नयी दिल्ली, 27 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह इस बात की पड़ताल करेगा कि क्या शीर्ष अदालत द्वारा पुष्टि किये गए मृत्युदंड के खिलाफ रिट याचिका दायर की जा सकती है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ वसंत संपत दुपारे नामक व्यक्ति की रिट याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसके मृत्युदंड की पुष्टि उच्चतम न्यायालय ने 2014 में की थी।
शीर्ष अदालत के 26 नवंबर 2014 के फैसले के खिलाफ दोषी की पुनरीक्षण याचिका को भी तीन मई 2017 को खारिज कर दिया गया था। इसके बाद, उसने राज्यपाल और राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की, जिसे क्रमशः 2022 और 2023 में खारिज कर दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने 2017 में दुपारे की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए इसे क्रूरतापूर्ण घटना बताया था।
दोषी ने अप्रैल 2008 में चार साल की बच्ची के साथ बलात्कार किया था और पत्थर से वार कर उसे मार डाला था।
दुपारे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि शीर्ष अदालत को इस बात की पड़ताल करनी होगी कि क्या 2022 के फैसले, जिसमें कहा गया था कि मृत्युदंड के मामलों में निचली अदालतों को परिस्थितियों पर विचार करना होगा, इस मामले में लागू होगी या नहीं।
हालांकि, महाराष्ट्र के महाधिवक्ता ने कहा कि दोषी व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर कर उच्चतम न्यायालय के उस आदेश को चुनौती नहीं दे सकता, जो जारी किया गया था और उसे इसके बजाय पुनरीक्षण याचिका दायर करनी होगी।
न्यायमूर्ति नाथ ने महाधिवक्ता की दलील से सहमति जताई और आश्चर्य जताया कि क्या न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि करने वाले तीन न्यायाधीशों की पीठ के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर सकता है।
न्यायमूर्ति करोल ने शंकरनारायणन से पूछा, ‘‘महाधिवक्ता की दलीलों के मद्देनजर, क्या अनुच्छेद 32 के तहत हमारे हाथ बंधे नहीं हैं?’’
पीठ ने शंकरनारायणन को न्यायालय द्वारा पड़ताल के लिए पुनरीक्षण याचिका दायर करने का सुझाव दिया।
इसके बाद, वरिष्ठ अधिवक्ता ने समय मांगा, जिसपर शीर्ष अदालत ने सुनवाई की तारीख तीन अप्रैल तय की।
भाषा सुभाष सुरेश
सुरेश
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)