नयी दिल्ली, सात नवंबर (भाषा) कांग्रेस ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के एक लेख को लेकर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा किए गए हमले के बाद, सिंधिया राजघराने से जुड़े इतिहास का हवाला देते हुए बृहस्पतिवार को दावा किया कि सिंधिया परिवार ने आमतौर पर अंग्रेजी हुकूमत के साथ सहयोग की नीति अपनाई थी।
पार्टी के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने यह भी कहा कि इतिहास, झूठी मनगढ़ंत बातों के सहारे जीने के लिए नहीं, बल्कि सबक लेकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
राहुल गांधी ने बुधवार को अंग्रेजी दैनिक ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में लिखे एक लेख में कहा था कि ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ भले ही बहुत पहले खत्म हो गई हो, लेकिन उसने जो डर पैदा किया था, वह आज फिर से दिखाई देने लगा है और एकाधिकारवादियों की एक नयी पीढ़ी ने उसकी जगह ले ली है।
इसमें उन्होंने कुछ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का उल्लेख भी किया था।
उनके इस लेख का जिक्र करते हुए सिंधिया ने बुधवार को सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘नफरत बेचने वालों को भारतीय गौरव और इतिहास पर व्याख्यान देने का कोई अधिकार नहीं है। भारत की समृद्ध विरासत के बारे में उनकी (राहुल की) अज्ञानता और उनकी औपनिवेशिक मानसिकता ने सभी सीमाएं पार कर ली हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप राष्ट्र के ‘उत्थान’ का दावा करते हैं, तो भारत माता का अपमान करना बंद करें और महादजी सिंधिया, युवराज बीर टिकेंद्रजीत, कित्तूर चेन्नम्मा और रानी वेलु नचियार जैसे सच्चे भारतीय नायकों के बारे में जानें, जिन्होंने हमारी आजादी के लिए जमकर लड़ाई लड़ी।’’
खेड़ा ने सिंधिया पर पलटवार करते हुए बृहस्पतविार को ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘सिंधिया जी, आपने राहुल जी के एकाधिकारवादी निगम पर हमले को थोड़ा व्यक्तिगत ले लिया। इस निगम ने अपने शिकंजे से भारत के नवाबों और राजे-रजवाड़ों को डरा-धमकाकर भारत को गुलाम बनाकर हमें लूटने का काम किया था।’’
उन्होंने कहा कि इतिहास के अनुसार, ग्वालियर के सिंधिया परिवार की भूमिका 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जटिल रही।
खेड़ा ने दावा किया, ‘‘श्रीमंत जयाजीराव सिंधिया, जो उस समय ग्वालियर के शासक थे, उन्होंने अपनी सेना को ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद के लिए भेजा और विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई करवाई। इतिहास में यह स्पष्ट है कि श्रीमंत जयाजीराव ने उस एकाधिकारवादी निगम का साथ दिया। हम उनकी वतनपरस्ती पर शक नहीं करते, उनपर दबाव रहा होगा। उसी दबाव का ज़िक्र राहुल जी ने अपने लेख में भी किया है।’’
उन्होंने कहा कि ग्वालियर की सेना के कई सैनिक और अधिकारी विद्रोह में शामिल हो गए थे, क्योंकि उन्होंने अपने डर से पार पा लिया था तथा हिंदुस्तानी बागियों के नेता रहे तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर पर क़ब्ज़ा कर लिया था।
खेड़ा के अनुसार, ‘‘श्रीमंत जयाजीराव सिंधिया को अपना महल छोड़कर भागना पड़ा, लेकिन बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद से उन्होंने फिर से ग्वालियर पर नियंत्रण हासिल कर लिया था। इस प्रकार औपचारिक रूप से सिंधिया शासकों ने ईस्ट इंडिया कंपनी का समर्थन किया, लेकिन उनकी सेना के कई सदस्य स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए, क्योंकि जनता शासकों से ज्यादा समझदार, वतन परस्त और बेख़ौफ़ थी।’’
उन्होंने दावा किया कि बाद के वर्षों में भी सिंधिया परिवार ने आमतौर पर ब्रिटिश राज के साथ सहयोग की नीति अपनाई थी।
खेड़ा ने कहा, ‘‘सिंधिया जी, इतिहास हमें सबक लेकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है, ना कि झूठी मनगढ़ंत बातों के सहारे जीने के लिए। भारत में भूत (अतीत) चढ़ना इसी को कहते हैं। खैर, मैंने आपका भूत 1857 में उस एकाधिकारवादी निगम से हिंदुस्तानियों की बगावत के सच्चे इतिहास से उतारने की कोशिश की है। उम्मीद है कि उतर गया होगा।’’
उन्होंने यह भी कहा, ‘‘वरना मुझे आपके आवास पर इतिहास की किताबों का एक पूरा बंडल भिजवाना पड़ेगा ताकि आपका भूत उतरे। दूसरा… मुझे देश के किसान, मजदूरों, दलित आदिवासियों से एक ट्रक हौसला भी लेकर भिजवाना पड़ेगा ताकि आप देश में अभी चल रहे एकाधिकारवादी निगम के खिलाफ बोलने के लिए मजबूत हो सकें।’’
सिंधिया कई वर्षों तक कांग्रेस में रहे और राहुल गांधी के करीबी माने जाते थे। उन्होंने मार्च, 2020 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में संचार मंत्री हैं।
भाषा हक हक मनीषा
मनीषा
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