pita aur beta dono huye shaheed: भारत की भूमि संघर्ष की भूमि रही हैं और यहाँ का इतिहास बलिदानो का इतिहास। आजादी से लेकर आत्मसम्मान की रक्षा के लिए भारत भूमि के न जाने कितने बेटों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी, हँसते हुए शहीद हो गए। भारत की आजादी से पहले लेकर आज भी यह परम्परा जारी हैं। जब कभी भी देश के रक्षा और सुरक्षा पर आंच आती हैं। देश के लाल खुद को झोंक देते है, देश के लिए अपना लहू बहा देते हैं।
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लेकिन देश में कई परिवार ऐसे हैं जहाँ शहादत की परम्परा पीढ़ी की रही हैं। यानी जब जरूरत पड़ी तो पिता ने देश की रक्षा के लिए जान दे दी और इसके बाद बेटे ने भी रणभूमि पर लड़ते हुए प्राण त्याग दिए। हम बात कर रहे हैं पुंछ में शहीद हुए जवान कुलवंत सिंह की। दरअसल मोगा चड़िक गांव के कुलवंत सिंह 14 साल पहले सेना में भर्ती हुए। उनके पिता बलदेव सिंह ने कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए बलिदान दिया था। वे एक महीने पहले ही छुट्टी से लौटे थे।
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pita aur beta dono huye shaheed: पुंछ में सेना के वाहन पर आतंकी हमले में शहीद हुए जवानों के गांव रो रहे हैं। वे अपने क्षेत्र में नायकों की तरह थे और दूसरों को प्रेरित करते रहते थे। घरवालों में देश के लिए शहीद होने वाले अपने को खोने का दर्द के साथ फख्र भी है।
उनका कहना है कि सरकार को देखना है कि बलिदान व्यर्थ न जाए। मोगा चड़िक गांव के कुलवंत सिंह 14 साल पहले सेना में भर्ती हुए। उनके पिता बलदेव सिंह ने कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए बलिदान दिया था। वे एक महीने पहले ही छुट्टी से लौटे थे। खासतौर पर तीन माह पहले पैदा हुए अपने बच्चे से मिलने आए थे। उनकी एक डेढ़ वर्ष की बेटी भी है। कारगिल में पिता और अब कुलवंत के जाने से परिवार पर दुखों का पहाड़ सा टृट पड़ा है। उनकी शहादत की खबर से पूरे गांव में मातम पसरा हुआ है।
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