न्यायालय ने अदालतों को स्त्रियों के प्रति द्वेषपूर्ण टिप्पणियां करने के खिलाफ आगाह किया |

न्यायालय ने अदालतों को स्त्रियों के प्रति द्वेषपूर्ण टिप्पणियां करने के खिलाफ आगाह किया

न्यायालय ने अदालतों को स्त्रियों के प्रति द्वेषपूर्ण टिप्पणियां करने के खिलाफ आगाह किया

:   Modified Date:  September 25, 2024 / 03:43 PM IST, Published Date : September 25, 2024/3:43 pm IST

नयी दिल्ली, 25 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अदालतों को ऐसी टिप्पणियां करने के खिलाफ सतर्क रहने को कहा जो ‘‘स्त्रियों के प्रति द्वेषपूर्ण’’ मानी जाएं या किसी खास ‘‘लैंगिकता या समुदाय’’ के खिलाफ हों। साथ ही न्यायालय ने कहा कि भारत के किसी भी हिस्से को पाकिस्तान नहीं कहा जा सकता।

उच्चतम न्यायालय ने अदालती कार्यवाही के दौरान कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की कथित आपत्तिजनक टिप्पणियों पर स्वत: संज्ञान लेकर शुरू किए गए मामले की कार्यवाही बंद करते हुए बुधवार को ये कड़ी टिप्पणियां कीं।

न्यायालय ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने 21 सितंबर को खुली अदालत में सुनवाई के दौरान अपनी टिप्पणियों के लिए माफी मांग ली थी।

भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि चूंकि न्यायमूर्ति श्रीशानंद उसके समक्ष कार्यवाही में कोई पक्षकार नहीं थे तो ‘‘हम किसी लैंगिकता या समुदाय के किसी वर्ग के संदर्भ में अपनी गंभीर चिंता व्यक्त करने के अलावा कोई टिप्पणी करने से परहेज करते हैं।’’

शीर्ष न्यायालय ने एक मामले में अदालत की कार्यवाही के दौरान एक महिला वकील के खिलाफ टिप्पणियों और एक अन्य मामले में बेंगलुरु में मुस्लिम बहुल एक इलाके को ‘‘पाकिस्तान’’ कहने को लेकर कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की कथित विवादित एवं आपत्तिजनक टिप्पणियों पर 20 सितंबर को स्वत: संज्ञान लिया था।

पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय शामिल थे। पीठ ने कहा, ‘‘कार्यवाही के दौरान आकस्मिक टिप्पणियां कुछ हद तक व्यक्तिगत पूर्वाग्रह को प्रतिबिंबित कर सकती हैं, खासकर जब उन्हें लैंगिकता या समुदाय के खिलाफ माना जाए।’’

उसने कहा, ‘‘अत: अदालतों को सतर्क रहना चाहिए कि न्यायिक प्रक्रियाओं के दौरान ऐसी टिप्पणियां न की जाएं, जिन्हें स्त्रियों के प्रति द्वेषपूर्ण या समाज के किसी भी वर्ग के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त माना जाए।’’

कर्नाटक उच्च न्यायालय के महापंजीयक द्वारा सौंपी एक रिपोर्ट के संदर्भ में पीठ ने कहा कि इससे साफ संकेत मिलता है कि सुनवाई के दौरान की गयी टिप्पणियां कार्यवाही से असंबंधित थीं और इनसे बचना ही बेहतर था।

अदालत कक्ष में पीठ द्वारा आदेश सुनाए जाने के बाद अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमनी ने टिप्पणियों के बारे में ‘एक्स’ पर आए कुछ संदेशों का उल्लेख किया और उन्हें ‘‘पूरी तरह से कटु’’ बताया।

सीजेआई ने कहा, ‘‘अब आपने टिप्पणियों की प्रकृति देखी हैं। हम भारत के किसी भी हिस्से को पाकिस्तान नहीं बुला सकते। क्योंकि यह मूलभूत रूप से देश की क्षेत्रीय अखंडता के विपरीत है।’’

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सोशल मीडिया पर नियंत्रण नहीं रखा जा सकता और इससे जुड़ी गोपनीतया इसे ‘‘बहुत खतरनाक’’ बनाती है।

इस पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘लेकिन मैं आपको बता दूं कि किसी गलत बात पर परदा डालना कोई समाधान नहीं है बल्कि उसका सामना किया जाना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि इसका जवाब कूपमंडूक बने रहना नहीं है।

पीठ ने कहा कि सोशल मीडिया की पहुंच में अदालती कार्यवाहियों की व्यापक रिपोर्टिंग शामिल हो गयी है तथा देश के ज्यादातर उच्च न्यायालयों ने अब लाइव स्ट्रीमिंग या वीडियो कांफ्रेंस के लिए नियम अपना लिए हैं।

न्यायालय ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में न्यायाधीश, वकील और वादियों समेत सभी पक्षकारों को सतर्क रहना होगा कि अदालत में हो रही सुनवाई की पहुंच महज वहां उपस्थिति लोगों तक सीमित नहीं है बल्कि अन्य दर्शकों तक भी उपलब्ध है।

पीठ ने कहा कि न्यायाधीश ने 21 सितंबर को कहा था कि न्यायिक कार्यवाही के दौरान की गई उनकी कुछ टिप्पणियों को सोशल मीडिया मंचों पर बिना संदर्भ के प्रसारित किया गया। टिप्पणियां जानबूझकर नहीं की गयी और उनका उद्देश्य किसी व्यक्ति या समाज के किसी भी वर्ग को ठेस पहुंचाना नहीं था।

उसने कहा कि न्यायाधीश ने यह भी कहा था कि यदि ऐसी टिप्पणियों से किसी व्यक्ति या समाज या समुदाय के किसी वर्ग को ठेस पहुंचती है, तो वह खेद व्यक्त करते हैं।

भाषा गोला नरेश

नरेश

 

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