विपक्षी सांसदों ने एक साथ चुनाव संबंधी विधेयकों पर सवाल उठाए, भाजपा सदस्यों ने समर्थन किया |

विपक्षी सांसदों ने एक साथ चुनाव संबंधी विधेयकों पर सवाल उठाए, भाजपा सदस्यों ने समर्थन किया

विपक्षी सांसदों ने एक साथ चुनाव संबंधी विधेयकों पर सवाल उठाए, भाजपा सदस्यों ने समर्थन किया

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Modified Date: January 8, 2025 / 07:14 PM IST
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Published Date: January 8, 2025 7:14 pm IST

नयी दिल्ली, आठ जनवरी (भाषा) लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले दो विधेयकों पर विचार करने के लिए गठित संसद की संयुक्त समिति की पहली बैठक में बुधवार को सदस्यों के बीच जमकर तर्क-वितर्क हुए। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों ने एक साथ चुनाव के विचार की पुरजोर पैरवी की तो विपक्षी सदस्यों ने इस विचार को लेकर सवाल खड़े करते हुए कहा कि यह संविधान के मूल ढांचे पर हमला है।

इस 39 सदस्यीय समिति की बैठक में भाग लेने वाले सांसदों ने विधेयकों के प्रावधानों और औचित्य पर विधि और न्याय मंत्रालय की एक प्रस्तुति के बाद अपने विचार व्यक्त किए तथा सवाल पूछे।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा समेत कई विपक्षी सांसदों ने इस दावे पर सवाल उठाया कि एक साथ चुनाव कराने से खर्च कम होगा। उन्होंने पूछा कि क्या 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद खर्च का कोई अनुमान लगाया गया? 2004 के लोकसभा चुनाव सभी 543 सीटों पर पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था और माना जाता है कि इससे लागत कम हो गई थी।

सूत्रों ने बताया कि भाजपा सांसदों ने इस आरोप का प्रतिवाद किया कि ‘एक देश-एक चुनाव’ के प्रस्ताव ने कई राज्य विधानसभाओं को शीघ्र भंग करने और उनका कार्यकाल लोकसभा के साथ तय करने की आवश्यकता बताकर संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन किया है।

भाजपा सांसद संजय जायसवाल ने इस बात का उल्लेख किया कि 1957 में सात राज्यों की विधानसभाओं को समय पूर्व भंग कर दिया गया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी राज्यों के चुनाव राष्ट्रीय चुनाव के साथ हों।

उन्होंने सवाल किया कि क्या तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और तत्कालीन नेहरू सरकार में शामिल अन्य प्रतिष्ठित कानूनविदों ने संविधान का उल्लंघन किया था?

सूत्रों के अनुसार, भाजपा के एक अन्य सांसद वी.डी. शर्मा ने कहा कि एक साथ चुनाव का विचार लोकप्रिय भावना को दर्शाता है। उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने जनता के बीच 25,000 से अधिक लोगों से परामर्श किया था, जिसमें अधिसंख्य ने इस विचार का समर्थन किया था।

भाजपा सांसदों ने इस बात को दोहराया कि चुनावों का निरंतर चक्र विकास, देश की वृद्धि को बाधित करता है और सरकारी खजाने पर बोझ डालता है। उन्होंने कहा कि ‘एक देश-एक चुनाव’ प्रगति और विकास को बढ़ावा देगा।

शिवसेना सांसद श्रीकांत शिंदे ने महाराष्ट्र के मामले का हवाला दिया जहां कुछ महीनों के भीतर लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव होते हैं।

शिंदे ने इस बात पर जोर दिया कि इससे विकास कार्य पटरी से उतर जाता है क्योंकि पूरी राज्य मशीनरी चुनाव कराने में व्यस्त हो जाती है।

कांग्रेस, द्रमुक और तृणमूल कांग्रेस सहित कई विपक्षी सांसदों ने अपनी पार्टियों के विचारों को दोहराया कि प्रस्तावित कानून संविधान के विपरीत हैं और इसके मूल ढांचे के साथ-साथ संघवाद पर भी हमला हैं।

