई जिसमें पुलिसकर्मियों को गैर इरादतन हत्या के आरोप से बरी किया गया था। उन्होंने कहा, ‘‘यह सही समय है कि हमारी न्याय व्यवस्था पुलिस की ज्यादतियों के खतरे का सामना करे और इस तरह की अमानवीय प्रथाओं को रोकने के लिए एक प्रभावी तंत्र स्थापित करके इससे निपटे।’’

न्यायमूर्ति कुमार ने अपने असहमतिपूर्ण फैसले में लिखा, ‘‘तथ्य यह है कि जब पुलिस द्वारा हिरासत में यातना देने के लिए पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत किए जाते हैं, तो पुलिस को स्वयं अपनी बेगुनाही साबित करनी होती है, चाहे वह पुलिस हिरासत में मौत का मामला हो या फिर पीड़ित के लापता होने या गायब होने का मामला हो।’’

उन्होंने कहा कि केवल इसलिए कि आरोपी पुलिसकर्मी इतने चतुर थे कि उन्होंने ‘‘शमा (मृतक) के उनकी हिरासत से भागने की कहानी बना ली’’, उन्हें बरी नहीं किया जा सकता।

एक विशेषज्ञ का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति कुमार ने कहा, ‘‘पुलिस हिरासत में किसी व्यक्ति को प्रताड़ित करना या उसकी हत्या करना, हल्के शब्दों में कहें तो, अवैध है। लेकिन असली सवाल यह है कि जब सोने में जंग लग जाए तो लोहा क्या कर सकता है? सवाल यह उठता है कि क्या अदालतें पुलिस पर पुलिस को तैनात कर सकती हैं?’’

न्यायमूर्ति कुमार ने कहा, ‘‘इसके विपरीत, मैं उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि किए गए अपीलकर्ताओं की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखूंगा तथा सभी अपीलों को खारिज करूंगा।’’

दूसरी ओर, न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार ने आरोपी पुलिसकर्मियों को बंदी की हत्या के आरोप से बरी कर दिया।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, कथित हिस्ट्रीशीटर शमा उर्फ ​​काल्या को महाराष्ट्र के गोंदिया में विजय अग्रवाल के आवास पर सेंधमारी की घटना के संबंध में पूछताछ के लिए पुलिस हिरासत में लिया गया था।

इसके अनुसार उस पर सात दिसंबर 1995 को एक लाख रुपये से अधिक मूल्य की वस्तुएं चोरी करने का आरोप लगाया गया और उसे हिरासत में यातनाएं दी गईं, जिसके परिणामस्वरूप 22 दिसंबर को उसकी मौत हो गई।

पुलिस ने उसे हिरासत में रखते हुए उसकी गिरफ्तारी दर्ज नहीं की।

बाद में, मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के तिरोड़ी पुलिस थाने के अंतर्गत एक जंगल में एक अज्ञात शव मिला, जिसे जला दिया गया था।

यह भी आरोप लगाया गया कि ‘जघन्य अपराध’ करने के बाद, आरोपी पुलिसकर्मियों ने हिरासत में मौत के अभियोजन से बचने के लिए एक मामला गढ़ा और झूठे साक्ष्य गढ़े।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, बाद में उन्होंने दीपक लोखंडे को शमा के रूप में इस्तेमाल करके यह दावा किया कि आरोपी उनकी हिरासत से भाग गया और पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर इसे साबित करने के लिए रिकॉर्ड में हेराफेरी की।

अभियोजन पक्ष ने कहा कि पुलिसकर्मियों ने लोखंडे को अपनी जीप से भगा दिया ताकि ऐसा लगे कि शमा हिरासत से भाग गया है।

भाषा देवेंद्र वैभव नरेश

नरेश

 

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