नयी दिल्ली, 16 जनवरी (भाषा) भारत में क्षय रोग (टीबी) का उपचार करा रहे रोगियों वाले आधे परिवारों को पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने से 2035 तक टीबी से संबंधित 4.5 प्रतिशत मौतों और 2.2 प्रतिशत ऐसे मामलों को कम किया जा सकता है। एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है।
‘द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल’ में प्रकाशित अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि इस तरह के प्रयास से 3.6 लाख से अधिक मौतों और 8.8 लाख से अधिक टीबी के मामलों को रोका जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि आमतौर पर मौत के एक मामले को रोकने के लिए लगभग 24 परिवारों को तपेदिक का उपचार कराने की आवश्यकता होगी जबकि एक मामले को रोकने के लिए 10 परिवारों को उपचार कराने की जरूरत होगी।
इन शोधकर्ताओं में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर)-राष्ट्रीय क्षय रोग अनुसंधान संस्थान (एनआईआरटी), चेन्नई से जुड़े शोधकर्ता भी शामिल थे।
उन्होंने अनुमान लगाया कि पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने से स्वास्थ्य प्रणाली पर लगभग 1,34.90 करोड़ अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त खर्च आयेगा।
शोधकर्ताओं ने कहा कि दुनिया में तपेदिक के मामलों में से लगभग पांचवां हिस्सा कुपोषण के कारण है और भारत में यह अनुपात बढ़कर एक तिहाई से भी अधिक हो गया है।
इसी शोध दल द्वारा ‘द लैंसेट जर्नल’ में प्रकाशित 2023 के एक अध्ययन में झारखंड के चार जिलों में राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम की 28 इकाइयों में क्षय रोग से पीड़ित 2,800 रोगियों के घरेलू संपर्कों का जिक्र किया गया है।
रोगियों को छह महीने तक 1,200 किलोकैलोरी (सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ प्रतिदिन 52 ग्राम प्रोटीन) का भोजन राशन दिया गया, जबकि उनके परिचितों को मासिक भोजन राशन और 750 किलोकैलोरी (सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ प्रतिदिन 23 ग्राम प्रोटीन) का सूक्ष्म पोषक तत्व दिया गया।
परिणामों से पता चला कि दो वर्ष की अनुवर्ती अवधि में, संक्रमित व्यक्ति के घरेलू संपर्कों को पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने मात्र से, एक घर में तपेदिक की घटनाओं में 39-48 प्रतिशत की कमी आई।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पोषण संबंधी सहायता के प्रभाव और लागत का अनुमान लगाने के लिए 2023 के अध्ययन के मॉडल का उपयोग किया।
शोधकर्ताओं ने लिखा, ‘‘हमने पाया कि यदि भारत में उन 50 प्रतिशत घरों में पोषण संबंधी सहायता प्रदान की जा सकती है, जिनमें लोग तपेदिक का उपचार ले रहे हैं तो तपेदिक के लगभग 9,00,000 प्रकरणों को रोका जा सकेगा तथा दिव्यांगता-समायोजित जीवन-वर्ष के आधार पर 167 अमेरिकी डॉलर की लागत से लगभग 4,00,000 मौतों को रोका जा सकेगा।’’
दिव्यांगता-समायोजित जीवन वर्ष एक मीट्रिक है, जिसका इस्तेमाल बीमारी और दिव्यांगता के कारण खोए गए स्वस्थ जीवन के वर्षों को मापने के लिए किया जाता है।
भाषा
देवेंद्र रंजन
रंजन
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