एआईएमआईएम की राजनीतिक दल के रूप मान्यता खत्म करने की अर्जी खारिज |

एआईएमआईएम की राजनीतिक दल के रूप मान्यता खत्म करने की अर्जी खारिज

एआईएमआईएम की राजनीतिक दल के रूप मान्यता खत्म करने की अर्जी खारिज

:   Modified Date:  November 21, 2024 / 08:47 PM IST, Published Date : November 21, 2024/8:47 pm IST

(फाइल फोटो के साथ)

नयी दिल्ली, 21 नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली एआईएमआईएम की निवार्चन आयोग द्वारा राजनीतिक दल के रूप में मान्यता समाप्त करने का अनुरोध करने वाली एक याचिका खारिज कर दी है।

न्यायमूर्ति प्रतीक जालान ने यह कहते हुए यह याचिका खारिज कर दी कि इसमें दम नहीं है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता की दलीलें अपने राजनीतिक विश्वासों और मूल्यों के आधार स्वयं को एक राजनीतिक दल के रूप में स्थापित करने के एआईएमआईएम सदस्यों के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप करने के समान है।

याचिकाकर्ता तिरुपति नरसिम्हा मुरारी ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के पंजीकरण पर इस आधार पर आपत्ति जताई कि एक राजनीतिक दल के रूप में इसके संविधान में केवल एक धार्मिक समुदाय, यानी मुसलमानों के हितों के संवर्धन की मंशा है।

याचिका में दलील दी गयी है कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के प्रतिकूल है क्योंकि हर राजनीतिक दल को संविधान एवं जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत इसका पालन करना ही चाहिए।

उच्च न्यायालय ने कहा कि इस निष्कर्ष को ऐसे ही स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि एआईएमआईएम ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए की आवश्यकता को पूरा किया, जिसके अनुसार किसी राजनीतिक दल को अपने संवैधानिक दस्तावेजों में यह घोषित करना चाहिए कि वह ‘संविधान के प्रति तथा समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखता है।’

न्यायमूर्ति जालान ने कहा, ‘‘वर्तमान मामले के तथ्यों के आधार पर, यह आवश्यकता एआईएमआईएम द्वारा पूरी की गई है।

याचिकाकर्ता ने स्वयं रिट याचिका के साथ नौ अगस्त 1989 का एक पत्र संलग्न किया है, जो एआईएमआईएम द्वारा पंजीकरण के लिए अपने आवेदन के समर्थन में प्रस्तुत किया गया था। इस पत्र में कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए(5) के अनुसार इसके संविधान में संशोधन किया गया है।

फैसले में बाद में कहा गया है कि याचिका में दम नहीं है।

याचिकाकर्ता ने 2018 में यह याचिका दायर की थी जब वह अविभाजित शिवसेना के सदस्य थे। सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय को बताया गया कि याचिकाकर्ता अब भाजपा के सदस्य हैं।

भाषा राजकुमार रंजन

रंजन

 

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