पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बावजूद पंजाब में लंबी अवधि वाली धान की किस्म का उपयोग जारी : रिपोर्ट |

पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बावजूद पंजाब में लंबी अवधि वाली धान की किस्म का उपयोग जारी : रिपोर्ट

पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बावजूद पंजाब में लंबी अवधि वाली धान की किस्म का उपयोग जारी : रिपोर्ट

:   Modified Date:  July 2, 2024 / 07:19 PM IST, Published Date : July 2, 2024/7:19 pm IST

नयी दिल्ली, दो जुलाई (भाषा) पंजाब के जिन जिलों में पराली जलाने की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं, वहां किसान लंबे समय में पकने वाली और अधिक पानी की खपत वाली धान की किस्म ‘पूसा 44’ की खेती जारी रखे हुए हैं। मंगलवार को जारी एक नए सर्वेक्षण में यह जानकारी सामने आई है।

यह सर्वेक्षण दिल्ली स्थित स्वतंत्र विचारक संस्था ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनों का उपयोग करने वाले पंजाब के लगभग आधे किसान अब भी मशीनों के कुशल संचालन और कीट नियंत्रण के लिए कुछ मात्रा में धान की पराली जलाते हैं।

सीईईडब्ल्यू की रिपोर्ट में बताया गया है कि पंजाब के 11 जिलों में सर्वेक्षण किए गए 1,478 किसानों में से 36 प्रतिशत ने अधिक पैदावार के कारण खरीफ 2022 में धान की किस्म ‘पूसा 44’ की खेती की।

अमृतसर, बठिंडा, फतेहगढ़ साहिब, फाजिल्का, फिरोजपुर, गुरदासपुर, जालंधर, लुधियाना, पटियाला, संगरूर और एसबीएस नगर में 2022 में पंजाब में दर्ज खरीफ फसल की पराली जलाने की लगभग 58 प्रतिशत घटनाएं हुईं।

संगरूर और लुधियाना जैसे जिलों में ‘पूसा 44’ के उत्पादकों का अनुपात सबसे अधिक है।

सीईईडब्ल्यू के कार्यक्रम सहायक कुरिंजी केमंथ ने कहा कि यद्यपि किसान अधिक पैदावार के लिए ‘पूसा 44’ को पसंद करते हैं, लेकिन बिजली और उर्वरक पर वर्तमान कृषि सब्सिडी के कारण वे इस फसल के पर्यावरणीय प्रभाव को नजरअंदाज कर देते हैं।

केमंथ ने कहा कि पर्यावरण के लिए हानिकारक होने के कारण राज्य सरकार ने अक्टूबर 2023 में ‘पूसा 44’ किस्म को गैर-अधिसूचित कर दिया। हालांकि, यह मुख्य रूप से निजी बीज डीलरों के माध्यम से अब भी प्रचलन में है।

ऐतिहासिक रूप से, ‘पूसा 44’ और ‘पीली पूसा’ जैसी अधिक पैदावार वाली लंबी अवधि की किस्में पंजाब के धान के खेतों पर हावी रही हैं। इन किस्मों को पकने में अधिक समय लगता है, ये अधिक भूसा पैदा करती हैं और उर्वरकों तथा पानी सहित अधिक कृषि इनपुट की आवश्यकता होती है।

उदाहरण के लिए ‘पूसा 44’ अपने पी.आर. (परमल चावल) किस्मों की तुलना में प्रति हेक्टेयर लगभग दो टन अतिरिक्त पराली पैदा करता है, जिसके कारण अधिक मात्रा में अवशेष जलाए जाते हैं।

भाषा

रवि कांत प्रशांत

प्रशांत

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)