सिंगूर गाथा: नैनो कार संयंत्र बाहर जाने से बंगाल का राजनीतिक और औद्योगिक परिदृश्य किस तरह बदला |

सिंगूर गाथा: नैनो कार संयंत्र बाहर जाने से बंगाल का राजनीतिक और औद्योगिक परिदृश्य किस तरह बदला

सिंगूर गाथा: नैनो कार संयंत्र बाहर जाने से बंगाल का राजनीतिक और औद्योगिक परिदृश्य किस तरह बदला

:   Modified Date:  October 10, 2024 / 07:02 PM IST, Published Date : October 10, 2024/7:02 pm IST

कोलकाता, 10 अक्टूबर (भाषा) उद्योगपति रतन टाटा ने अक्टूबर 2008 में दुर्गा पूजा की पूर्व संध्या पर घोषणा की कि ‘टाटा मोटर्स’ सिंगूर में लगभग पूरा हो चुके नैनो कार संयंत्र से हट जाएगी। उन्होंने इस फैसले के लिए ममता बनर्जी के भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन को जिम्मेदार ठहराया और दावा किया इसके कारण जिसे दुनिया की सबसे सस्ती कार बनाने से जुड़ी अभूतपूर्व परियोजना कहा जा रहा था, वह बेपटरी हो गई।

टाटा की वापसी की परिणति एक तीखे सियासी संघर्ष के रूप में हुई जिसने पश्चिम बंगाल के औद्योगिक और राजनीतिक परिदृश्य को महत्वपूर्ण रूप से बदल दिया। सोलह साल बाद भी सिंगूर की विरासत को सिर्फ खोए हुए अवसरों की कहानी से कहीं अधिक एक विस्तृत पटल पर देखा जाता है।

रतन नवल टाटा का बुधवार रात मुंबई में निधन हो गया। वह 86 वर्ष के थे। वर्ष 2006 में टाटा मोटर्स ने लाखों भारतीय परिवारों को किफायती दामों पर वाहन स्वामी बनाने लक्ष्य के साथ नैनो परियोजना (मात्र एक लाख रुपये की कीमत वाली एक क्रांतिकारी कार) की घोषणा की थी।

कोलकाता के पास के ग्रामीण क्षेत्र सिंगूर को उसकी बहु-फसली उपजाऊ कृषि भूमि के लिए जाना जाता है, लेकिन इसका चयन वाम मोर्चा सरकार और टाटा मोटर्स द्वारा विनिर्माण स्थल के रूप में किया गया था।

तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, जिन्होंने राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए तेजी से औद्योगीकरण का आह्वान किया था, ने उत्साहपूर्वक इस परियोजना का समर्थन किया था। उन्हें यह उम्मीद थी कि यह परियोजना पश्चिम बंगाल को एक औद्योगिक केंद्र में बदल देगी और इससे राज्य से बाहर पूंजी का प्रवाह समाप्त हो जाएगा।

हालांकि, हुगली जिले के सिंगूर में संयंत्र स्थापित करने के निर्णय को किसानों के एक समूह के तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा, जिन्होंने अपनी जमीन देने से इनकार कर दिया, जिससे एक तीखा संघर्ष छिड़ गया। अंततः इसने परियोजना को पटरी से उतार दिया।

संयंत्र के लिए लगभग 1,000 एकड़ भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया से सिंगूर में व्यापक अशांति फैल गई। कई किसानों ने मुआवजा स्वीकार कर लिया, लेकिन कई ने अपनी आजीविका छिनने के डर से अपनी जमीन देने से इनकार कर दिया।

वर्ष 2006 के विधानसभा चुनाव में मिले झटके के बाद अपनी राजनीतिक किस्मत को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयासरत विपक्षी नेता ममता बनर्जी ने तुरंत किसानों का समर्थन किया और उन लोगों की 400 एकड़ जमीन वापस करने की मांग की, जिन्होंने इसे स्वेच्छा से नहीं बेचा था। उन्होंने ज़मीन के ‘जबरन अधिग्रहण’ के खिलाफ उग्र विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया।

रतन टाटा, जिन्होंने सिंगूर से हटने के फैसले को ‘दर्दनाक’ करार दिया था, ने इसके लिए बनर्जी को दोषी ठहराया था और उनके सतत विरोध का जिक्र करते हुए एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था, ‘‘मुझे लगता है कि सुश्री बनर्जी ने ‘ट्रिगर’ दबा दिया।’’

वर्ष 2008 में स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित एक खुले पत्र में उन्होंने पश्चिम बंगाल के लोगों से आग्रह किया कि वे इन दो स्थितियों के बीच चयन करें कि वे बुद्धदेव भट्टाचार्जी की सरकार के तहत ‘आधुनिक बुनियादी ढांचा और औद्योगिक विकास’ चाहते हैं या ‘राज्य को टकराव, आंदोलन, अराजकता और हिंसा के विनाशकारी राजनीतिक माहौल में डूबा हुआ देखना चाहते हैं।

हालांकि, बनर्जी और टीएमसी ने टाटा पर राजनीतिक पूर्वाग्रह का आरोप लगाया और दोहराया कि उनका विरोध औद्योगीकरण का नहीं बल्कि उपजाऊ कृषि भूमि के जबरन अधिग्रहण का है।

सिंगूर से हटने के तुरंत बाद ‘टाटा मोटर्स’ ने घोषणा की कि वह नैनो संयंत्र को गुजरात के साणंद में स्थानांतरित करेगी।

तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वागत किया जिसके परिणामस्वरूप नैनो संयंत्र की तेजी से स्थापना हुई और उत्पादन शुरू हुआ।

सिंगूर आंदोलन ने पश्चिम बंगाल की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया और ममता बनर्जी को प्रमुखता दी, क्योंकि भूमि अधिग्रहण के प्रति उनके उग्र विरोध ने ग्रामीण मतदाताओं को प्रभावित किया और उनकी पार्टी टीएमसी को 2009 के आम चुनाव में 19 सीट मिली जो 2004 में सिर्फ एक सीट जीत सकी थी।

इसने अंततः ममता को 2011 में वाम मोर्चे के तीन दशक पुराने शासन को समाप्त करने और पश्चिम बंगाल में हाशिए पर रहने वाले लोगों और ग्रामीण समुदायों के खेवनहार के रूप में अपनी प्रतिष्ठा को मजबूत करने में सक्षम बनाया।

इसने अंततः उन्हें 2011 में वाम मोर्चे के तीन दशकों से अधिक शासन को समाप्त करने और पश्चिम बंगाल के हाशिए पर रहने वाले और ग्रामीण समुदायों के लिए एक चैंपियन के रूप में अपनी प्रतिष्ठा को मजबूत करने में सक्षम बनाया।

वर्ष 2011 में सत्ता में आने के तुरंत बाद ममता बनर्जी की सरकार ने नैनो संयंत्र के लिए किसानों से ली गई जमीन वापस करने का आदेश दिया, जिसके बाद पुलिस ने इस पर रातोंरात कब्जा कर लिया। जब टाटा मोटर्स ने फैसले का विरोध किया तो अदालती लड़ाई शुरू हुई, लेकिन अंततः, 2016 में उच्चतम न्यायालय ने भूमि को उसके मूल मालिकों को वापस करने का आदेश दिया। इसके परिणामस्वरूप इस वीरान या परित्यक्त फैक्टरी को ध्वस्त कर दिया गया।

भाषा संतोष माधव

माधव

 

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