महरौली पुरातत्व उद्यान के अंदर की संरचनाएं धार्मिक महत्व रखती हैं: एएसआई ने न्यायालय से कहा |

महरौली पुरातत्व उद्यान के अंदर की संरचनाएं धार्मिक महत्व रखती हैं: एएसआई ने न्यायालय से कहा

महरौली पुरातत्व उद्यान के अंदर की संरचनाएं धार्मिक महत्व रखती हैं: एएसआई ने न्यायालय से कहा

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Modified Date: December 25, 2024 / 04:20 PM IST
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Published Date: December 25, 2024 4:20 pm IST

नयी दिल्ली, 25 दिसंबर (भाषा) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने उच्चतम न्यायालय को बताया है कि महरौली पुरातत्व उद्यान के अंदर दो संरचनाएं धार्मिक महत्व रखती हैं, क्योंकि मुस्लिम श्रद्धालु प्रतिदिन आशिक अल्लाह दरगाह और 13वीं शताब्दी के सूफी संत बाबा फरीद की चिल्लागाह पर आते हैं।

उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट में एएसआई ने कहा कि शेख शहीबुद्दीन (आशिक अल्लाह) की कब्र पर लगे शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण 1317 ईसवीं में हुआ था।

एएसआई ने कहा, ‘‘पुनर्स्थापना और संरक्षण के लिए किए गए संरचनात्मक संशोधनों और परिवर्तनों ने इस स्थान की ऐतिहासिकता को प्रभावित किया है।’’

एएसआई ने दलील दी कि यह मकबरा पृथ्वीराज चौहान के किले के नजदीक स्थित है और प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम के अनुसार 200 मीटर के विनियमित क्षेत्र में आता है।

इसने कहा कि किसी भी मरम्मत, नवीनीकरण या निर्माण कार्य को सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति से ही किया जाना चाहिए।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘इन दोनों संरचनाओं में अक्सर लोग आते हैं। श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी होने पर आशिक दरगाह पर दीये जलाते हैं।’’

इसमें कहा गया है कि चिल्लागाह एक विशेष धार्मिक समुदाय की धार्मिक भावना और आस्था से भी जुड़ा हुआ है।

उच्चतम न्यायालय जमीर अहमद जुमलाना की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें दिल्ली के महरौली पुरातत्व उद्यान के अंदर सदियों पुरानी धार्मिक संरचनाओं के संरक्षण का अनुरोध किया गया है। इन संरचनाओं में 13वीं शताब्दी की आशिक अल्लाह दरगाह (1317 ईसवीं) और बाबा फरीद की चिल्लागाह भी शामिल है।

उन्होंने कहा कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर ऐतिहासिक महत्व का आकलन किए बिना ही ढांचों को ध्वस्त करने की योजना बना ली है।

जुमलाना ने आठ फरवरी के दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना की अगुवाई वाली धार्मिक समिति इस मामले पर विचार कर सकती है।

भाषा

देवेंद्र पवनेश

पवनेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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