नयी दिल्ली, 21 जनवरी (भाषा) राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अप्रत्याशित अंदाज के बावजूद विदेश नीति के कई विशेषज्ञों को उनके दूसरे कार्यकाल के तहत भारत-अमेरिका संबंधों में “मजबूत गति” की उम्मीद है, जबकि अन्य ने आगाह किया है कि आगे चलकर “कुछ चुनौतियां” सामने आएंगी।
ट्रंप ने सोमवार को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली और कई कार्यकारी निर्णयों की घोषणा की तथा साथ ही कहा कि अमेरिका का “स्वर्ण युग” अभी शुरू हुआ है।
नयी दिल्ली में पूर्व राजनयिक वीना सीकरी ने कहा, “मुझे लगता है कि राष्ट्रपति ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत धमाकेदार तरीके से करने के लिए कृतसंकल्प हैं, जैसा कि कहा जाता है।”
उन्होंने ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “उन्होंने बहुत से निर्णय और बहुत सी पहल की योजना बनाई है, जिन्हें वे शुरू से ही लागू करना चाहते हैं, ताकि बड़ा प्रभाव पैदा हो सके। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप के साथ एक बात है: आपको अप्रत्याशित के लिए तैयार रहना होगा। वह हमेशा इसी के लिए जाने जाते हैं।”
नवंबर में अमेरिकी चुनावों में ऐतिहासिक जीत के बाद 78 वर्षीय रिपब्लिकन नेता की सत्ता में जोरदार वापसी और भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों पर इसके संभावित प्रभाव की चर्चा नयी दिल्ली और वाशिंगटन दोनों में काफी हुई है।
बांग्लादेश में भारत की पूर्व उच्चायुक्त सीकरी को हालांकि लगता है कि नया ट्रंप प्रशासन “जो बाइडन प्रशासन के तहत भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में पहले से ही हासिल की गई उपलब्धियों को आगे बढ़ाएगा”।
सीकरी ने रेखांकित किया कि प्रथम ट्रंप प्रशासन में, हमने भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में “बड़ी प्रगति देखी”।
पूर्व राजनयिक ने कहा, “मैं आशा करती हूं कि दूसरे ट्रंप प्रशासन में, पहले ट्रंप प्रशासन और बाइडन प्रशासन से आगे एक मजबूत गति होगी और कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इन संबंधों के विकास की दिशा में आगे बढ़ा जाएगा।”
उन्होंने कहा कि वास्तव में इस साल राष्ट्रपति ट्रंप के भारत आने की चर्चाएं चल रही हैं। भारत इस साल क्वाड शिखर सम्मेलन की मेजबानी भी कर रहा है। उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों में संभावित तेजी का अनुमान जताया।
कई अन्य विदेश नीति विशेषज्ञों ने भी दूसरे ट्रंप प्रशासन के तहत द्विपक्षीय संबंधों की भावी दिशा पर इसी प्रकार के विचार व्यक्त किए हैं।
पिछले नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की ऐतिहासिक वापसी के तुरंत बाद कई पूर्व भारतीय राजनयिकों ने इस बात पर सहमति जताई थी कि भारत-अमेरिका संबंध लगातार मजबूत होते रहेंगे।
उनमें से कुछ ने हालांकि चेतावनी दी कि ट्रंप “अत्यधिक अप्रत्याशित” हैं और नयी दिल्ली को “प्रतीक्षा करनी होगी” कि वह आगे क्या रुख अपनाते हैं।
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) राहुल भोंसले ने ट्रंप की एमएजीए (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) और ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीतियों को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा, “भारत के लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि उनका ध्यान इस बात पर रहेगा कि आर्थिक, व्यापारिक और सैन्य संबंध अमेरिका की भलाई के लिए कैसे होंगे। भारतीय परिप्रेक्ष्य से, मुझे लगता है, हमें अपनी विदेश नीति पर गौर करना होगा… इसमें बहुत बड़ा बदलाव नहीं होगा, लेकिन निश्चित रूप से कुछ बदलाव होगा… जिसका असर पड़ेगा।”
ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) भोंसले ने कहा, “इसलिए हमें आर्थिक संबंधों, विशेषकर व्यापार, शुल्क आदि में अमेरिकियों को अधिक रियायतें देने पर विचार करना होगा।”
उन्होंने सुझाव दिया कि ट्रम्प की एमएजीए नीति को संबोधित करने के लिए नयी दिल्ली से कुछ प्रमुख नीतिगत बदलाव की आवश्यकता हो सकती है।
हालांकि, सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ने सतर्कता बरतते हुए कहा कि आगे चलकर द्विपक्षीय संबंधों में कुछ “बड़ी चुनौतियां” आएंगी।
भोंसले ने कहा कि दोनों सरकारों की ‘अमेरिका प्रथम’ और ‘मेक इन इंडिया’ नीतियां एक “अंतर्निहित विरोधाभास” को प्रदर्शित करती हैं और इसका दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों और लंबित परियोजनाओं पर प्रभाव पड़ सकता है, भारत में विनिर्माण की सीमा और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के पहलू, दोनों के संदर्भ में।
भाषा प्रशांत नरेश
नरेश
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