वैज्ञानिकों ने हिंदू कुश हिमालय को ‘विनाश के कगार’ पर पहुंचा जैवमंडल घोषित किया |

वैज्ञानिकों ने हिंदू कुश हिमालय को ‘विनाश के कगार’ पर पहुंचा जैवमंडल घोषित किया

वैज्ञानिकों ने हिंदू कुश हिमालय को ‘विनाश के कगार’ पर पहुंचा जैवमंडल घोषित किया

:   Modified Date:  February 5, 2024 / 07:25 PM IST, Published Date : February 5, 2024/7:25 pm IST

नयी दिल्ली, पांच फरवरी (भाषा) वैज्ञानिकों ने वैश्विक जैव विविधता विशेषज्ञों की सोमवार को आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक में हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र को एक ऐसा जैवमंडल घोषित किया जो विनाश के कगार पर है।

वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर सबसे अधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक इस क्षेत्र में प्रकृति के नुकसान को रोकने के लिए कड़े कदम और तत्काल वित्तपोषण का आह्वान किया।

‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट’ (आईसीआईएमओडी) ने यह आह्वान काठमांडू, नेपाल में एक बैठक में किया। इस बैठक में 130 से अधिक वैश्विक विशेषज्ञ खाद्य और जल सुरक्षा, स्वास्थ्य, जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंधों पर विचार करेंगे।

यह बैठक सोमवार को शुरू हुई और नौ फरवरी तक चलेगी। जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतर सरकारी विज्ञान-नीति मंच (आईपीबीईएस) की मूल्यांकन बैठक पहली बार दक्षिण एशिया में आयोजित की जा रही है।

वर्ष 2012 में 145 सदस्य देशों के साथ स्थापित, आईपीबीईएस जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल के समान कार्य करता है, जिसका उद्देश्य जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए विज्ञान-नीति संबंधों को मजबूत करना है।

बैठक की मेजबानी कर रहे आईसीआईएमओडी के शोधकर्ताओं ने हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में प्रकृति और प्राकृतिक वास में क्षति की गति और पैमाने का वर्णन ‘विनाशकारी’ के रूप में किया, जो 3,500 किलोमीटर तक और आठ देशों – अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल एवं पाकिस्तान तक फैला है।

आईसीआईएमओडी की उप महानिदेशक इज़ाबेला कोज़ील ने बैठक में प्रतिनिधियों से कहा, ‘बहुत देर हो चुकी है।’

उन्होंने कहा, ‘दुनिया के 36 वैश्विक जैव विविधता केंद्रों में से चार इस क्षेत्र में हैं। वैश्विक 200 पारिस्थितिक क्षेत्रों में से बारह, 575 संरक्षित क्षेत्र, 335 महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र हैं। फिर भी सभी प्रयासों के बावजूद, हम ऐसी स्थिति में हैं जिसमें संकट तेजी से बढ़ रहा है। पिछली शताब्दी में सत्तर प्रतिशत मूल जैव विविधता नष्ट हो गई।”

भाषा अमित अविनाश

अविनाश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)