(मनीष सेन)
जयपुर, 30 जनवरी (भाषा) नोबेल पुरस्कार विजेता वेंकी रामकृष्णन ने बृहस्पतिवार को यहां जयपुर साहित्य उत्सव के उद्घाटन के अवसर पर कहा कि एआई (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) जैसी तकनीकें केवल तकनीकी विशेषज्ञता की ही मांग नहीं करती हैं बल्कि ये मानवीय इतिहास और मूल्यों की समझ को भी जरूरी बनाती हैं जिसके बिना किसी भी प्रस्तावित समाधान के खोखला या नुकसानदायक होने का भी खतरा है।
गुलाबी नगरी के क्लार्क आमेर होटल में आयोजित साहित्य के सबसे बड़े उत्सवों में से एक जयपुर साहित्योत्सव (जेएलएफ) के 18वें संस्करण में वेंकी रामकृष्णन ने कला और विज्ञान के बीच भेद को पाटने की जरूरत को रेखांकित किया।
जेएलएफ में हर उम्र, हर नस्ल और वर्ग के श्रोताओं के विशाल सागर के समक्ष भारत की कला, संगीत, साहित्य, परंपरा और विज्ञान की विविध धाराओं की प्रस्तुतियां दी जाएंगी। इसी के उद्घाटन सत्र में रामकृष्णन ने अपने अध्यक्षीय भाषण में महत्तर समानुभूति के विचार को आगे बढ़ाया।
अंग्रेजी उपन्यासकार सी पी स्नो के महत्वपूर्ण निबंध ‘दी टू कल्चर्स’ का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि विज्ञान और गणित ‘अस्पष्ट प्रतीत’ होते हैं और कुछ लोगों के लिए तो ये ‘‘लगभग चमत्कारिक’ हैं।
रामकृष्णन ने कहा, ‘‘ हम ऐसे युग में जी रहे हैं जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लेकर जीन एडिटिंग और जलवायु विज्ञान तक पर तकनीकी प्रगति हावी है। इनमें से कई नवाचारों में मानव अस्तित्व को गहन तरीके से नया रूप देने की क्षमता है। लेकिन जैसा कि स्नो ने 1959 में चेताया था, आम जनता में अक्सर मूलभूत वैज्ञानिक साक्षरता तक का अभाव होता है।’’
उन्होंने कहा कि यहां तक कि वैज्ञानिक भी अपनी ‘संकीर्ण’ विशेषज्ञताओं के बाहर इन प्रगति को मुश्किल ही समझ पाते हैं।
रामकृष्णन ने कहा कि ऐसे समय में जब रोजगार, खाद्य सुरक्षा, भविष्य की महामारियों के लिए तैयारी और तेजी से परिष्कृत होते हथियारों जैसे मुद्दे केंद्र में हैं, एआई और जेनेटिक इंजीनियरिंग जैसी प्रौद्योगिकियां जबरदस्त संभावनाओं के साथ-साथ जबरदस्त जोखिम भी लेकर आई हैं।
उन्होंने कहा,‘‘ इन सब के लिए तकनीकी विशेषज्ञता से कहीं अधिक की जरूरत है। ये मानव इतिहास, संस्कृति और मूल्यों की समझ तथा समानुभूति की मांग करते हैं। इस व्यापक संदर्भ के बिना हम जो समाधान पेश करते हैं उनके उथला, अल्पकालिक और यहां तक कि नुकसानदायक होने का खतरा है।’’
रामकृष्णन के अनुसार, हमें मानविकी, साहित्य, दर्शन और इतिहास की आवश्यकता है ताकि वैज्ञानिक आविष्कारों के नैतिक और सामाजिक निहितार्थों से निपटने के लिए ढांचा एक प्रदान किया जा सके।
उनका नजरिया कहता है कि समय से पहले लोगों को विशेषज्ञ बनाने से ज्यादा एक व्यापक पाठ्यक्रम जिसमें विज्ञान और मानविकी दोनों शामिल हों, को पेश किए जाने की जरूरत है ताकि ‘व्यापक शिक्षित’ आबादी तैयार की जा सके।
स्नो का निबंध बौद्धिक अलगाव के खतरे में झांकता है और एक ऐसी संस्कृति के पोषण की तात्कालिकता को रेखांकित करता है जहां ज्ञान, उत्सुकता और रचनात्मकता अलग अलग क्षेत्रों तक सीमित न रहें।
सत्तर वर्षीय रामकृष्णन ने कहा, ‘‘ इन दोनों के बीच के अंतर को पाटने की हमारी क्षमता पर भविष्य निर्भर करता है। इस मायने में जेएलएफ एक शानदार पुल है लेकिन हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था समेत ऐसे बहुत से पुलों की जरूरत है । इसलिए मुझे कहना चाहिए कि आइए, इस विभाजन को पाटने के लिए बातचीत शुरू करें।’’
इस साल जेएलएफ में नोबेल पुरस्कार विजेता, बुकर पुरस्कार विजेता, पत्रकार, नीति निर्माता और प्रशंसित लेखकों जैसे 300 से अधिक दिग्गज शामिल होंगे। प्रतिभागियों में अभिजीत बनर्जी, एस्तेर डफ्लो, अमोल पालेकर, इरा मुखोटी, गीतांजलि श्री, डेविड हरे, मानव कौल, जावेद अख्तर, राहुल बोस, युवान एवेस, शाहू पटोले और कल्लोल भट्टाचार्य शामिल हैं।
इस बार जयपुर बुकमार्क (जेबीएम) प्रकाशन सम्मेलन अपने 12वें वर्ष का जश्न मनाएगा, जिसमें अनुवाद, कहानी कहने के नवाचारों और प्रकाशन के भविष्य को आकार देने में एआई की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
जयपुर म्यूजिक स्टेज (जेएमएस) में लोकप्रिय कलाकारों और कलाकारों की टोलियों द्वारा संगीत प्रस्तुतियां दी जाएंगी, जिनमें कैलाश खेर का कैलासा, अभिजीत पोहनकर का द अमीर खुसरो प्रोजेक्ट, दास्तान लाइव का कबीरा खड़ा बाजार में, कामाक्षी खन्ना, सुशीला रमन और सैम मिल्स, नाथू लाल सोलंकी और चुग्गे खान तथा ऋषि शामिल हैं।
जेएलएफ 3 फरवरी को संपन्न होगा।
भाषा नरेश
नरेश पवनेश
पवनेश
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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)