नयी दिल्ली, 12 जनवरी (भाषा) देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए सरकार द्वारा दिया गया एक प्रमुख कारण यह है कि बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य और सामान्य जन-जीवन बाधित होता है, लेकिन निर्वाचन आयोग ने कहा है कि यह एक “महत्वपूर्ण साधन” है जिसका उद्देश्य चुनावों में समान अवसर प्रदान करना है।
‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए सरकार द्वारा लाए गए विधेयकों के अनुसार, विभिन्न कारणों से एक साथ चुनाव कराने की आवश्यकता है, जिसमें चुनावों का महंगा होना और समय लगना भी शामिल है।
‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक में कहा गया है कि देश के चुनावी राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू होने से समूचे विकास कार्यक्रम रुक जाते हैं और सामान्य जन जीवन में व्यवधान उत्पन्न होता है।
इसमें कहा गया है कि बार-बार चुनाव आचार संहिता लागू होने से सेवाओं का कामकाज प्रभावित होता है और कर्मचारियों को काफी समय तक उनके मूल काम से हटाकर चुनाव ड्यूटी में लगाना पड़ता है।
चुनाव अधिकारियों का हालांकि मानना है कि “आदर्श आचार संहिता के अनुप्रयोग को व्यवधान के रूप में देखना सही नहीं होगा, क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण साधन है जिसका उद्देश्य चुनाव प्रचार में शामिल सभी हितधारकों को समान अवसर प्रदान करना है।”
मार्च 2023 में विधि आयोग द्वारा एक साथ चुनाव कराने के संबंध में पूछी गई प्रश्नावली के जवाब में निर्वाचन आयोग ने कहा था कि आदर्श आचार संहिता की प्रयोज्यता चुनावों के चक्र और आवृत्ति पर निर्भर करती है तथा इसे युक्तिसंगत बनाने से आदर्श आचार संहिता का समय कम हो जाएगा।
उसने कहा, “निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों के परामर्श से एक स्वैच्छिक आचार संहिता के रूप में इसे तैयार किया है, जिसका सभी हितधारकों द्वारा पालन किया जाना चाहिए और यह स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने तथा विश्वसनीय परिणाम प्राप्त करने के लिए एक अभिन्न अंग है।”
एक साथ चुनाव कराने के विभिन्न पहलुओं पर निर्वाचन आयोग के रुख को विधि आयोग और केंद्रीय विधि मंत्रालय के विधिक मामलों के विभाग के साथ साझा किया गया है, जिसे एक साथ चुनाव कराने संबंधी विधेयकों की जांच कर रही संसद की संयुक्त समिति के सदस्यों को उपलब्ध करा दिया गया है।
निर्वाचन आयोग के रुख के बारे में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली ‘एक देश, एक चुनाव’ संबंधी उच्च स्तरीय समिति को भी अवगत कराया गया।
निर्वाचन आयोग ने कहा कि उसने स्वयं लगातार एक रणनीति विकसित की है, जिसके तहत घोषणा की तिथि से लेकर चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक आदर्श आचार संहिता की अवधि को “न्यूनतम आवश्यक” रखा जाए।
विधि आयोग ने निर्वाचन आयोग से इस तर्क पर उसका विचार पूछा था कि “समय-समय पर होने वाले चुनावों से आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण नीतिगत पंगुता होती है?”
भाषा प्रशांत संतोष
संतोष
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