नयी दिल्ली, आठ नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को संविदा संबंधी विवादों में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा मध्यस्थों की एकतरफा नियुक्ति के खिलाफ फैसला सुनाते हुए कहा कि इस तरह की प्रथाएं संविधान के तहत गारंटीकृत निष्पक्षता, न्याय और समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं।
शीर्ष अदालत ने माना कि मध्यस्थों की नियुक्ति के लिए सार्वजनिक-निजी अनुबंधों में एकतरफा नियुक्ति खंड संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने जटिल कानूनी मुद्दों पर तीन अलग-अलग और सहमति वाले फैसले सुनाए।
अपने और न्यायमूर्ति पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मिश्रा के लिए 113 पृष्ठों का निर्णय लिखते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पक्षों के साथ समान व्यवहार का सिद्धांत मध्यस्थता कार्यवाही के सभी चरणों पर लागू होता है, जिसमें मध्यस्थों की नियुक्ति का चरण भी शामिल है।
पीठ ने केन्द्रीय रेलवे विद्युतीकरण संगठन (कोर) और ईसीआई-एसपीआईसी-एसएमओ-एमसीएमएल संयुक्त उद्यम कंपनी से संबंधित याचिकाओं पर विचार किया, जिसमें इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया कि क्या किसी एक पक्ष, विशेषकर सरकारी संस्थाओं को मध्यस्थों की नियुक्ति का एकमात्र अधिकार दिया जाना स्वीकार्य है।
भाषा प्रशांत रंजन
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