नयी दिल्ली, 13 जनवरी (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिग्री के बारे में जानकारी का खुलासा करने संबंधी केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने दिल्ली उच्च न्यायालय से सोमवार को कहा कि आरटीआई का उद्देश्य किसी तीसरे पक्ष की जिज्ञासा को संतुष्ट करना नहीं है।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि छात्रों की जानकारी किसी विश्वविद्यालय द्वारा ‘‘जिम्मेदारी के साथ’’ रखी जाती है और कानून द्वारा इसे छूट दिए जाने के कारण इसे किसी अजनबी को नहीं बताया जा सकता।
उन्होंने कहा, ‘‘धारा 6 यह आदेश देती है कि जानकारी देनी होगी, यही उद्देश्य है। लेकिन आरटीआई अधिनियम किसी की जिज्ञासा को संतुष्ट करने के उद्देश्य से नहीं है।’’
मेहता ने दलील दी कि सार्वजनिक प्राधिकारों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही से असंबद्ध जानकारी के प्रकटीकरण का निर्देश देकर सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता।
कार्यकर्ता नीरज की आरटीआई याचिका पर केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने 21 दिसंबर, 2016 को उन सभी छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति दी थी, जिन्होंने 1978 में बीए परीक्षा उत्तीर्ण की थी। उसी वर्ष प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह परीक्षा पास की थी।
याचिका में 1978 में परीक्षा देने वाले छात्रों का विवरण मांगा गया था।
हालांकि 23 जनवरी, 2017 को उच्च न्यायालय ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के आदेश पर रोक लगा दी थी।
मेहता ने सोमवार को कहा, ‘‘मैं जा सकता हूं और अपने विश्वविद्यालय से कह सकता हूं कि अगर नियम अनुमति देते हैं तो मुझे मेरी डिग्री या मेरी मार्कशीट या मेरे कागजात दे दें.. लेकिन (धारा के तहत प्रकटीकरण से छूट) 8 (1) (ई) तीसरे पक्ष पर लागू होती है।’’
उन्होंने सीआईसी के आदेश को स्थापित कानून के विपरीत बताया।
मेहता ने कहा, ‘‘वह वर्ष 1978 से जुड़ी हर किसी की जानकारी चाहते हैं। कोई आकर 1979 कह सकता है; कोई 1964। इस विश्वविद्यालय की स्थापना 1922 में हुई थी।’’
डीयू ने कहा था कि सीआईसी के आदेश का याचिकाकर्ता और देश के सभी विश्वविद्यालयों के लिए ‘‘दूरगामी प्रतिकूल परिणाम’’ होंगे, जिनके पास करोड़ों छात्रों की डिग्री हैं।
सीआईसी के आदेश को चुनौती देते हुए डीयू ने कहा कि आरटीआई प्राधिकरण का आदेश ‘‘मनमाना’’ और ‘‘कानून की दृष्टि से अस्थिर’’ है क्योंकि जिस जानकारी का खुलासा करने की मांग की गई वह ‘‘तीसरे पक्ष की व्यक्तिगत जानकारी’’ है।
यह तर्क दिया गया कि किसी भी जरूरी आवश्यकता या अत्यधिक सार्वजनिक हित में ऐसी जानकारी के प्रकटीकरण की गारंटी देने वाला कोई निष्कर्ष नहीं दिया गया।
डीयू ने कहा कि प्रधानमंत्री सहित 1978 में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों का रिकॉर्ड मांगकर आरटीआई कानून का ‘‘मजाक’’ बना दिया गया है।
इस मामले की सुनवाई बाद में जनवरी में होगी।
भाषा नेत्रपाल धीरज
धीरज
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
महाकुंभ की व्यवस्था देख अभिभूत हूं : उमा भारती
11 mins ago