अगर शुक्राणु या अंडाणु के मालिक की सहमति हो तो मौत के बाद प्रजनन पर कोई प्रतिबंध नहीं है: अदालत |

अगर शुक्राणु या अंडाणु के मालिक की सहमति हो तो मौत के बाद प्रजनन पर कोई प्रतिबंध नहीं है: अदालत

अगर शुक्राणु या अंडाणु के मालिक की सहमति हो तो मौत के बाद प्रजनन पर कोई प्रतिबंध नहीं है: अदालत

:   Modified Date:  October 4, 2024 / 09:47 PM IST, Published Date : October 4, 2024/9:47 pm IST

नयी दिल्ली, चार अक्टूबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि यदि शुक्राणु या अंडाणु के मालिक की सहमति प्राप्त हो जाए तो उसकी मौत के बाद प्रजनन पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

न्यायालय ने एक निजी अस्पताल को निर्देश दिया कि वह एक मृत व्यक्ति के संरक्षित रखे गए शुक्राणु उसके माता-पिता को सौंप दे।

मौत के बाद प्रजनन का मतलब एक या दोनों जैविक माता-पिता की मृत्यु के बाद सहायक प्रजनन तकनीक का उपयोग करके गर्भधारण की प्रक्रिया से है।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने इस तरह के पहले निर्णय में कहा, “वर्तमान भारतीय कानून के तहत, यदि शुक्राणु या अंडाणु के मालिक की सहमति का सबूत पेश किया जाता है, तो उसकी मौत के बाद प्रजनन पर कोई प्रतिबंध नहीं है।”

अदालत ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय इस निर्णय पर विचार करेगा कि क्या मौत के बाद प्रजनन या इससे संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए किसी कानून, अधिनियम या दिशा-निर्देश की आवश्यकता है।

अदालत ने यह फैसला सुनाते हुए गंगा राम अस्पताल को निर्देश दिया कि वह दंपती को उनके मृत अविवाहित पुत्र के संरक्षित रखे गए शुक्राणु उन्हें तत्काल प्रदान करें, ताकि ‘सरोगेसी’ के माध्यम से उनका वंश आगे बढ़ सके।

याचिकाकर्ता के कैंसर से पीड़ित बेटे की कीमोथेरेपी शुरू होने से पहले 2020 में उसके वीर्य के नमूने को ‘फ्रीज’ करवा दिया गया था, क्योंकि डॉक्टरों ने बताया था कि कैंसर के उपचार से बांझपन हो सकता है। इसलिए बेटे ने जून 2020 में अस्पताल की आईवीएफ लैब में अपने शुक्राणु को संरक्षित करने का फैसला किया था।

जब मृतक के माता-पिता ने वीर्य का नमूना लेने के लिए अस्पताल से संपर्क किया, तो अस्पताल ने कहा कि अदालत के उचित आदेश के बिना नमूना जारी नहीं किया जा सकता।

अदालत ने 84 पृष्ठ के फैसले में कहा कि याचिका में संतान को जन्म देने से संबंधित कानूनी व नैतिक मुद्दों समेत कई महत्वपूर्ण मसले उठाए गए हैं।

अदालत ने कहा, “माता-पिता को अपने बेटे की अनुपस्थिति में पोते-पोती को जन्म देने का मौका मिल सकता है। ऐसे हालात में अदालत के सामने कानूनी मुद्दों के अलावा नैतिक, आचारिक और आध्यात्मिक मुद्दे भी होते हैं।”

भाषा जोहेब रंजन

रंजन

 

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