बेंगलुरु, 26 अक्टूबर (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि धर्म भारतीय संस्कृति की सबसे मौलिक अवधारणा है, जो जीवन के सभी पहलुओं का मार्गदर्शन करती है और धर्म द्वारा प्रेरित समाज में अन्याय के लिए कोई स्थान नहीं है।
उन्होंने कहा कि धर्म का मार्ग-पथ और गंतव्य एवं लक्ष्य दोनों का प्रतिनिधित्व करता है जो प्राणियों समेत अस्तित्व के सभी क्षेत्रों पर लागू होता है और धार्मिक जीवन के लिए काल्पनिक आदर्श की जगह व्यावहारिक आदर्श के रूप में कार्य करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘सनातन का अर्थ है सहानुभूति, करुणा, सहिष्णुता, अहिंसा, सदाचार, धार्मिकता और ये सभी एक शब्द समावेशिता में समाहित हैं।’’
श्रृंगेरी श्री शारदा पीठम द्वारा सुवर्ण भारती महोत्सव के तहत आयोजित ‘नमः शिवाय’ पारायण में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए धनखड़ ने ‘मंत्र कॉस्मोपॉलिस’ को एक दुर्लभ और शानदार आयोजन बताया, जो मन, हृदय और आत्मा को गहराई से जोड़ता है और सभी के साथ सद्भाव में रहता है।
उन्होंने कहा, ‘‘मानवता की सबसे प्राचीन और निरंतर मौखिक परंपराओं में से एक वैदिक मंत्रोच्चार, हमारे पूर्वजों के गहन आध्यात्मिक ज्ञान के लिए एक जीवंत कड़ी के रूप में कार्य करता है।’’
उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता इसकी विविधता में एकता है, जो समय के साथ विभिन्न परंपराओं के सम्मिश्रण से बनी है।
उन्होंने कहा कि इस यात्रा ने विनम्रता और अहिंसा के मूल्यों को स्थापित किया है। उन्होंने कहा कि भारत अपनी समावेशिता में अद्वितीय है, जो एकता की भावना के साथ पूरी मानवता का प्रतिनिधित्व करता है।
धनखड़ ने कहा कि भारतीय संस्कृति का दिव्य सार इसकी सार्वभौमिक करुणा में निहित है, जो ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के दर्शन में समाहित है।
उन्होंने कहा कि यह ध्यान में रखते हुए कि धर्म सभी के लिए निष्पक्षता, सभी के लिए समान व्यवहार और सभी के लिए समानता से जुड़ा हुआ है, व्यावसायिक नैतिकता को आध्यात्मिक सिद्धांतों के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
भाषा
देवेंद्र माधव
माधव
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