कलयुग में राम का वनवास खत्म, राम मंदिर निर्माण का क्रेडिट लेने की लड़ाई शुरु, आजादी के बाद हर चुनाव में बड़ा मुद्दा रहा राम मंदिर | Rama's exile ends in Kalyug The battle to take credit for construction of Ram temple begins Ram temple was a big issue in every election after independence

कलयुग में राम का वनवास खत्म, राम मंदिर निर्माण का क्रेडिट लेने की लड़ाई शुरु, आजादी के बाद हर चुनाव में बड़ा मुद्दा रहा राम मंदिर

कलयुग में राम का वनवास खत्म, राम मंदिर निर्माण का क्रेडिट लेने की लड़ाई शुरु, आजादी के बाद हर चुनाव में बड़ा मुद्दा रहा राम मंदिर

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:01 PM IST, Published Date : August 5, 2020/2:23 am IST

नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज राम मंदिर का भूमि पूजन करेंगे। बीजेपी राज में आज भले ही राममंदिर बनने का सपना साकार हो रहा हो, लेकिन अयोध्या के विवादित स्थल पर मूर्ति रखने, बाबरी का ताला खुलवाने से लेकर राम मंदिर का शिलान्यास और मस्जिद का विध्वंस तक कांग्रेस के सत्ता में रहते हुआ था। ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी की राममंदिर को लेकर क्रेडिट वॉर भी छिड़ा है।

अयोध्या की विरासत जितनी पुरानी है, उतना ही पेचीदा यहां की जमीन पर उठा विवाद भी रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राममंदिर निर्माण का काम शुरू हो रहा है। बीजेपी राज में आज भले ही राममंदिर बनने का सपना साकार हो रहा हो, लेकिन अयोध्या के विवादित स्थल पर मूर्ति रखने, बाबरी का ताला खुलवाने से लेकर राम मंदिर का शिलान्यास और मस्जिद का विध्वंस तक कांग्रेस के सत्ता में रहते हुए था । इसके बावजूद राममंदिर निर्माण का क्रेडिट कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी के हिस्से आ रही है,लिहाजा शहर-शहर पोस्टर वार शुरू हो गया है। कांग्रेस और बीजेपी नेताओं में श्रेय लेने के लिए जुबानी जंग छिड़ गई है।

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भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में 1528 में मीर बाकी पर मंदिर गिराकर मस्जिद बनाने का आरोप लगा और बाद में विवाद का यही कारण बना। 1885 में राममंदिर के निर्माण की मांग उठी और ये मांग करने वाले थे महंत रघुवर दास। 1947 में देश आजाद हुआ और 1948 में महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई। इसी के बाद समाजवादियों ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई और आचार्य नरेंद्र देव समेत सभी विधायकों ने विधानसभा से त्यागपत्र दे दिया।

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने 1948 में हुए उपचुनाव में फैजाबाद से आचार्य नरेंद्र देव के खिलाफ एक बड़े हिंदू संत बाबा राघव दास को उम्मीदवार बनाया। गोविंद वल्लभ पंत ने अपने भाषणों में बार-बार कहा था कि आचार्य नरेंद्र देव भगवान राम को नहीं मानते हैं, वे नास्तिक हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या ऐसे व्यक्ति को कैसे स्वीकार कर पाएगी, इसका नतीजा रहा कि नरेंद्र देव चुनाव हार गए। बाबा राघव दास की जीत से राम मंदिर समर्थकों के हौसले बुलंद हुए और उन्होंने जुलाई 1949 में उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर फिर से मंदिर निर्माण की अनुमति मांगी। इसके बाद विवाद बढ़ने लगा तो पुलिस तैनात कर दी गई। तब कांग्रेस का केंद्र से लेकर राज्य तक में राज था। 22-23 दिसंबर 1949 की रात विवादित मस्जिद स्थल के अंदर राम-जानकी और लक्ष्मण की मूर्तियां रख दीं और ये प्रचार किया कि भगवान राम ने वहां प्रकट होकर अपने जन्मस्थान पर वापस कब्जा प्राप्त कर लिया है।

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1950 में गोपाल सिंह विशारद ने भगवान राम की पूजा अर्चना के लिए अदालत से विशेष इजाजत मांगी थी। महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदुओं की पूजा जारी रखने के लिए मुकदमा दायर कर दिया। अस्सी के दशक में आस्था और मंदिर के आसपास की राजनीति मुख्य केंद्र में आ गई। कांग्रेस में राजीव गांधी का दौर आ चुका था और वीएचपी राम मंदिर मुद्दे को लेकर माहौल बनाने में जुटी हुई थी। एक फरवरी 1986 को एक स्थानीय अदालत ने विवादित स्थान से मूर्तियां न हटाने और पूजा जारी रखने का आदेश दे दिया. इसके बाद बाबरी का ताला खुला। इसके बाद वीएचपी ही नहीं बीजेपी ने भी राम मंदिर को अपने एजेंडे में शामिल कर लिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बीजेपी को मात देने के लिए राम मंदिर के शिलान्यास की अनुमति दे दी। नारायण दत्त तिवारी उस समय यूपी के मुख्यमंत्री थे। नवंबर 1989 को वीएचपी सहित तमाम साधु-संतों ने राम मंदिर का शिलान्यास किया। 1989 के लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान की शुरूआत राजीव गांधी ने आयोध्या से की। इसके बाद राम मंदिर के समर्थन में भीड़ जुटाने के लिए बीजेपी ने अपना अभियान शुरू कर दिया।

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25 सितंबर 1990 को बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी रथ यात्रा की शुरुआत की थी। इसी यात्रा के दो साल बाद 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने अयोध्या में बाबरी विध्वंस किया और विवादित ढांचे को गिरा दिया। ये वो समय था जब केंद्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी और सूबे में कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार, तब से कांग्रेस यूपी में आज तक वापसी नहीं कर सकी है। अब जब राम मंदिर आकार लेने जा रहा है..तो राजनीतिक वजूद को बचाए रखने के लिए अवसरवादिता अपने चरम पर है।