नयी दिल्ली, चार अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अपने 25 जुलाई के उस आदेश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है जिसमें कहा गया है कि खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी शक्ति राज्यों में निहित है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली आठ न्यायाधीशों की पीठ ने पुनर्विचार याचिकाओं पर गौर करने के बाद पाया कि उनमें विषय-वस्तु के आधार पर कोई दम नहीं है।
प्रधान न्यायाधीश के अलावा समीक्षा आदेश पर न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह के हस्ताक्षर हैं।
हाल ही में अपलोड किये गए 24 सितंबर के आदेश में आठों न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘समीक्षा याचिकाओं का अध्ययन करने के बाद रिकॉर्ड पर कोई त्रुटि स्पष्ट नहीं है। उच्चतम न्यायालय नियमावली 2013 के आदेश 47 नियम एक के तहत समीक्षा के लिए कोई मामला स्थापित नहीं किया गया है। इसलिए पुनर्विचार याचिकाएं खारिज की जाती हैं।’’
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना, जिन्होंने 25 जुलाई के फैसले में बहुमत से असहमति जताते हुए कहा था कि केवल केंद्र के पास खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति है, ने पुनर्विचार याचिकाओं पर भी एक अलग आदेश दिया।
प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व में आठ न्यायाधीशों ने पुनर्विचार याचिकाओं में खुली अदालत में सुनवाई किये जाने के अनुरोध को खारिज कर दिया, जबकि न्यायमूर्ति नागरत्ना ने खुली अदालत में सुनवाई के अनुरोध को अनुमति दे दी।
शीर्ष अदालत ने 25 जुलाई को 8:1 के बहुमत से एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी शक्ति राज्यों के पास है और खनिजों पर भुगतान की गई रॉयल्टी कर नहीं है।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि संसद अब भी खनिज अधिकारों पर कर लगाने की राज्यों की शक्ति को सीमित करने वाला कोई कानून बना सकती है।
भाषा संतोष अविनाश
अविनाश
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