टीएमसी के एक सांसद ने कहा कि लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को बरकरार रखना पैसे बचाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

कुछ विपक्षी सांसदों ने मांग की कि पूर्व केंद्रीय मंत्री पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली संसद की संयुक्त समिति को इस विषय की व्यापकता को देखते हुए कम से कम एक वर्ष का कार्यकाल दिया जाना चाहिए।

वाईएसआर कांग्रेस के वी विजयसाई रेड्डी, जिन्होंने पहले कोविन्द समिति को अपनी प्रस्तुति में इस अवधारणा का समर्थन किया था, ने विधेयकों पर कई सवाल उठाए और मांग की कि मतपत्रों को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की जगह लेनी चाहिए।

रेड्डी ने दावा किया कि एक साथ चुनाव क्षेत्रीय दलों को हाशिये पर धकेल देंगे, प्रतिनिधित्व और स्थानीय मुद्दों की विविधता को कमजोर कर देंगे, निर्वाचित प्रतिनिधियों को मतदाताओं के साथ नियमित रूप से जुड़ने की आवश्यकता को कम कर देंगे और चुनावों को दो या तीन राष्ट्रीय दलों के बीच प्रतियोगिता में बदल देंगे।

सूत्रों ने कहा कि जद (यू) सांसद संजय झा ने मतपत्रों को वापस लाने के सुझाव का विरोध किया और बिहार में मतपत्रों के इस्तेमाल के दौरान ‘बूथ कैप्चरिंग’ की घटनाओं का उल्लेख किया।

हालांकि, झा ने कुछ सवाल भी उठाए। उन्होंने पूछा कि क्या छोटे कार्यकाल के लिए चुनी गई सरकार का शासन पर उसी तरह से ध्यान होगा जो पांच साल के कार्यकाल वाली सरकार का होता है।

विधेयकों में प्रस्ताव है कि यदि किसी सरकार के गिरने और किसी विकल्प के अभाव के कारण मध्यावधि लोकसभा या विधानसभा चुनाव होते हैं, तो नई विधायिका का कार्यकाल निवर्तमान सदन के शेष भाग के लिए होगा।

सभी सांसदों को 18,000 से अधिक पृष्ठों वाले दस्तावेजें भरी ट्रॉली दी गई। इसमें हिंदी और अंग्रेजी में कोविंद समिति की रिपोर्ट का एक-एक खंड और 21 खंडों के अनुलग्नक के अलावा एक सॉफ्ट कॉपी भी रखी गई थी।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली 39 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति में कांग्रेस से प्रियंका गांधी वाद्रा, जनता दल (यूनाइटेड) से संजय झा, शिवसेना से श्रीकांत शिंदे, आम आदमी पार्टी (आप) से संजय सिंह और तृणमूल कांग्रेस से कल्याण बनर्जी समेत सभी प्रमुख दलों के सदस्य शामिल हुए।

लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024’ और उससे जुड़े ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024’ पर विचार के लिए संसद की 39 सदस्यीय संयुक्त समिति का गठन किया गया है।

समिति के 39 सदस्यों में भाजपा के 16, कांग्रेस के पांच, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक के दो-दो तथा शिवसेना, तेदेपा, जद(यू), रालोद, लोजपा (रामविलास), जन सेना पार्टी, शिवसेना (उबाठा), राकांपा (एसपी), माकपा, आम आदमी पार्टी, बीजू जनता दल (बीजद) और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के एक-एक सदस्य शामिल हैं।

समिति में राजग के कुल 22 सदस्य हैं, जबकि विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (‘इंडिया’) के 10 सदस्य हैं। बीजद और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी सत्तारूढ़ या विपक्षी गठबंधन के सदस्य नहीं हैं।

समिति को बजट सत्र के अंतिम सप्ताह के पहले दिन तक रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया है। इन विधेयकों को पिछले साल 17 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया था।

भाषा हक प्रशांत

प्रशांत

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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