SC ST Reservation Creamy Layer Supreme Court: नई दिल्ली: देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एसटी-एससी यानी अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने की बात कही है। सुको के मुताबिक़ ऐसा इसलिए कि उन्हें सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण) के दायरे से बाहर किया जा सके। गौर करने वाली बात हैं कि देश की आरक्षण व्यवस्था में फिलहाल क्रीमी लेयर का सिद्धांत सिर्फ अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) पर लागू होता है, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर नहीं।
एससी/एसटी के उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाली पीठ में शामिल शीर्ष अदालत के सात न्यायाधीशों में से चार ने एससी/एसटी के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने का भी आह्वान किया, ताकि आरक्षण का लाभ ऐसे समुदायों में सिर्फ पिछड़े लोगों तक ही पहुंचे।
SC ST Reservation Creamy Layer Supreme Court: बता दें कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला त्रिवेदी, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सुनाया। 6 जजों ने उप-वर्गीकरण को बरकरार रखा, जबकि जस्टिस त्रिवेदी ने असहमति जताई।
जस्टिस गवई ने कहा कि अनुसूचित जाति श्रेणी के व्यक्ति के बच्चे, जिन्हें आरक्षण का लाभ मिला है, को आरक्षण का लाभ न लेने वाले व्यक्ति के बच्चों के समान दर्जा नहीं दिया जा सकता।
जस्टिस विक्रम नाथ ने भी इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए कहा कि ओबीसी पर लागू क्रीमी लेयर सिद्धांत अनुसूचित जातियों पर भी लागू होता है।
जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा कि आरक्षण केवल पहली पीढ़ी तक ही सीमित होना चाहिए। यदि पहली पीढ़ी का कोई सदस्य आरक्षण के माध्यम से उच्च स्थिति तक पहुंच गया है तो दूसरी पीढ़ी को आरक्षण का हकदार नहीं होना चाहिए।
जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने जस्टिस गवई के दृष्टिकोण से सहमति व्यक्त की और कहा कि SC/ST के रूप में क्रीमी लेयर की पहचान का मुद्दा राज्य के लिए संवैधानिक अनिवार्यता बन जाना चाहिए।