चेन्नई, 20 जनवरी (भाषा) कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी विजयेंद्र सरस्वती ने श्रद्धालुओं से प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में भाग लेने और पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने की अपील की है।
शंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती ने गंगा नदी में स्नान करते समय और पूजा अर्चना करते समय गंगा की शुचिता और पवित्रता बनाकर रखने के महत्व पर जोर दिया।
उन्होंने यहां एक बयान में कहा कि कुंभ का आयोजन हर 12 साल बाद होता है और सनातन धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोगों को प्रयागराज जाकर गंगा में डुबकी लगानी चाहिए।
शंकराचार्य ने प्रयागराज महाकुंभ के प्रारंभ में त्रिवेणी संगम में स्नान करने के लिए बड़ी संख्या में लोगों के पहुंचने के दृश्यों पर प्रसन्नता जताई।
उन्होंने कहा, ‘‘गंगा का महत्व वेदों और पुराणों में और हजारों वर्षों की हमारी सनातन धार्मिक परंपराओं में पता चलता है। न केवल हमारे साधु-संतों ने, बल्कि ईश्वर के अवतार भगवान आदि शंकराचार्य ने भी गंगा में पवित्र स्नान किया था और ध्यान किया था।’’
उन्होंने कहा कि गंगा केवल नदी नहीं बल्कि भारत की पावन भूमि पर एक पवित्र तीर्थ है।
देश में 12 ज्योतिर्लिंगों और शक्तिपीठ की आदि शंकराचार्य की यात्राओं का उल्लेख करते हुए शंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती ने कहा, ‘‘आदि शंकराचार्य ने विशेष रूप से गंगा मैया की प्रशंसा की थी। इसलिए हमारे लिए गंगा केवल नदी नहीं बल्कि पूजनीय हैं।’’
महाकुंभ में विभिन्न अखाड़ों के साधु-संतों के साथ बड़ी संख्या में महिलाओं और पुरुषों के भाग लेने को भारत की धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर का संगम करार देते हुए उन्होंने कहा कि त्रिवेणी के घाटों ने सनातन की विभिन्न आस्थाओं को समझने का व्यापक अवसर दिया है।
उन्होंने कहा, ‘‘सनातन धार्मिक लोकाचार को हमारे राष्ट्र की पहचान से अलग नहीं किया जा सकता। जीवन का सनातन मार्ग शांति एवं सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करता है। लोगों के भौतिक उत्थान के साथ आर्थिक प्रगति शांति से ही संभव है और महाकुंभ इसकी एक झलक है।’’
त्रिवेणी संगम पर स्नान का विशेष धार्मिक महत्व माना जाता है।
जब 36 साल पहले तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती अधिक उम्र की वजह से महाकुंभी में शामिल नहीं हो सके थे तो त्रिवेणी से विशेष विमान से गंगा जल कांची लाया गया था और उन्होंने पवित्र स्नान किया।
शंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती ने कहा, ‘‘कुंभ के प्रति यह आस्था गंगा के लिए हमारे आध्यात्मिक दृष्टिकोण का प्रतीक है।’’
भाषा वैभव प्रशांत
प्रशांत
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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)