सेवा बहाली की स्थिति में ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ का सिद्धांत लागू नहीं : उच्च न्यायालय |

सेवा बहाली की स्थिति में ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ का सिद्धांत लागू नहीं : उच्च न्यायालय

सेवा बहाली की स्थिति में ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ का सिद्धांत लागू नहीं : उच्च न्यायालय

:   Modified Date:  July 20, 2024 / 12:44 AM IST, Published Date : July 20, 2024/12:44 am IST

प्रयागराज, 19 जुलाई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार के उन कर्मचारियों पर ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ का सिद्धांत नहीं लागू होगा जिन्हें पूर्ण दोषमुक्ति के बाद सेवा में बहाल कर दिया गया है।

दिनेश प्रसाद नाम के एक व्यक्ति की याचिका स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने कहा कि वित्तीय पुस्तिका के नियम 54 में यह व्यवस्था है कि एक बर्खास्त कर्मचारी जिसे जांच में सभी आरोपों से पूरी तरह से मुक्त कर दिया गया है, बहाल होने पर वह बर्खास्तगी की अवधि के लिए पूर्ण वेतन प्राप्त करने का पात्र है।

अदालत ने कहा, ‘‘यह स्पष्ट है कि बर्खास्तगी का आदेश दरकिनार किए जाने के बाद बहाल होने पर एक सरकार कर्मचारी को बर्खास्तगी की अवधि के लिए उसके पूर्ण वेतन और भत्ते से इनकार नहीं किया जा सकता।’’

अदालत ने कहा कि ऐसे कर्मचारी को देय राशि की मात्रा, आरोपों से दोषमुक्ति की प्रकृति पर निर्भर करेगी। केवल उस स्थिति में ऐसे कर्मचारी को भुगतान से इनकार किया जा सकता है यदि वह बर्खास्तगी की अवधि में रोजगार में रहा हो और उसे पात्रता राशि से अधिक या समान वेतन मिलता रहा हो।

मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता उत्तर प्रदेश पुलिस में फॉलोवर था और उसके खिलाफ पुलिस अधिनस्थ रैंक के अधिकारी (दंड और अपील) नियमावली, 1991 के नियम 14 के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई और उसके खिलाफ आरोप पत्र जारी किया गया जिसमें आरोप था कि बिना की छुट्टी के वह ड्यूटी से अनुपस्थित था और भूख हड़ताल पर चला गया था जिससे पुलिस बल की प्रतिष्ठा धूमिल हुई।

याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद उसे बर्खास्त कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ अपील की और अपीलीय प्राधिकरण ने उसे सभी आरोपों से मुक्त कर दिया जिसके बाद उसे सेवा में बहाल कर दिया गया।

इसके बाद याचिकाकर्ता को नोटिस जारी कर कहा गया कि बर्खास्तगी की अवधि नौ जनवरी, 2020 से 29 सितंबर, 2020 में सेवा से बाहर रहने के लिए ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ सिद्धांत पर क्यों ना वेतन भुगतान के बगैर उसकी सेवाओं को नियमित कर लिया जाए।

याचिकाकर्ता ने इस आदेश को उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी। अदालत ने 16 जुलाई के अपने आदेश में याचिका स्वीकार कर ली और निबंधक (अनुपालन) को इस आदेश की प्रति पुलिस अधीक्षक, देवरिया को भेजने का निर्देश दिया।

भाषा राजेन्द्र आशीष

आशीष

 

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