प्रयागराजः High Court on SC-ST Act अनुसूचित जाति के व्यक्ति के विरुद्ध अनजाने में की गई जातिसूचक टिप्पणी पर एससी- एसटी एक्ट की धारा 3(2)(वी) का अपराध नहीं बनता। इस धारा के तहत मामला तब बनेगा, जब सामने वाला व्यक्ति यह जान रहा हो कि वह अनुसूचित जाति व्यक्ति का है। इस टिप्पणी के साथ इलाहाबाद हाई कोर्ट एससी-एसटी एक्ट के तहत चल रहे मामले को रद्द कर दिया।
High Court on SC-ST Act दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने देहरादून निवासी अलका सेठी की याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भजनलाल केस में धारा-482 की अंतर्निहित शक्ति के इस्तेमाल करने की गाइडलाइंस जारी की है। उसके अनुसार यदि प्रथम दृष्टया अपराध नहीं बनता तो कोर्ट केस कार्यवाही में हस्तक्षेप कर सकती है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने केस को रद्द करते हुए कहा कि अनुसूचित जाति के व्यक्ति के विरुद्ध अनजाने में की गई जातिसूचक टिप्पणी पर एससी- एसटी एक्ट की धारा 3(2)(वी) का अपराध नहीं बनता। इस धारा के तहत मामला तब बनेगा, जब सामने वाला व्यक्ति यह जान रहा हो कि वह अनुसूचित जाति व्यक्ति का है।
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याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि कि भू-माफिया व राजस्व अधिकारियों और तत्कालीन एसएचओ की मिलीभगत से बैनामे से खरीदी उसकी जमीन की पैमाइश कराने के लिए उसे आफिस के चक्कर लगाने को मजबूर किया गया। दोनों पक्षों की मौजूदगी में पैमाइश करने के एसडीएम के आदेश के विपरीत लेखपाल की मनमानी पैमाइश का विरोध करने पर उसे झूठे केस में फंसाया गया है। थानेदार ने उसकी शिकायत नहीं सुनी और एक दिन बाद लेखपाल की झूठी एफआईआर दर्ज कर ली गई।इस पर कोर्ट ने डीजीपी को निर्देश दिया कि आईजीआरएस व डैशबोर्ड पर की गई याचिकाकर्ता की शिकायतों की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से जांच कराएं और यह जांच चार माह में पूरी की जाए। कोर्ट ने सहारनपुर के बिहारीगढ़ थाने में दर्ज एससी/एसटी के मामले को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट बहुत ही यांत्रिक तरीके से दाखिल की गई है। ट्रायल कोर्ट ने संज्ञान लेकर सम्मन भी जारी कर दिया।
कोर्ट ने एफआईआर को याचिकाकर्ता के साथ हुई हाथापाई से बचने के लिए जवाबी हमला माना। साथ ही आश्चर्य जताया कि राजस्व अधिकारियों को बांधकर रखा और वरिष्ठ अधिकारियों के मौके पर आने पर छोड़ा। कोर्ट ने कहा कि यह अविश्वसनीय है कि कैसे एक पुरुष व एक महिला इतने सारे लोगों को काबू में कर सकते हैं और उन्हें बांध सकते हैं और वरिष्ठ अधिकारियों के आने पर छोड़ते है। निःसंदेह यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।