विपक्ष ने आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों की बहुतायत पर सवाल खड़े किये |

विपक्ष ने आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों की बहुतायत पर सवाल खड़े किये

विपक्ष ने आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों की बहुतायत पर सवाल खड़े किये

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Modified Date: December 12, 2024 / 07:59 PM IST
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Published Date: December 12, 2024 7:59 pm IST

नयी दिल्ली, 12 दिसंबर (भाषा) लोकसभा में बृहस्पतिवार को विपक्षी सदस्यों ने आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक में प्राधिकरणों की बहुतायत संबंधी प्रावधान पर आपत्ति जताई और जन-प्रतिनिधियों की भूमिका को नगण्य बताया।

लगभग सभी विपक्षी दलों ने आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2004 में शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूडीएमए) के गठन के प्रावधान पर आपत्तियां दर्ज कराईं। विपक्षी सदस्यों ने प्राधिकरणों की बहुतायत पर सवाल खड़े किये तथा इन प्राधिकरणों से जन प्रतिनिधियों को अलग रखने का मुद्दा भी उठाया।

चर्चा में हिस्सा लेते हुए समाजवादी पार्टी के आनंद भदौरिया ने शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का प्रावधान करके राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) को कमजोर करने का केंद्र पर आरोप लगाया।

उन्होंने कहा कि प्राधिकरणों की बहुतायत आपदा प्रबंधन की दिशा में अवरोधक बन सकती है।

उन्होंने आपदा-पूर्व उपायों पर विचार करने पर जोर देते हुए कहा कि दुनिया के विभिन्न देशों में आपदा-पूर्व उपाय किये जाते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश भारत में आपदा-उपरांत उपाय किये जाते हैं।

कांग्रेस के श्याम कुमार दौलत बर्वे ने आपदा प्रबंधन के लिए दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मानकों को अपनाने की आवश्यकता जताई।

बर्वे ने यूडीएमए में जिलाधिकारी को अधिक वित्तीय अधिकार देने की सलाह दी और कहा कि जिलों में आपदा की स्थिति में जिला कलेक्टर को ही तत्काल कदम उठाने पड़ते हैं।

कांग्रेस के ही डीन कुरियाकोस ने विधेयक में शहरी आपदा प्रबंधन निकाय का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें ग्रामीण निकाय भी शामिल किया जाना चाहिए था, क्योंकि आपदाओं से ग्रामीण क्षेत्र ज्यादा प्रभावित होते हैं।

रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एन.के. प्रेमचंद्रन ने कहा कि डेटा बेस तैयार करना समय की मांग है, लेकिन विभिन्न स्तर पर प्राधिकारण स्थापित किया जाना अनुचित कदम है।

प्रेमचंद्रन ने शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में निगम आयुक्त को अध्यक्ष और कलेक्टर को उपाध्यक्ष बनाये जाने के प्रावधान पर भी सवाल खड़े किये। उन्होंने कहा कि जिले का मालिक प्राधिकरण का उपाध्यक्ष होगा, जबकि स्थानीय निगमायुक्त प्राधिकरण का अध्यक्ष, यह तर्कसंगत नहीं है।

उन्होंने आपदा-प्रभावित समुदायों की जीविका के फिर से उपाय किये जाने को विधेयक में परिभाषित नहीं किये जाने का आरोप लगाया।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक का विरोध किया। उन्होंने राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) में रिक्तियों का मामला भी उठाया। उन्होंने इससे संबंधित कोष को 10 हजार करोड़ रुपये करने की मांग की।

शिवसेना (उबाठा) के संजय देशमुख ने भी चर्चा में हिस्सा लिया और विधेयक का विरोध किया।

आजाद समाज पार्टी (कांशी राम) के चंद्रशेखर ने कहा कि ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि सत्ता पक्ष द्वारा शासित राज्यों में आपदा की स्थिति में अधिक राशि के प्रावधान किये जाते हैं, जबकि विपक्ष शासित राज्यों के साथ भेदभाव किया जाता है।

उन्होंने आपदा प्रबंधन के मामलों में सभी राज्यों को समान महत्व देने का अनुरोध केंद्र सरकार से करते हुए कहा कि विपक्ष शासित राज्यों के साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।

इस बीच, केंद्र सरकार में शामिल जनता दल (यूनाइटेड) की सदस्य लवली आनंद ने बिहार में बागमती नदी में आई भीषण बाढ़ से हुए नुकसान का उल्लेख किया और इसके तटबंधों के मरम्मत की मांग की।

निर्दलीय उमेश पटेल ने विधेयक का समर्थन किया। उन्होंने दमन दीव में एक निगरानी संस्थान स्थापित करने का आग्रह किया।

निर्दलीय विशालदादा प्रकाशबापू पाटिल ने पूछा कि पुराने कानून से ‘मुआवजा’ शब्द को हटाकर एवं केवल ‘राहत’ शब्द रखकर सरकार क्या अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का प्रयास कर रही है।

उन्होंने विधेयक में स्थानीय निकायों को अधिक अधिकार दिये जाने की आवश्यकता जताई।

भाजपा के बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि सरकार ने ऐसा विधेयक लाया है, जिसमें राज्यों एवं स्थानीय स्तर पर आपदाओं की चिंता करने की बात है। उन्होंने कहा कि 2014 से 2024 के बीच आपदाओं से होने वाले नुकसान में 80 प्रतिशत तक की कटौती हुई है।

भाषा सुरेश सुरेश वैभव

वैभव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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