Notebandi ke 6 Saal Demonetisation in india

‘आज रात 12 बजे से 500 और 1,000 रुपए के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे’ पीएम मोदी की ये बात सुनकर खिसक गए थे पैरों तले जमीन

साल 2016 में 8 नवंबर के दिन ही राज 8 बजे पीएम मोदी के संबोधन की ये लाइन सुनकर देशभर के लोगों के पैरों तले जमीन खिसक गई थी! Notebandi ke 6 Saal

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:00 PM IST
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Published Date: November 8, 2022 9:43 am IST

नई दिल्ली: Notebandi ke 6 Saal ‘आज आधी रात से 500 और 1,000 रुपए के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे।’ साल 2016 में 8 नवंबर के दिन ही राज 8 बजे पीएम मोदी के संबोधन की ये लाइन सुनकर देशभर के लोगों के पैरों तले जमीन खिसक गई थी। हालांकि इस बात को आज 6 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन कई जगहों पर इसके दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं तो कहीं इसके फायदे भी नजर आने लगे हैं। मोदी सरकार ने नोटबंदी के फैसले के पीछे यह तर्क दिया गया था कि इससे भ्रष्टाचार, ब्लैक मनी, नकली नोट और आतंकवाद खत्म हो जाएगा। लेकिन अब सोचने वाली बात ये है कि नोटबंदी कितना सफल रहा? मोदी सरकार का ये फैसला सही था ये गलत?

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काला धन कैश में होता है

Notebandi ke 6 Saal नोटबंदी के फैसले के समय सबसे बड़ी बात यह कही गई थी कि इससे काला धन खत्म हो जाएगा। सरकार का मानना था कि काला धन कैश में होता है। सरकार का मानना था कि 500, 1,000 के नोट बंद होने से 3-4 लाख करोड़ रुपए वापस नहीं लौटेंगे। क्योंकि जिसके पास काला धन है, वह उन्हें बैंक में जमा कराने से डरेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नोटबंदी में करीब 15 लाख करोड़ रुपये के नोट बंद हुए थे। इसमें से सिर्फ 10 हजार करोड़ रुपए ही आरबीआई के पास वापस नहीं आए। माना जाता है कि जिसके पास काला धन था, उन्होंने उसे सफेद कर लिया। इस तरह नोटबंदी काले धन के मामले में पूरी तरह विफल रही।

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नोटबंदी एक झटका थी

नोटबंदी वाले साल यानी 2016-17 में देश की जीडीपी (GDP) 8.3% की दर से बढ़ी। इससे यह तो स्पष्ट है कि नोटबंदी कोई आपदा नहीं थी। इकनॉमी के जानकार स्‍वामीनाथन अय्यर के अनुसार, आलोचक यह कहते हैं कि नोटबंदी से GDP का 2.5% चला गया। इसका मतलब है कि बिना नोटबंदी GDP विकास दर 10.8% रही होती। यह बिल्‍कुल बचकाना है। नोटंबंदी एक झटका थी, आपदा नहीं।

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लोग टैक्स चुकाने लगे

आरबीआई मौद्रिक नीति समिति की सदस्य अशिमा गोयल ने हाल ही में कहा कि नोटबंदी के कारण लोग टैक्स चुकाने लगे हैं। कर राजस्व में बढ़ोतरी गोयल की बात को सच साबित करती है। हम इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स और जीएसटी में अच्छी खासी बढ़ोतरी देख रहे हैं। केंद्रीय टैक्‍स रेवेन्‍यू सालाना अनुमान के रिकॉर्ड 53% तक पहुंच गया। साल 2017 में अलग-अलग तरह के राज्‍यवार शुल्‍क की जगह ऑल-इंडिया लेवल पर एकसमान टैक्‍स स्‍ट्रक्‍चर आया। अब पांच साल बाद हर महीने करीब 1.40 लाख करोड़ रुपये GST जमा हो रहा है। अक्‍टूबर में GST कलेक्‍शन 1.52 लाख करोड़ रुपये का हुआ। पिछले 12 महीनों का GST रेवेन्‍यू GDP के 7% के बराबर रहा। यह कर चोरी में नकेल और स्‍थायी ढांचागत सुधारों के चलते संभव हो सका है। इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स इस छमाही में पिछले साल के मुकाबले 24 फीसदी अधिक है।

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केंद्र सरकार का टैक्स कलेक्शन बढ़ रहा

केंद्र सरकार का टैक्स कलेक्शन बढ़ रहा है। इससे खर्चे बढ़ने के बावजूद केंद्र सरकार का घाटा काबू में है। मुफ्त राशन योजना, फर्जिलाइजर्स और पेट्रोलियम उत्‍पादों पर ज्‍यादा सब्सिडी और उच्‍च ब्‍याज भुगतानों के बावजूद अर्द्धवार्षिक राजकोषीय घाटा सालाना अनुमान के सिर्फ 35% पर है। जबकि ऐतिहासिक औसत 77% का रहा है। इसके पीछे मुख्‍य वजह यह रही कि केंद्रीय टैक्‍स रेवेन्‍यू सालाना अनुमान के रिकॉर्ड 53% तक पहुंच गया है।

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भारत डिजिटल पेमेंट के मामले में काफी आगे

नोटबंदी का एक सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि आज भारत डिजिटल पेमेंट (Digital Payment) के मामले में काफी आगे है। डिजिटल पेमेंट में जोरदार उछाल आया है। आजकल कई लोगों ने तो जेब में कैश रखना ही बंद कर दिया है। मोबाइल से ही डिजिटल पेमेंट कर दिया जाता है। आज जूते पॉलिस करने वाले से लेकर सब्जी वाले और गोलगप्पे वाले के पास भी क्यूआर कोड होता है। दान भी आजकल क्यूआर कोड से होने लगा है। यह डिजिटल पेमेंट के मामले में किसी क्रांति से कम नहीं है। यूपीआई ने इसे काफी आसान बना दिया है। फोन पे और बॉस्टन कंसलटिंग ग्रुप की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2026 तक भारत में हर तीन में दो लेनदेन डिजिटल होंगे। इससे लेनदेन में काफी पारदर्शिता होगी।

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कैश ‘किंग’ बना हुआ है

भले ही डिजिटल पेमेंट में काफी अधिक उछाल आया हो, लेकिन आज भी कैश किंग बना हुआ है। देश में जनता के बीच मौजूद नकदी 21 अक्टूबर 2022 तक 30.88 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। यह दर्शाता है कि नोटबंदी के छह साल बाद भी देश में नकदी का भरपूर उपयोग जारी है। यह आंकड़ा चार नवंबर, 2016 को समाप्त पखवाड़े में चलन में मौजूद मुद्रा के स्तर से 71.84 प्रतिशत अधिक है। साल 2016 में कैश का सर्कुलेशन 18 लाख करोड़ रुपये के आसपास था।

 

 

 

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