‘पर्सनल लॉ’ बाल विवाह रोकथाम कानून में बाधा नहीं बन सकते: उच्चतम न्यायालय |

‘पर्सनल लॉ’ बाल विवाह रोकथाम कानून में बाधा नहीं बन सकते: उच्चतम न्यायालय

‘पर्सनल लॉ’ बाल विवाह रोकथाम कानून में बाधा नहीं बन सकते: उच्चतम न्यायालय

:   Modified Date:  October 18, 2024 / 03:30 PM IST, Published Date : October 18, 2024/3:30 pm IST

नयी दिल्ली, 18 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि किसी ‘पर्सनल लॉ’ के तहत परंपराएं बाल विवाह निषेध अधिनियम के क्रियान्वयन में बाधा नहीं बन सकतीं और बचपन में कराए गए विवाह अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता छीन लेते हैं।

भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने देश में बाल विवाह रोकथाम कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कई दिशानिर्देश भी जारी किए।

हालांकि, पीठ ने इस बात पर गौर किया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए) ‘पर्सनल लॉ’ पर प्रभावी होगा या नहीं, यह मुद्दा विचार के लिए संसद के पास लंबित है। केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से पीसीएमए को ‘पसर्नल लॉ’ पर प्रभावी बनाए रखने का आग्रह किया था।

प्रधान न्यायाधीश ने इस बात पर प्रकाश डाला कि निर्णय में ‘‘बहुत व्यापक’’ समाजशास्त्रीय विश्लेषण किया गया है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘पीसीएमए का उद्देश्य बाल विवाह पर रोक लगाना है लेकिन इसमें किसी बच्चे के कम उम्र में विवाह तय करने की बड़ी सामाजिक कुप्रथा का उल्लेख नहीं है। इस सामाजिक बुराई से बच्चे के चयन के अधिकार का भी हनन होता है… यह उनसे उनके साथी और जीवन पथ के चयन के अधिकार को उनके परिपक्व होने और अपनी स्वतंत्रता का दावा करने में सक्षम होने से पहले ही छीन लेता है।’’

अदालत ने कहा कि बाल विवाह के लिए एक अंतरविषयी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो हाशिए पर पड़े समुदायों के बच्चों, विशेषकर लड़कियों के इसके कारण और कमजोर होने की बात को स्वीकार करता है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अंतरविषयी दृष्टिकोण में लिंग, जाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और भूगोल जैसे कारकों पर विचार करना भी शामिल है, जो कम उम्र में विवाह के जोखिम को अक्सर बढ़ाते हैं।’’

फैसले में कहा गया है कि बाल विवाह के मूल कारणों जैसे गरीबी, लिंग, असमानता, शिक्षा की कमी को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा निवारक रणनीतियों को विभिन्न समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जाना चाहिए।

फैसले में कहा गया है, ‘‘सामाजिक कानून के रूप में पीसीएमए तभी सफल होगा जब व्यापक सामाजिक ढांचे में इस समस्या का समाधान करने के लिए सभी हितधारक मिलकर प्रयास करेंगे और इसके लिए बहु-क्षेत्रीय समन्वय की आवश्यकता है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि इसके लिए मामलों को दर्ज करने का तंत्र मजबूत करने, जन जागरूकता अभियानों के विस्तार और कानून प्रवर्तन के लिए प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण में निवेश की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘इन दिशा-निर्देशों के क्रियान्वयन का उद्देश्य संरक्षण से पहले रोकथाम और दंड से पहले संरक्षण को प्राथमिकता देना है। हम परिवारों और समुदायों पर अपराधीकरण के प्रभाव से परिचित हैं। पीसीएमए में दंडात्मक प्रावधानों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है कि बाल विवाह और इसके कानूनी परिणामों के बारे में व्यापक जागरूकता हो।’’

हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह नहीं समझा जाना चाहिए कि अवैध कार्य करने वालों के खिलाफ मुकदमा चलाने को हतोत्साहित किया जाता है।

उसने साथ ही कहा कि कानून प्रवर्तन तंत्र को बाल विवाह को रोकने और निषिद्ध करने के लिए सर्वोत्तम प्रयास करने चाहिए तथा केवल अभियोजन पर ही ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए।

यह निर्णय ‘सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन’ द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सुनाया गया। इस याचिका में बाल विवाह को रोकने के लिए कानून का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने का अनुरोध किया गया है।

भाषा सिम्मी वैभव

वैभव

 

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