प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक फैसले में कहा कि माता-पिता के संग रहना, हर बच्चे का अधिकार है और माता-पिता ही एक बच्चे की दुनिया हैं। ऐसे मामलों में जहां एक दूसरे से अलग हुए माता-पिता अपने बच्चे का लालन पालन करने के लिए लड़ते हैं वहां यदि एक व्यक्ति को बच्चे का संरक्षण सौंपा जाता है तो दूसरे व्यक्ति को उस बच्चे से मिलने का अधिकार अवश्य दिया जाना चाहिए ताकि वह उससे मिल सके।
न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने एक महिला की एक रिट याचिका पर यह आदेश पारित किया। याचिका में महिला ने अपने चार साल के बेटे को अपने संरक्षण में देने का अनुरोध किया था। उसका आरोप है कि बच्चे का पिता उसे जबरदस्ती अपने साथ ले गया। अदालत ने कहा कि बच्चे के संरक्षण से जुड़े मुद्दों को केवल मौद्रिक कारकों के आधार पर तय नहीं किया जा सकता, बल्कि बच्चे के सही लालन पालन के लिए बौद्धिक मार्गदर्शन और नैतिक प्रशिक्षण जैसे अन्य कारक कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं और बच्चे के संरक्षण के मुद्दे पर निर्णय करते समय इन पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
याचिकाकर्ता के मुताबिक इस महिला का 20 अप्रैल, 2014 को एक किसान से विवाह हुआ था और 20 सितंबर, 2016 को उसने एक लड़के को जन्म दिया। चूंकि उसका पति दहेज के लिए उसका उत्पीड़न किया करता था, जून, 2018 में वह अपने बेटे के साथ मायके चली आई। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि छह अप्रैल, 2019 को उसका पति उसके बेटे को जबरदस्ती अपने साथ ले गया। इसलिए उसने बच्चे को अपने संरक्षण में लेने के लिए याचिका दायर की।
वहीं लड़के के पिता ने दलील दी कि वह एक किसान है और वह सालाना करीब डेढ़ लाख रुपये कमाता है। लेकिन उसकी पत्नी के पास आय का कोई निजी स्रोत नहीं है और वह आय के लिए पूरी तरह से अपनी पुश्तैनी कृषि भूमि पर निर्भर है। अदालत ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा, “यह महिला शिक्षित है और स्नातकोत्तर है। वह शिक्षा के मामले में बच्चे के पिता से कहीं बेहतर है। बच्चे का कल्याण केवल मौद्रिक संसाधनों पर निर्भर नहीं है। इसके लिए और भी काफी चीजों की जरूरत है।”
अदालत ने कहा, “नैतिक प्रशिक्षण के अलावा साक्षरता और बौद्धिक मार्गदर्शन एक बच्चे के लालन पालन के लिए महत्वपूर्ण पहलू हैं। यह अदालत पाती है कि मां के साथ ये सभी चीजें बेहतर ढंग से हासिल की जा सकेंगी।” अदालत ने बच्चे के पिता को निर्देश दिया कि वह अपने पुत्र का संरक्षण उसकी मां को सौंपे। साथ ही मां को निर्देश दिया कि वह हर महीने के दूसरे और चौथे रविवार को बेटे को अपने पिता से मिलने की अनुमति देगी।