नयी दिल्ली, 30 जनवरी (भाषा) ओडिशा के राउरकेला स्थित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी-राउरकेला) के अनुसंधानकर्ताओं ने ‘‘बिस्मार्क ब्राउसन आर. डाई’’ से दूषित औद्योगिक अपशिष्ट जल का प्रभावी शोधन करने के लिए नवोन्मेषी प्रक्रिया विकसित की है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित इस अनुसंधान के निष्कर्ष को प्रतिष्ठित पत्रिका ‘जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल केमिकल इंजीनियरिंग’ में प्रकाशित किया गया है तथा टीम को विकसित प्रौद्योगिकी के लिए पेटेंट प्रदान किया गया है।
एनआईटी-राउरकेला में रासायनिक इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर सुजीत सेन के अनुसार, कपड़ा और रंग निर्माण जैसे उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट जल में अक्सर हानिकारक रंग होते हैं, जिन्हें पारंपरिक विधियों से निकालना मुश्किल होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘बिस्मार्क ब्राउन आर. जैसी डाई के कण इतने सूक्ष्म होते हैं… जिन्हें उपचारित करना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाता है। ऐसी डाई अपने गहरे रंग और कैंसरकारी तत्वों के कारण महत्वपूर्ण पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा कर सकती हैं।’’
सेन ने कहा, ‘‘पारंपरिक उपचार विधियां, जैसे कि पराबैंगनी प्रकाश पर निर्भर विधियों के अक्सर बड़े पैमाने पर इस्तेमाल मे मुश्किल आती है, विशेष रूप से जब पानी से डाई कणों को अलग करना होता है।’’
उन्होंने बताया कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए अनुसंधान दल ने एक अत्याधुनिक उपचार प्रणाली विकसित की है, जिसमें दो उन्नत प्रौद्योगिकियों का संयोजन किया गया है।
प्रोफेसर सेन ने बताया, ‘‘पहला एक सिरेमिक झिल्ली है जो औद्योगिक अपशिष्ट से प्राप्त जिओलाइट और जिंक ऑक्साइड नैनोकंपोजिट से लेपित है। यह प्रकाश के संपर्क में आने पर डाई के अणुओं को तोड़ सकता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘दूसरी प्रौद्योगिकी में सूक्ष्म बुलबुले शामिल हैं, जो एक साधारण एयर डिफ्यूजर के माध्यम से उत्पन्न होते हैं, ताकि द्रव्यमान स्थानांतरण को बढ़ाया जा सके और विखंडन प्रक्रिया में सुधार किया जा सके।’’
भाषा धीरज अविनाश
अविनाश
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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)