कोलकाता, 19 नवंबर (भाषा) मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला का मानना है कि हिंसा प्रभावित मणिपुर में संकट के समाधान के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप जरूरी है।
शर्मिला ने साथ ही आगाह किया कि पूर्वोत्तर राज्य के छह पुलिस थाना क्षेत्रों में ‘दमनकारी’ सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम फिर से लागू करने से अशांति और बढ़ सकती है।
शर्मिला ने मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह से अशांति की नैतिक जिम्मेदारी लेने और पद छोड़ने की अपील की। साथ ही केंद्र से लोगों की आकांक्षाओं को समझने और संकट के समाधान का रास्ता तय करने के लिए एक जनमत संग्रह कराने का आग्रह किया।
‘आयरन लेडी आफ मणिपुर’ के नाम से मशहूर शर्मिला ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ टेलीफोन पर बातचीत में पूर्वोत्तर के जातीय समूहों की विविधता, मूल्यों और प्रथाओं का केंद्र द्वारा सम्मान किये जाने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए संवेदनशीलता और समझ बहुत जरूरी है।
शर्मिला ने दावा किया, ‘‘केंद्र का रुख सही नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर राज्य का दौरा कर रहे हैं, लेकिन वह मणिपुर नहीं गए हैं। वह देश के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता हैं। हिंसा शुरू हुए लगभग अट्ठारह महीने हो गए हैं, फिर भी उन्होंने दौरा नहीं किया। केवल प्रधानमंत्री मोदी के सीधे हस्तक्षेप से ही संकट का समाधान करने में मदद मिल सकती है।’’
शर्मिला ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह शांति बहाल करने में विफल रहे हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जारी जातीय हिंसा को रोकने के लिए तत्काल और निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता है। पिछले साल मई से अब तक इस हिंसा में 200 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं।
उन्होंने दावा किया, ‘‘राज्य सरकार की गलत नीतियों ने मणिपुर को इस अभूतपूर्व संकट में धकेला है। पिछले साल मई से शांति बहाल करने में विफल रहने के लिए मुख्यमंत्री को तुरंत पद छोड़ देना चाहिए। भाजपा को उनसे इस्तीफा मांगना चाहिए। उन्होंने मणिपुर के लोगों को निराश किया है।’’
उन्होंने कहा कि केंद्र को सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि समस्या क्या है और मणिपुर के लोग क्या चाहते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘केंद्र को संकट का समाधान करने के तरीके के बारे में निर्णय लेने के लिए समुदायों के बीच जनमत संग्रह कराना चाहिए। सरकार को सुधारात्मक कदम उठाने से पहले यह समझना चाहिए कि मणिपुर के लोग क्या चाहते हैं।’’
केंद्र ने पिछले सप्ताह जातीय हिंसा के कारण ‘‘लगातार अस्थिर स्थिति’’ का हवाला देते हुए हिंसा प्रभावित जिरीबाम सहित मणिपुर के छह पुलिस थाना क्षेत्रों में अफ्सपा को फिर से लागू कर दिया था।
यह उस दिन हुआ जब मणिपुर पुलिस ने जिरीबाम और चुराचांदपुर जिलों से हथियार और गोला-बारूद का जखीरा जब्त करने की घोषणा की।
हाल में हुई हिंसा के बाद कुछ क्षेत्रों में अफ्सपा को फिर से लागू करने के केंद्र के फैसले की आलोचना करते हुए, शर्मिला ने इस अधिनियम के प्रति लंबे समय से जारी अपने विरोध को दोहराया और इसे ‘‘औपनिवेशिक युग का कानून बताया जो मणिपुर की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अफ्सपा कभी भी एक समाधान नहीं हो सकता। यह एक दमनकारी कानून है। यह मणिपुर में इतने लंबे समय से है, लेकिन फिर भी इससे हिंसा नहीं रुकी। केंद्र को यह स्वीकार करना चाहिए कि पूर्वोत्तर भारत का हिस्सा है, न केवल शब्दों में बल्कि व्यवहार में भी। अफ्सपा को फिर से लागू करने से स्थिति और खराब हो जाएगी।’’
