नई दिल्लीः Son-in-law is made to roam around पूरे देश में होली पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इस पर्व को लेकर अलग-अलग परंपरा है। इस साल 17 मार्च को होलिका दहन और 18 मार्च को धुलंडी का पर्व मनाया जाएगा। महाराष्ट्र के एक गांव में एक विचित्र होली परंपरा है जो 90 से अधिक सालों से चली आ रही है।
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Son-in-law is made to roam around होली पूरे भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाने वाला त्योहार है। इसे रंगों के त्योहार और वसंत के त्योहार के रूप में जाना जाता है। होली का त्योहार भगवान कृष्ण और राधा के शाश्वत प्रेम को श्रद्धांजलि के रूप में मनाया जाता है। होली देश में वसंत फसल के मौसम के आगमन और सर्दियों के अंत का प्रतीक है। धुलंडी या रंगवाली होली फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस साल 17 मार्च को होलिका दहन और 18 मार्च को धुलंडी का पर्व मनाया जाएगा।
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महाराष्ट्र के बीड जिले एक गांव में एक अजीबोगरीब होली परंपरा है जो 90 से अधिक वर्षों से चली आ रही है। गांव के नए नवेले दामाद को गधे की सवारी कराते है और उनके पसंद के कपड़े मिलते हैं। जिले की केज तहसील के विदा गांव में इस रस्म का पालन किया जाता है। गांव के नए दामाद की पहचान करने में तीन से चार दिन लग जाते हैं। गांव वाले उस पर नजर रखते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह होली के दिन लापता न हो जाए। वह दामाद इस रस्म में शामिल हो, इसलिए उसे कहीं जाने नहीं देते।
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बताया जाता है कि करीब अस्सी साल पहले बीड जिले की केज तहसील स्थित विडा येवता गांव में एक देशमुख परिवार के एक दामाद ने होली में रंग लगवाने से मना कर दिया। तब उनके ससुर उन्हें रंग लगाने के लिए मनाने की कोशिश में लग गए। उन्होंने फूलों से सजा एक गधा मंगवाया, उस पर दामाद को बिठाया और फिर उसे पूरे गांव में घुमाया गया और तभी से यह शुरू हो गया।
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कई मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का भी जिक्र है कि परंपरा की शुरुआत आनंदराव देशमुख नाम के एक निवासी ने की थी और उन्होंने ही पहले अपने दामाद के साथ ऐसी होली मनाई थी। इतना ही नहीं कई बार तो यहां के लोग मजाक में दामाद को गधा भी गिफ्ट कर देते हैं और उनकी सवारी करवाई जाती है, साथ ही उनके पसंद के कपड़े भी दिए जाते हैं।
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ऐसा कई बार हुआ है कि यहां की होली सोशल मीडिया पर छाई रहती है। एक बार तो इस होली के चक्कर में गांव के कुछ दामाद बचने के लिए छिपकर भागने की कोशिश करने लगे। लेकिन गांव के लोगों द्वारा उनपर पूरा पहरा रखा गया और उनके साथ पकड़कर होली खेली गई। हालांकि बताया जाता है कि पिछले साल कोरोना की वजह से यह परंपरा नहीं निभाई जा सकी थी।