पिथौरागढ़, 19 नवंबर (भाषा) एस्टोनिया में हो रहे 28वें ‘ताल्लिन ब्लैक नाइटस’ अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में भारत की ओर से एकमात्र प्रविष्टि ‘पायर’ उत्तराखंड के दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में युवा संतानों के पलायन के कारण अकेले रह गए बुजुर्ग दंपतियों की दुखद स्थिति का यथार्थ चित्रण है।
फिल्मकार विनोद कापड़ी द्वारा निर्मित और निर्देशित इस लघु फिल्म का मंगलवार को फिल्म समारोह में प्रीमियर का कार्यक्रम है। फिल्म में दिखाया गया है कि गांव में रह रहे वृद्ध दंपतियों के सामने उनके अंतिम संस्कार को लेकर भी अनिश्चितता की स्थिति बन जाती है क्योंकि गांव में उनके शव को श्मशान घाट तक ले जाने और उनकी चिता को आग लगाने को लेकर लोग ही नहीं हैं।
फिल्म में दिखाया गया है कि युवा विहीन गांवों और अंतिम समय में अपने पुत्रों की अनुपस्थिति को देखते हुए एक बुजुर्ग दंपति अपने घर के पास ही लकड़ियों से अपनी चिता तैयार करते हैं जिससे काफी दूर स्थित पारंपरिक श्मशान घाट तक उनके शव को ले जाने के लिए ज्यादा लोगों की जरूरत न पड़े।
फिल्म निर्माण से जुड़े सुधीर राठौर ने बताया, ‘‘फिल्मकार के दिमाग में फिल्म का विचार 2017 में क्षेत्र के भ्रमण के दौरान आया था जब वह मुनस्यारी के जोशा गांव में रहने वाले एक बुजुर्ग दंपति से मिले थे। इस वृद्ध दंपति का इकलौता पुत्र पिछले 25 सालों से लापता था और गांव में केवल सात लोग रह रहे थे। बढ़ती उम्र के साथ दंपति को अपने भविष्य खासतौर से अपने अंतिम संस्कार की चिंता थी कि वह कैसे होगा।’’
उन्होंने बताया कि इसी अनिश्चितता की स्थिति में बुजुर्ग व्यक्ति ने अपने घर के परिसर में अपने अंतिम संस्कार के लिए अपनी चिता बनाना शुरू कर दिया।
राठौर के अनुसार, फिल्म बनाने का विचार आने के बाद कलाकारों की तलाश शुरू हुई। वृद्ध व्यक्ति की भूमिका विनोद कापड़ी ने ओखार गांव में रहने वाले अपने चाचा पदम सिंह को दी जबकि उनकी पत्नी की भूमिका के लिए गारतीर गांव की हीरा देवी को चुना गया।
राठौर ने बताया, ‘‘मुख्य चरित्रों के चयन के बाद हमने उन्हें गारतीर गांव में प्रशिक्षण देना शुरू किया। फिल्म से जुड़े सभी चरित्र पिथौरागढ़ और आसपास के रहने वाले हैं। कापड़ी स्वयं गारतीर गांव के रहने वाले हैं।’’
उन्होंने बताया कि ऑस्कर पुरस्कार जीत चुके तकनीशियनों ने फिल्म के संपादन की जिम्मेदारी निभाई जबकि विख्यात गीतकार गुलजार ने फिल्म में एक गीत लिखा है।
फिल्म के प्रीमियर के लिए एस्टोनिया पहुंचीं हीरा देवी शुरुआत में अपनी पालतू भैंस की देखभाल के कारण गांव से बाहर जाने को लेकर हिचक रही थीं। राठौर ने बताया, ‘‘बाद में हमने उनकी विवाहित पुत्री से भैंस की देखभाल की जिम्मेदारी लेने को कहा, जिससे उनकी मां एस्टोनिया जा सकें।’’
भाषा सं दीप्ति खारी शफीक
शफीक
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