लोधी काल के स्मारक पर गैर कानूनी कब्जे के लिए 40 लाख का जुर्माना दे आरडबल्यूए : न्यायालय |

लोधी काल के स्मारक पर गैर कानूनी कब्जे के लिए 40 लाख का जुर्माना दे आरडबल्यूए : न्यायालय

लोधी काल के स्मारक पर गैर कानूनी कब्जे के लिए 40 लाख का जुर्माना दे आरडबल्यूए : न्यायालय

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Modified Date: March 27, 2025 / 05:58 PM IST
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Published Date: March 27, 2025 5:58 pm IST

नयी दिल्ली, 27 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी के डिफेंस कॉलोनी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को लोधी काल के स्मारक ‘‘शेख अली की गुमटी’’ पर छह दशकों से अधिक समय तक अनधिकृत कब्जा रखने के लिए 40 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने जुर्माना माफ करने से इनकार कर दिया और मामले की अगली सुनवाई के लिए आठ अप्रैल की तारीख तय की।

पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना ​​है कि यह उचित होगा कि रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) द्वारा दिल्ली सरकार के पुरातत्व विभाग को 40 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए, जिसे स्मारक के संरक्षण और जीर्णोद्धार का कार्य सौंपा गया है।’’

शीर्ष अदालत ने इससे पहले आरडब्ल्यूए से पूछा था कि वह बताए कि स्मारक पर अनधिकृत कब्जे के लिए उस पर कितना जुर्माना लगाया जाना चाहिए।

पीठ ने दिल्ली के पुरातत्व विभाग को स्मारक के जीर्णोद्धार के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था।

इससे पहले पीठ ने भूमि एवं विकास कार्यालय (एलएंडडीओ) को स्थल का कब्जा ‘‘शांतिपूर्ण’’ तरीके से सौंपने का निर्देश दिया था।

पीठ ने भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक विरासत ट्रस्ट की दिल्ली शाखा की पूर्व संयोजक स्वप्ना लिडल द्वारा दायर रिपोर्ट पर गौर करने के बाद यह आदेश पारित किया था।

अदालत ने लिडल को भवन का सर्वेक्षण और निरीक्षण करने तथा स्मारक को हुए नुकसान और उसके जीर्णोद्धार के स्तर का आकलन करने के लिए नियुक्त किया था।

पीठ ने नवंबर 2024 में डिफेंस कॉलोनी में स्मारक की सुरक्षा करने में विफल रहने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की खिंचाई की, जबकि सीबीआई ने कहा कि आरडब्ल्यूए 15वीं सदी की संरचना को अपने कार्यालय के रूप में उपयोग कर रहा था।

पीठ ने 1960 के दशक से आरडब्ल्यूए का संरचना पर कब्जा और एएसआई की ओर से निष्क्रियता पर नाराजगी जताते हुए कहा, ‘‘आप (एएसआई) किस तरह के प्राधिकार हैं। आपका काम क्या है। आप प्राचीन संरचनाओं की रक्षा करने के अपने काम से पीछे हट गए हैं। हम आपकी निष्क्रियता से परेशान हैं।’’

शीर्ष अदालत ने आरडब्लूए को भी फटकार लगाई, जिसने दलील दी थी कि उसने 1960 के दशक में मकबरे को अपने नियंत्रण में लिया, क्योंकि असामाजिक तत्व इसे नुकसान पहुंचा सकते थे।

न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने आरडब्लूए के आचरण और अपने कार्य को उचित ठहराने की दलील पर नाराजगी व्यक्त की।

शीर्ष अदालत डिफेंस कॉलोनी निवासी राजीव सूरी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सूरी ने अदालत से अनुरोध किया है कि उक्त मकबरे को प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत संरक्षित स्मारक घोषित करने का निर्देश जारी करे।

भाषा धीरज सुरेश

सुरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)