नई दिल्ली। Qutub Minar Controversy: भारत की ऐतिहासिक ईमारत कुतुब मीनार परिसर में हिंदू देवी-देवताओं की पूजा-पाठ की अनुमति दी जाएगी या नहीं? इस मामले में हिंदू पक्ष ने याचिका दायर की थी। ये मामला सुनने योग्य है या नहीं? मुस्लिम पक्ष को नमाज की अनुमति मिलेगी? इस सभी सवालों को लेकर आज सुनवाई होनी थी। इस बीच खबर आ रही है कि पूजा के अधिकार से संबंधित मांग को लेकर दायर याचिका पर फैसला आज टल गया है।>>*IBC24 News Channel के WhatsApp ग्रुप से जुड़ने के लिए Click करें*<<
दरअसल, आज साकेत में सुनवाई के दौरान वकील ने बताया कि एक नया आवेदन दायर किया गया है। जिसके बाद कोर्ट ने कहा की आज इस मुद्दे पर फैसला नहीं सुनाया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि पहले हम अर्जी सुनेंगे उसके बाद देखेंगे। इससे पहले सुनवाई के दौरान पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने अदालत में कहा था कि कुतुब मीनार परिसर के अंदर हिंदू मूर्तियों के अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन किसी संरक्षित स्मारक के संबंध में पूजा करने के मौलिक अधिकार का दावा नहीं हो सकता है। बता दें इस मामले में अडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज निखिल चोपड़ा ने 9 जून तक फैसला सुरक्षित रखा है।
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मिली जानकरी के अनुसार ASI ने अदालत में कबूल किया है कि कुतुब मीनार परिसर के निर्माण के लिए हिंदू और जैन देवताओं के वास्तुशिल्प सदस्यों और छवियों का दोबारा इस्तेमाल किया गया था। पर यह प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थलों और अवशेष अधिनियम, 1958 (AMASR Act) के तहत संरक्षित स्मारकों पर पूजा के अधिकार का दावा करने का आधार नहीं हो सकता है। बताया गया है कि जैन देवता तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव और हिंदू देवता भगवान विष्णु की ओर से दायर मुकदमे में दावा किया गया था कि मोहम्मद गौरी की सेना में जनरल कुतुबुद्दीन ऐबक ने 27 मंदिरों को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया। जिसके बाद उस सामग्री से अंदर कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को खड़ा किया गया था।
इस मामले में वकील हरि शंकर जैन और रंजना अग्निहोत्री के जरिए दायर की गई इस याचिका में परिसर के भीतर देवताओं की बहाली और देवताओं की पूजा और दर्शन करने का अधिकार मांगा गया है। बता दें इससे पहले दिसंबर 2021 में साकेत कोर्ट की सिविल जज नेहा शर्मा ने यह कहते हुए मुकदमा खारिज कर दिया था कि अतीत की गलतियां वर्तमान और भविष्य में शांति भंग करने का आधार नहीं हो सकती हैं। इसके साथ ही अयोध्या भूमि विवाद से जुड़े फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की थी, जिसे सिविल जज ने अपने फैसले का आधार बनाया था। अडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज के सामने मौजूदा अपील में उस केस पर सुनाए गए फैसले को ही चुनौती दी गई थी।
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