नयी दिल्ली, 30 जून (भाषा) कांग्रेस ने रविवार को कहा कि संसद को एक कानून पारित करना चाहिए ताकि 50 फीसदी की सीमा से अधिक आरक्षण उपलब्ध कराया जा सके।
कांग्रेस के इस बयान के एक दिन पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दल जनता दल-यूनाइटेड(जदयू) ने मांग की थी कि बिहार में आरक्षण में बढ़ोतरी को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।
जद(यू) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की शनिवार को यहां बैठक में पार्टी ने हाल ही में पटना उच्च न्यायालय के फैसले पर चिंता व्यक्त की। न्यायालय ने अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के बिहार सरकार के फैसले को खारिज कर दिया था।
बैठक में पारित एक राजनीतिक प्रस्ताव में जदयू ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र सरकार से राज्य के कानून को संविधान की 9वीं अनुसूची के तहत डालने का आग्रह किया ताकि इसकी न्यायिक समीक्षा को खारिज किया जा सके।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि पूरे लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान विपक्षी दल कहता रहा कि एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण से संबंधित सभी राज्य कानूनों को 9वीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए।
रमेश ने कहा, ‘‘यह अच्छी बात है कि जदयू ने कल पटना में यही मांग की है। लेकिन राज्य और केंद्र, दोनों में उसकी सहयोगी भाजपा इस मामले में पूरी तरह से चुप है।’’
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘हालांकि, आरक्षण कानून को 50 प्रतिशत की सीमा से परे नौवीं अनुसूची में लाना भी कोई समाधान नहीं है, क्योंकि 2007 के उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार, ऐसे कानून भी न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं।’’ उन्होंने कहा कि इस उद्देश्य के लिए संविधान संशोधन कानून की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में संसद के पास एक संविधान संशोधन विधेयक पारित करने का एकमात्र रास्ता है जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सभी पिछड़े वर्गों के लिए कुल आरक्षण को 50 प्रतिशत से अधिक करने में सक्षम बनाएगा।
रमेश ने कहा कि आरक्षण की मौजूदा 50 प्रतिशत सीमा स्पष्ट रूप से संवैधानिक अनिवार्यता नहीं है, बल्कि इसका निर्णय उच्चतम न्यायालय के विभिन्न फैसलों के आधार पर लिया गया।
रमेश ने कहा, ‘‘ क्या ‘नॉन बायोलॉजिकल’ प्रधानमंत्री अपना रुख स्पष्ट करेंगे। हमारी मांग है कि इस तरह का एक विधेयक संसद के अगले सत्र में पेश किया जाना चाहिए। जदयू को केवल प्रस्ताव पारित करने तक सीमित नहीं रहना चाहिए।’’
भाषा
संतोष प्रशांत
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