शर्मिला ने सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम को वापस लेने की मांग करते हुए 16 साल तक अनशन किया था। उन्होंने कहा, ‘‘अफ्सपा मणिपुर के लोगों के लिए केवल पीड़ा लेकर आया है। अब समय आ गया है कि हम वास्तविक समाधान खोजने के लिए ऐसे औपनिवेशिक कानूनों से आगे बढ़ें।’’
शर्मिला ने देश के विभिन्न हिस्सों में कानून और व्यवस्था के मुद्दों का समाधान करने में ‘‘दोहरे मानकों’’ पर सवाल उठाया।
उन्होंने कहा, ‘‘क्या आप संकट के समय मुंबई या दिल्ली जैसे शहरों या उत्तर प्रदेश या मध्यप्रदेश जैसे किसी बड़े राज्य में महीनों तक अफ्सपा लगा सकते हैं या इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर सकते हैं? भारत एक लोकतांत्रिक देश है और औपनिवेशिक युग के इस तरह के उपायों को आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए। उग्रवाद से लड़ने के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद किए गए जिसका इस्तेमाल पूर्वोत्तर के विकास के लिए किया जा सकता था।’’
मणिपुर में जातीय हिंसा पिछले साल मई में शुरू हुई थी जिसमें 200 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग बेघर हुए हैं।
कर्फ्यू का उल्लंघन करते हुए, एक मेइती समूह ने सोमवार को सड़कों पर उतरकर पश्चिमी इंफाल जिले में कई सरकारी कार्यालयों पर ताला लगा दिया और जिरीबाम में हाल में हुई हत्याओं का विरोध किया। हालांकि केंद्र ने नयी दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की समीक्षा बैठक के बाद अशांत मणिपुर में ‘अस्थिर’ स्थिति से निपटने के लिए लगभग 5,000 अर्धसैनिक बलों को भेजने का फैसला किया है।
ग्यारह नवंबर को सुरक्षा बलों और हथियारबंद लोगों के बीच मुठभेड़ के बाद जिरीबाम से लापता हुए छह लोगों के शव जिरीबाम में जिरी नदी और असम के कछार में बराक नदी के संगम पर पाए गए थे।
इंफाल घाटी के इंफाल पूर्व और पश्चिम, बिष्णुपुर, थौबल और काकचिंग जिलों में ‘‘कानून एवं व्यवस्था की स्थिति के चलते’’ अनिश्चित काल के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया है।
शर्मिला ने राज्य और केंद्र सरकार दोनों से विभिन्न जातीय समूहों की आशंकाओं और भय को प्रेम एवं करुणा के साथ दूर करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ‘‘विभिन्न जातीय समूहों के मूल्यों, सिद्धांतों और प्रथाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। भारत अपनी विविधता के लिए जाना जाता है और केंद्र को मणिपुर में भी इसे पहचानना और अपनाना चाहिए।’’
शर्मिला ने 2000 में इंफाल के पास मालोम में एक बस स्टॉप पर सुरक्षा बलों के हाथों 10 नागरिकों के कथित तौर पर मारे जाने के बाद भूख हड़ताल शुरू की थी।
अफ्सपा के खिलाफ उनके 16 साल के शांतिपूर्ण प्रतिरोध से उन्हें व्यापक पहचान मिली लेकिन कानून को निरस्त नहीं किया गया। उन्होंने 2016 में अपनी भूख हड़ताल समाप्त की। इसके बाद विधानसभा चुनावों में बुरी तरह विफल होने के बाद 2017 में उन्होंने विवाह कर लिया और अब वह अपनी जुड़वां बेटियों सहित अपने परिवार के साथ दक्षिण भारत में रह रही हैं।
भाषा अमित नरेश
नरेश
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